- रोहित नागे
वैसे तो हम आधुनिक भी हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि धार्मिक नहीं हैं। धार्मिक मान्यताएं हमारी जीवनशैली का हिस्सा हैं, उनको मानना नहीं मानना, व्यक्ति की स्वतंत्रता पर निर्भर करता है। लेकिन, यदि आप धार्मिक मान्यताओं को लेकर जी रहे हैं तो आपको उनको पवित्रता, ईमानदारी, निष्ठा और पूरे भाव के साथ मानना भी चाहिए।
विगत कई वर्षों से धर्मसंघ यह कहता आया है, कि पितृपक्ष में गणेश विर्सजन वर्जित है। बावजूद इसके दिखावों में जीने की आदी हो चुकी आज की पीढ़ी के कई कथित धर्मप्रेमी अपनी हठधर्मिता दिखा रहे हैं। वे दस दिन गजानन के सबसे बड़े भक्त होने की खुशफहमी पाले रहते हैं, अनंत चतुर्दशी को विसर्जन की जगह सबसे अलग दिखने की चाह, मदहोश होने की हसरतों को साथ लेकर अनंत चतुर्दशी के दूसरे दिन विसर्जन करते हैं, कभी ढोल नहीं मिलने के नाम पर, कभी वाहन नहीं होने के नाम पर। इसे धर्म नहीं शर्म का विषय बनाकर रख दिया है।
आज मन दुखी है, हो सकता है, आज की आधुनिक सोच वाले इस पर हंस लें, मुझे धर्मांध कहें, लेकिन जिस देश की जड़ों में धर्म का जल, वातावरण में धर्म की हवा बहती हो, वहां ऐसे मजाक की अनुमति कतई नहीं होनी चाहिए। मजाक यह है कि ग्रहण की अवधि में पूरे देश में मंदिरों के कपाट बंद हैं, इटारसी में भगवान गणेश की नुमाइश करते हुए विसर्जन के लिए ले जाया जा रहा है, वह भी हर चौक चौराहे पर नाचने की जिद के साथ।
बहरहाल, एक बार मान भी लें, कि आप पूर्णिमा पर विसर्जन कर दें, शायद धर्म में कोई रास्ता भी निकल आए। लेकिन, इस वर्ष तो यह वाकई शर्म का विषय है, जब आधा दिन से मंदिरों के कपाट बंद हैं, भगवान पर्दे के भीतर हैं, ये तथाकथित धार्मिक लोग भगवान को लिए-लिए नाचते, गुलाल उड़ाते घूम रहे हैं। जब ग्रहण में भगवान को कष्ट में माना जाता है, तब ये उनको कष्ट की स्थिति में भी खुशियां मना रहे हैं, आपके भगवान कष्ट झेल रहे हैं और आप खुशियां मना रहे हैं। ऐसे लोगों को भगवान कितना पुण्य देंगे, यह तो नहीं पता, लेकिन वक्त आ गया है कि जो लोग हमेशा खुद को धर्म का रक्षक बनाकर उछल-कूद मचाते हैं, उनको आगे आकर इसे रोकना होगा, अन्यथा यह कथित धार्मिक पीढ़ी इसी तरह बेशर्मी ओढ़े हमारे धर्म को गर्त में अवश्य ले जाएगी।
हम आधुनिक हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम अपनी धार्मिक जड़ों से कट गए हैं। पितृपक्ष, जो कि हमारे पूर्वजों को समर्पित 15 दिनों की अवधि है, में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। गणेश उत्सव एक महापर्व है जो उत्सव और उल्लास से भरा होता है। इसके बावजूद, दिखावे में जीने की आदी हो चुकी आज की पीढ़ी के कई तथाकथित धर्मप्रेमी अपनी हठधर्मिता दिखा रहे हैं, ये धार्मिक मान्यताओं को भूल चुकी आधुनिक पीढ़ी है, जिसे वास्तव में धर्म क्या है, यह सिखाने की जरूरत है।








