लोक परंपरा के पर्व भुजलियां पर की पूजा-अर्चना

Post by: Rohit Nage

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Bachpan AHPS Itarsi

इटारसी। लोक परंपराओं के अनुसार रक्षाबंधन (Rakshabandhan) के दूसरे दिन मनाए जाने वाला भुजरिया (Bhujariya) का पर्व आज हर्षोल्लास से मनाया। नगर के विभिन्न वार्डों से महिलाएं माथे पर भुजरिया रखकर गीत गाते हुए बैंडबाजों के साथ जलस्रोतों पर पहुंची। जहां पूजा अर्चना के बाद भुजरिया को विसर्जित किया। सभी ने एक-दूसरे को पर्व की शुभकामनाएं दी।

यह पर्व मुख्य रूप से बुंदेलखंड (Bundelkhand) का लोकपर्व (Lokparva) है। अच्छी बारिश, फसल एवं सुख-समृद्धि की कामना के लिए रक्षाबंधन के दूसरे दिन भुजरिया पर्व मनाया जाता है। इसे कजलियों का पर्व भी कहते हैं। कजलियां पर्व प्रकृति प्रेम और खुशहाली से जुड़ा है। जल स्रोतों में गेहूं के पौधों का विसर्जन किया जाता है। सावन के महीने की अष्टमी और नवमी को छोटी-छोटी बांस की टोकरियों में मिट्टी की तह बिछाकर गेहूं या ज्वार के दाने बोए जाते हैं। इसके बाद इन्हें रोज पानी दिया जाता है। सावन के महीने में इन भुजरियों को झूला देने का रिवाज भी है। तकरीबन एक सप्ताह में ये अन्न उग आता है, जिन्हें भुजरियां कहा जाता है। बुजुर्गों के मुताबिक ये भुजरिया नई फसल का प्रतीक है। रक्षाबंधन के दूसरे दिन महिलाएं इन टोकरियों को सिर पर रखकर जल स्त्रोतों में विसर्जन के लिए ले जाती हैं।

आज भुजरिया पर्व पर लोगों ने एक-दूसरे के गले मिलकर बधाई दी। हिन्दू सनातन धर्म संस्कृति के एक प्रमुख प्राचीन लोक परम्परा में शामिल स्नेह एवं सौहाद्र के प्रतीक धार्मिक पर्व भाद्र कृष्ण प्रतिपदा भुजलिया पर्व पर न्यू गरीबी लाईन, वार्ड 12, में भी भुजरिया का विधिवत पूजन-अर्चन किया। क्षेत्र की महिलाओं ने धार्मिक लोकगीत गाते हुए परिक्रमा देकर विधिवत पूजन-अर्चन किया एवं भगवान व देवगणों को भुजरिया अर्पित कर फिर अपने-अपने परिवार जनों, स्नेहीजनों को भुजरिया प्रदान कर स्नेह व आशीर्वाद प्राप्त किया।

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