ऐसे मनाता है यहां का आदिवासी समाज होली पर्व
इटारसी। आदिवासी सेवा समिति तिलक सिंदूर (Tribal Service Committee Tilak Sindoor) की आज रविवार को बैठक लेकर होली पर्व के विषय में चर्चा की गई। बैठक के पूर्व भगवान भोलेनाथ की आरती की गई। समिति ने आसपास ग्रामीण क्षेत्रों से पहुंचे सभी सदस्यों सेे होली के विषय में चर्चा कर निर्णय लिये।
समिति के मीडिया ( Media) प्रभारी विनोद बारीबा ने बताया कि होली का त्योहार आदिवासी लोग बड़े धूमधाम से मनाते हैं। ढोलक, टिमकी साज के साथ फगुआ गाया जाता है, प्रत्येक घर जाकर फगुआ के माध्यम से लोक नृत्य और गीत गाए जाते हैं, एक दूसरे पर रंग बरसाते हैं। प्राकृतिक रंग जैसे टेसू के फूलों को पीस कर रंग बनाया जाता है। समिति के संरक्षक सुरेंद्र कुमार धुर्वे ने बताया कि सभी गांव के सदस्यों को जिम्मेदारी सौंपी गई है कि किसी भी प्रकार के लड़ाई झगड़े नहीं होना चाहिए, होली को शांतिपूर्वक मनाना है। गेहूं की फसल कटने की कगार पर खड़ी हुई है, आग का इस्तेमाल करते समय सावधानी बरतें, छोटी होली बनाएं ताकि चिंगारी अधिक ऊपर ना उड़े और किसी प्रकार का नुकसान एवं घटना ना हो। रेवाराम एहके ने कहा कि ग्राम के सभी लोग सेमर की लकड़ी लेने जंगल जाते हैं, जिसको डांडा बोला जाता है, सभी लोग लेने जाते हैं, प्राकृतिक लकड़ी की गाड़ी के माध्यम से लाया जाता है जिसमें बैल का इस्तेमाल नहीं किया जाता है, स्वयं दो लोग गाड़ी को खींचकर घर-घर जाते हैं और होली के पास सभी लकड़ी, कंडा से होली को खड़ा किया जाता है।
लगभग सुबह 4 बजे रात को ग्राम के भूमका द्वारा, सबसे पहले गांव खेड़े की होली, जलाई जाती है। समिति के अध्यक्ष बलदेव तेकाम, संरक्षक सुरेंद्र कुमार धुर्वे, मन्नालाल, गोंडी धर्माचार्य रेवाराम एहके एवं कमलेश धुर्वे, सलाहकार अवध राम कुमरे, विजय सलाम, श्यामलाल बारिवा, शंकरलाल उईके, बद्री प्रसाद धुर्वे, अशोक धुर्वे, जीतेंद्र बावरिया, लच्छी धुर्वे अन्य लोग उपस्थित रहे।