news special: जल गुल्लक की तकनीक से हम पेयजल के मामले में समृद्ध हो सकते हैं

news special: जल गुल्लक की तकनीक से हम पेयजल के मामले में समृद्ध हो सकते हैं

– नपाध्यक्ष ने कहा, इसे अपनाकर हम देश में एक नज़ीर पेश करें
रोहित नागे, (9424482883) इटारसी। नलों में पानी न आना, जल भरने के लिए नलों, ट्यूबवेलों (Tubewells) और अन्य जलस्रोतों (Water Resources)के पास लंबी-लंबी कतारें, पीने के पानी को लेकर लड़ाई-झगड़े, पेयजल की मांग लेकर धरने और प्रदर्शन जैसे दृश्य हम आमतौर पर वर्ष के ज्यादातर वक्त देखते हैं। बारिश के बाद कुछ माह तो हालात बेहतर रहते हैं, लेकिन विदा लेती शीत ऋतु (Winter) से ही जल पाताल की ओर कूच करने लगता है। फिर धीरे-धीरे बढऩे लगती है पानी को लेकर मारामारी। इन सारी परिस्थिति से यदि निजात पानी है तो पानी के लिए खुद को काम करने तैयार करना पड़ेगा। केवल नगर पालिका (Municipality) या ऐसी ही स्थानीय एजेंसियों के भरोसे अपनी प्यास बुझाने की राह देखना अक्लमंदी नहीं है। अपने लिए पानी का इंतजाम करना कोई बड़ी बात नहीं है, बस स्वयं को इसके लिए तैयार करके कुछ छोटे-छोटे किन्तु महत्वपूर्ण कदम उठाने की जरूरत है। बैंक कालोनी इटारसी(Bank Colony Itarsi) निवासी शिखा पाराशर (Shikha Parashar) ने इस चिंता को समझा और जल संचय की ओर कदम भी बढ़ा दिये हैं। पिछली गर्मी में टैंकर से पानी का इंतजाम करने वाली शिखा पाराशर को विश्वास है कि इस गर्मी में उनको पानी के लिए तो परेशान नहीं होना पड़ेगा। बैंक कॉलोनी के क्वॉटर नंबर 12 में अपने घर के सामने 600 वर्गफीट के क्षेत्रफल के आंगन में विगत 90 दिनों में एकत्र हुआ 97 हजार 200 लीटर से अधिक पानी आज भी आंगन के तल में है। शिखा पाराशर के वैज्ञानिक दृष्टिकोण ने वॉटर हार्वेस्टिंग (Water Harvesting) की सस्ती, सुलभ तकनीक को अपनाकर बैंक कॉलोनी को वॉटर बैंक बना दिया है। इस प्रयास को उन्होंने जल गुल्लक (Jal Gullak) नाम दिया है। अब न केवल वे स्वयं, बल्कि आसपास के कुछ अन्य घरों को भी गर्मियों मेें जल उपलब्ध हो सकेगा।
शिखा पाराशर कहती हैं कि जब वॉटर हार्वेस्टिंग के लिए लोगों को पाइप, रेत, कोयले और गिट्टी के लेयर की पद्धति समझायी जाती है तो आम आदमी इसे उलझन और खर्चीला मानते हुये उसका सैद्धांतिक समर्थन तो करता है लेकिन इसे अपनाता नहीं है। उन्होंने जो तरीका अपनाया है, व न केवल सस्ता है बल्कि किसी वैज्ञानिक तकनीक की उलझन नहीं है। इसमें आंगन में एकत्र हुआ पानी उस संरचना में ठीक उस प्रकार खिंचता जाता है जैसे किसी कोल्डड्रिंक को स्ट्रा द्वारा सोखते हुये देखा जाता है।
इसमें आंगन के ढाल वाले सिरे पर एक 12 फीट की कॉलम जैसे खुदाई करवा कर उसमें तत्काल गिट्टी भर दी गई। इस प्रकार 12 फीट गहरा एक फीट व्यास का एक सोख्ता गड्ढा तैयार हो गया। यह 90 दिन की बरसात से तृप्त होने के भी बाद 20 सैकंड में एक बाल्टी पानी को पी लेता है। यह पानी कहीं और न जाकर इस ही क्षेत्र के भूजल स्तर को बढ़ाने का काम कर रहा है। इसको बनाने में मात्र 1500 रुपए का खर्च आया और समय भी 4 घंटे लगा। शिखा का मानना है कि अगर हर आंगन में जल गुल्लक बनाई जाये तो संभव है गर्मी में टैंकर पर निर्भरता कम हो सकेगी।

नपाध्यक्ष ने भी सराहा

Pankaj chourey

  • शिखा पाराशर की इस तकनीक को जब हमने ‘नर्मदांचल डॉट कॉम’ (Narmdanchal.com) में प्रकाशित किया तो नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष पंकज चौरे (Municipal Council President Pankaj Choure) ने पढ़कर शिखा पाराशर से मिलने की इच्छा जतायी और अपने साथियों के साथ वे उनके घर पहुंचे। उन्होंने यह संरचना देखी और इस सरल तकनीक की सराहना करते हुए कहा कि उन नागरिकों को शिखा पाराशर से प्रेरणा लेकर इस सस्ती, सरल तकनीक को अपनाना चाहिए, जो अधिक खर्चीला जल संचय का व्यय वहन नहीं कर सकते। इसे जल गुल्लक नाम देने को भी उन्होंने सराहा तथा कहा कि जैसे हम गुल्लक में थोड़ा-थोड़ा पैसा बचाते हैं, ऐसे ही जल बचाने में अपना योगदान दें तो हमारा शहर पेयजल के मामले में न केवल आत्मनिर्भर बल्कि समृद्ध होकर देश में एक नज़ीर पेश कर सकता है। उन्होंने अन्य लोगों से भी ऐसी ही तकनीक अपनाने का अनुरोध किया है।
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AUTHORRohit

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