जिन्होंने राक्षसों के वंश का नाश किया महादेव ज्योर्तिलिंग के रूप में पूजे जाते हैं वैद्यनाथ

Post by: Rohit Nage

इटारसी। पाप का अंत होता है और पुण्य अनंत है। राक्षसी शक्तियां कुछ समय तो प्रकृति और मनुष्य सहित देवताओं को परेशान तो कर सकती है लेकिन उनका अंत होता ही है। देवों के देव महादेव (Mahadev) इस हेतु ही आए कि वे देवताओं और जगत की राक्षसों से रक्षा कर सके। श्री दुर्गा नवग्रह मंदिर (Shri Durga Navagraha Temple) लक्कडग़ंज में चतुर्थ दिवस वैद्यनाथ ज्योर्तिलिंग (Vaidyanath Jyotirlinga) की पूजा और अभिषेक यजमान दिलीप पुष्पा सराठे (Dilip Pushpa Sarathe), अभिषेक सराठे (Abhishek Sarathe) एवं पराशराम जानकी सराठे (Parashram Janaki Sarathe), अर्जुन सराठे (Arjun Sarathe) द्वारा किया गया।

मुख्य आचार्य पं. विनोद दुबे (Acharya Pt. Vinod Dubey) ने कहा कि महाराष्ट्र (Maharashtra) के परली (Parli) और बिहार (Bihar) की चिताभूमि दो जगह वैद्यनाथ ज्योर्तिलिंग की पूजा और अभिषेक होता है। चिताभूमि में सावन मास में लाखों कावडिय़े गंगा का जल लाकर भगवान शिव को चढ़ाते हैं और अपनी मनोकामना पूरी करने पर दोबारा आते हैं। वहीं परली वैद्यनाथ जो कि महाराष्ट्र के वीड़ जिले में है, यहां भी सावन मास में निरंतर उत्सव होते हैं।

आदिगुरू शंकराचार्य द्वारा परली के वैद्यनाथ को मान्यता दी गई है। वीड़ जिले में आंबेजोगाई से केवल 26 किमी0 दूर पर यह स्थान है। ब्रम्हा वेणु और सरस्वती नदियों के आस पास बसा परली अति प्राचीन गांव है, ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव और माता पार्वती केवल परली में ही साथ-साथ निवास करते हैं। इसीलिए इस स्थान को अनोखी काशी भी कहते हैं। इस गांव का काशी जैसा महत्व होने के कारण यहां के लोगों को काशी तीर्थ यात्रा करने की आवश्यकता नहीं पड़ती।

परली गांव के पहाड़ों में नदियों की घाटियों में उपयुक्त वन औषधियां मिलती हैं, परली के ज्योर्तिलिंग को इसी कारण वैद्यनाथ नाम से जाना जाता है। भगवान विष्णु ने देवगणों को अमृत विजय प्राप्त करा दिया था अत: इस तीर्थ स्थान को वैजयंती नाम भी प्राप्त हुआ। देव दानवों द्वारा किये गये अमृत मंथन से चौदह रत्न निकले थे उनमें धन्वंतरी और अमृत रत्न भी थे अमृत को प्राप्त करने दानव दौड़े तब श्री विष्णु ने अमृत के संग धन्वंतरी को भी शंकर भगवान की लिंग मूर्ति में छिपा दिया था। दानवों ने जैसे लिंग मूर्ति को छूआ छाया वैसे लिंग मूर्ति से ज्वालायें निकली और दानव भाग खड़े हुए परंतु शिव भक्तों ने जब लिंग मूर्ति को छुआ तब उसमें से अमृत धारायें निकली।

परली में जाति और लिंग भेद नही होगा। आचार्य पं. विनोद दुबे ने कहा कि वैद्यनाथ लिंग मूर्ति में धन्वंतरी और अमृत होने के कारण इसे अमृतेष्वर तथा धन्वंतरी भी कहा जाता है। उन्होंने कहा कि शिव भक्त रावण की बर्बादी का श्राप भी यही से शुरू हुआ। यही पर मार्केण्डेय ऋषि को शिवजी की कृपा से जीवनदान मिला। उनकी अल्पायु को यमराज की पकड़ से शिवजी ने मुक्त किया था। उनकी स्मृति में यहां मार्केण्डेय सरोवर बना हुआ है। वैद्यनाथ ज्योर्तिलिंग के पूजन और अभिषेक में सत्येन्द्र पांडेय, पीयूष पांडेय सहयोग कर रहे हैं।

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