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देशज 2019 : गुजरात के सिद्धि धमाल ने मचाया धमाल

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बारिश भी उत्साह कम नहीं कर पायी
इटारसी। संगीत, नाटक अकादमी नयी दिल्ली द्वारा नगर पालिका परिषद इटारसी के सहयोग से गांधी स्टेडियम में हो रहे देशज आयोजन के दूसरे दिन गुजरात के सिद्धि धमाल ने खूब धमाल मचाया। छत्तीसगढ़ के लोक संगीत से प्रारंभ दूसरे दिन के आयोजन में मप्र का सेरा नृत्य, मिजोरम का चेराव एवं छेहलाम, उत्तराखंड के तांदी नृत्य और कर्नाटक के पूजा कुनिथा की प्रस्तुति भी बेहद सराही गयी। शहर की कलाप्रेमी जनता से कलाकारों को तालियों के गडग़ड़ाहट से उत्साहवर्धन किया।
कार्यक्रम अंतिम और धमाल मचाती प्रस्तुति रही गुजरात का सिद्धि धमाल नृत्य। यह न सिर्फ हिंदुस्तान, बल्कि दुनियाभर के लाखों कला प्रेमियों के दिलों पर राज कर रहा है। यह है भी इतना लयबद्ध कि धूम-धड़ाके में भी दर्शकों को बांधने और ताल के साथ झूमने को मजबूर कर देने वाला। यह नृत्य सिद्धि समुदाय के लोग अपने पूर्वज बाबा हजऱत की आराधना में करते हैं। यह समुदाय अफ्रीकी मूल के लोगों का है।

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दरअसल, इस डांस फोरम को सिद्धि समुदाय के लोक अफ्रीकी गोमाम्यूजिक पर करते हैं, गोमा शब्द न्गोमा से बना है जिसका अर्थ ड्रम्स होता है। जाहिर है इस डांस में ड्रम के संगीत का अहम स्थान है। इसकी खासियत है इसका कॉस्टयूम, धमाकेदार संगीत और लयबद्ध नृत्य के साथ पेश किए जाने वाले करतब। डांस के दौरान तेज और धूम-धड़ाके वाला संगीत दर्शकों को लय में थिरकने को मजबूर कर देता है। जब एक-एक कर डांस ग्रुप के सदस्य नारियल को हवा में उछाल उसे सिर से फोड़ते हैं, तो दर्शक दाद दिए बगैर नहीं रह सकते। साथ ही, कुछ नर्तक मुंह से आग के गोले उगल दर्शकों को स्तब्ध कर देते हैं। फिर, इनका अफ्रीकी आदिवासियों के अंदाज की भाव-भंगिमाएं और अदाकारी दिलों को रोमांच से सराबोर कर देती हैं।
लोकसंगीत छग : यह कर्मा नृत्य एवं गायन शैली पर आधारित था जो नवरात्रि पर्व के अवसर पर गांधी के युवक-युवतियां करते हैं। जोकर नृत्य में नाचा शैली होती है। हुलकी एवं लेंचा नृत्य वनांचल में रहने वाले गोंड हल्बी जातति के युवा आदिवासी करते हैं। छग के कलाकार घेवर यादव, सतीश साहू, और लक्ष्मण साहू के गायन में विजय पाटिल, प्रदीप साहू, रूपेश साहू, लोकेश साहू, खिलेश्वर साहू, धनेश्वरी साहू, मोना देवदास, प्रीति विश्वकर्मा, रानी निषाद, भूमिका ठाकुर, ज्योति पटेल, राजेश साहू ने नृत्य में भूमिका अदा की तो बेंजो पर सुनील साहू, हारमोनियम पर दीपक साहू, ढोलकर पर देवेन्द्र रामटेके, तबला पर दिनेश यादव ने संगत दी।
सेरा नृत्य मप्र : यह बुंदेलखंड के ग्रामीण अंचलों का नृत्य है। यह श्रावण मास में रक्षाबंधन के दूसरे दिन से पुरुषों द्वारा किया जाता है। इसमें डंडों की सहायता से पुरुष विधिवत वेषभूषा में संगीत के साथ नृत्य करते हैं और यह पूरे श्रावण मास में होता है। कलाकार राघवेन्द्र सिंह लोधी, शिवप्रसाद प्रजापति, अंकित पटेल, प्रहलाद पटेल, दामोदर साहू, कीरत प्रजापति, भरत अहिरवार, अजय ठाकुर, ब्रजकिशोर बंसल, सूरज पटेल, दुर्गा प्रसाद सेन, किशन सिंह लोधी, मुरलीधर रैकवार, लोकेन्द्र सिंह और मगन नामदेव ने गायन और नृत्य में भूमिका निभाई।
मिजोरम के चेराव एवं छेह लाम नृत्य आनंद की भावना का प्रतिनिधित्व करता है। इसे बांस नृत्य भी कहते हैं जिसमें नर्तक बांस के बीच नृत्य करते हैं और बांस को आपस में टकराकर बचाया भी जाता है। इम्मानुएल लालखवंगाई ड्रम पर, नर्तकों में लल्हरूएत्लुआंगा, लॉरिनपुय, सियमथंगपुईआ, बेलिंडा ललनूनफेली, वनलल्हरुआई, रोजलिन एल, लालदुहकिमी, लालेनकवली, लालमुअनॉकी, सी लालरिहलुआ, लालसंगजुआला, वानलालछुंगा एच, और सी ललरिनहलुया ने गोंग और ललदिनपुई ने दरबेनकथ पर संगत दी। उत्तरांखंड का तांदी नृत्य जनजातियों में मांगलिक, विवाह, बिस्सू, जात्रा, मोण आदि अवसरों पर महिला पुरुष सामूहिक रूप से करते हैं। कलाकार नंदलाल भारती, गायक बारू भारती, अमरसिंह चौहान, ढोल पर भोदू, हुडका वादन पूरन दास, रणसिंघा वादक मुकेश वर्मा, दमऊ वादक नानू, नर्तक शिवम भारती, सुभाष वर्मा, अनिल वर्मा, किशनचंद जोशी, राधा भारती, कुमारी पूजा, ममता वर्मा, प्रमिला वर्मा थे।
कर्नाटक का पूजा कुनिथा लोकनृत्य आनुष्ठानिक है। यह देवी शक्ति की उपासना का नृत्य माना जाता है। इसमें नर्तक बांस से बने ढांचे जो साडिय़ों और फूलों से ढंका होता है, अपने हाथ और सिर पर रखकर विशेष कौशल से नृत्य करता है। इसमें तांबे और अन्य धातु से देवी के चेहरे को बनाया जाता है। कलाकार शिवमदैयाह, प्रीतम टीएस, नारायण, मनोज कुमार टीएस, पुट्टास्वामी, नागराजु पीआर, मुत्तुराज टीबी, सोमशेखर, विनोद कुमार, संजय, निखिल, सुनील, जयकुमार टीएम, रविचंद्रा पीके और अर्जुन कुमार थे।

बारिश भी उत्साह कम नहीं कर पायी
देशज में गुजरात का सिद्धि धमाल का इतना क्रेज है कि बारिश भी दर्शकों का उत्साह कम नहीं कर पायी। दूसरे दिन की पहली प्रस्तुति थी छत्तीसगढ़ के लोक संगीत की। पहली प्रस्तुति अपने अंतिम चरण में थी कि बारिश शुरु हो गयी। बूंदाबांदी रिमझिम में बदली और लोग कुर्सियां छोडऩे लगे। इधर विद्युत उपकरणों को भी बारिश से बचाने के लिए और मंच पर फिसलन होने से आयोजकों ने कार्यक्रम को विराम दे दिया। यह अल्प विराम था। करीब बीस मिनट में बारिश कम हुई और गैलरी में बैठे दर्शक फिर कुर्सियों पर पहुंचने लगे। मंच को साफ करने और व्यवस्था को पुन: जमाने में करीब बीस मिनट का वक्त और लगा। तब तक राजस्थान के अकरम बहुरूपिया के ग्रुप ने बच्चों और अन्य दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया। लोग सिद्धि धमाल के लिए रुके थे। बारिश के बाद मैदान पर करीब चालीस प्रतिशत दर्शक ही बचे थे। लेकिन जब आयोजन पुन: शुरु हुआ तो लगभग नब्बे फीसद दर्शक वापस आ गये और जब कर्नाटक का पूजा कुनिथा लोकनृत्य आया तो मैदान में सारे दर्शक वापस आ गये। दूसरे दिन की ये दो खास प्रस्तुति थी। पूजा कुनिथा में एक नन्हें बालक ने करीब पचपन किलो बजनी बांस से बने ढांचे जो साडिय़ों और फूलों से ढंका होता है, अपने हाथ और सिर पर रखकर विशेष कौशल से नृत्य किया तो दर्शकों ने दांतों तले उंगलियां दबा लीं। इस बच्चे को भरपूर सराहना मिली और तालियां भी। इसके बाद सिद्धि धमाल ने तो मानो धमाल ही मचा दिया। कार्यक्रम के बाद दर्शकों ने कहा, बारिश के बाद लौटकर आना सुखद रहा। सिद्धि धमाल ने बारिश के कारण हुई मायूसी को मिटा दिया।

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