होशंगाबाद। पुण्य सलिला मां नर्मदा की पावन नगरी आदिकाल से संत महात्माओं की साधना स्थली और लीलाओं का केंद्र रही है। अलग-अलग समय में संत विभूतियों के पावन चरण स्पर्श से यह नगरी धन्य होती रही है। इन्हीं में एक सिद्ध संत विभूति श्री धूनी वाले दादा हो गए, जिनकी धूनी सिद्ध आश्रम बीटीआई रोड स्थित गटरू बाबू के बगीचे में आज भी स्थित है। दादा जी महाराज खंडवा में समाधि के पूर्व करीब डेढ़ साल होशंगाबाद में रहे। दादा अलौकिक शक्ति संपन्न थे। आश्रम में दुखी, परेशान लोगों का मेला लगा रहता था। दादा की कृपा से लोगों के कष्ट दूर होते थे। ऐसी ही एक गुरु पूर्णिमा का पावन दिन, सुबह से दादा जी दरबार में पूजा पाठ हवन चल रहा था। मुझे गौ-लोकवासी सिद्ध ज्योतिष आचार्य सेंगर जी ने बताया था, विशाल हवन की लौ चार किलो मीटर दूर भी दिखाई देती थी, भजन कीर्तन जारी थे। भक्तजनों, आहुति देर रहे लोगों के बीच कानाफूसी होने लगी, हवन के लिए घी ख़त्म हो गया, हवन पूर्ण कैसे होगा? दूर आसन पर विराजे अन्तर्यामी दादाजी को बिना किसी के बताए यह बात पता लग गई। वे दूर से ही बाबू जी को आवाज देकर बोले मोड़ा घी ख़त्म हो गया है, जा मंगलवारा घाट से नर्मदा जल ले पांच पीपा और डाल दे धूनी में। मनो कल जा उधारी चुका देना। बाबूजी सेवकों को लेकर गए, पांच पीपे जल लाए और जैसे ही नर्मदा जल यज्ञ वेदी में डाला घी बन गया। नर्मदे हर दादा जी सरकार की जय उद्घोष से आकाश गूंज उठा। दूसरे दिन इटारसी और आसपास के गांव से पांच पीपे घी एकत्र कर नर्मदा जी में डाल कर उधारी चुकता की गई। धूनी वाले दादा जी दरबार में आज भक्तजन श्रद्धा भाव से आ ते रहते हैं। बाबूजी के पुत्र, उनके परिजन निस्वार्थ भाव से सेवा करते हैं। जय श्री दादा जी की।
पंकज पटेरिया वरिष्ठ कवि पत्रकार
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दादा जी की महिमा के अनेकों किस्से सम्पूर्ण नर्मदांचल में गाये जाते है.
छोटे दादा जी इसी कुटी में कई महीनों रहा करते थे तब होशंगाबाद जिला सत्र न्यायालय में उनके विरुद्ध एक मामला चल रहा था जिसे जीतने के बाद वे लौटे।