झरोखा : पंकज पटेरिया- आज जब बदली शक्ल लेकर नए नए जिंदगी के दुश्मन ब्लैक फंगस, तो डेल्टा प्लस वेयरिंट मुंह उठाने लगे है, तो बरबस ही मशहूर हास्य अभिनेता का जानिवाकर पर फिल्माया गया गाना ये दिल मुश्किल जीना यहां, जरा हटके, जरा बचके, ये बांबे मेरी जां, याद आ गया। मैंने क्षमापूर्वक उसे थोड़ा सा बदल कर जरा हटके, जरा बचके चल यहां कर लिया। गीत की मूल ध्वनि वही जो सावधान करती हमे, दिन व दिन जीवन पर मंडराते संकट से। जाहिर है सावधानी में ही सुरक्षा है।
आई टी आई कानपुर के वेज्ञानिक तीसरी लहर की चेतावनी दे रहे है, इधर डेल्टा प्लस वेरिंट खोफ फेला रहा है। जागरूक सरकार भी युद्धस्तर पर कमर कसकर हर चुनौतियां का सामना करने चाक चौबंद है। वैक्सीनेशन महाअभियान जारी है, कोरोना भी काबू में है, रफ्तार नियंत्रित हुई हैं। सरकार के ठोस प्रबंध, जनता जनार्दन की जागरूकता, सावधानी और सहयोग को यह श्रेय सहज जाता है। लेकिन जब फिर संकट के बादल घुमड़ने लगे तो फिर हमे सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा होना चाहिए। राष्ट्रीय नेतृत्व अपनी टीम के साथ दिन रात देश की जनता के लिए फिक्रमंद प्रयासरत है। जीनोम सिंबेशिक जरूरी मशीन दिल्ली से भोपाल भेजी जा रही है। तमाम जरूरी दवाएं भी, प्रबंध की गई है। यहां एकाद अपवाद छोड़कर वेक्सिन के दोनो डोज लेने वाले लोग सुरक्षित रहे, लेकिन मास्क , सोशल डिस्टेंस वे सुरक्षा कवच कुंडल है, जिससे हम सलामत है। वरना इस आपदा विपदा की भयावहता हम देख भोग चुके हैं। उसे याद कर अब भी डर से कांप ने लगते है। दिल के टुकड़े, आंखो के तारे रूह के नूर कितने कितने अपने घर आंगन की रौनक हंसी खुशी हमने रोते बिलखते सिसकते खोई है। भले कलेजे पर पत्थर रख आंसुओ का समुंदर जज्ब कर घर परिवार की सलवटे संभारने में फिर मर खप रहे हो, लेकिन जागते रहे जगाते रहे। लापरवाह न रहे, भीड़ से बचे, मास्क लगाये। अपने होंशले को बुलंद और ईश्वर पर भरोसा रखे,दिन ये भी गुजर जायेंगे।
अपनी ये पंक्ति का जिक्र यहां करना मोजूं लगता है।
होंसले जिनके उड़ान भरते हैं।
उनके घर सितारे सलामी करते है।
पंकज पटेरिया, वरिष्ठ पत्रकार/साहित्य कार
ज्योतिष सलाहकार
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