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मां नर्मदा का ही दूसरा रूप गौमाता है : आचार्य उपदेशक

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इटारसी। भारतीय धर्म संस्कृति में गाय को देवी के समान पूजा जाता है। चूंकि गाय पतित पावनी मां नर्मदा का ही दूसरा रूप है जिसके शरीर में 33 करोड़ देवी देवता समाहित हैं। उक्त उद्गार आचार्य बृजमोहन महाराज ने नाला मोहल्ला इटारसी में व्यक्त किये।
श्री रघुवर रामायण मंडल एवं गौर परिवार द्वारा आयोजित श्री नर्मदा महापुराण ज्ञानयज्ञ के तृतीये दिवस में श्रोताओं के समक्ष कथा वर्णन करते हुये बृजमोहन महाराज ने कहा की एक बार मुनी मार्कण्डेय का आश्रम सागर जल के अतिप्रभाव से एकार्णव रूप हो गया, तब मुनी मार्कन्डेय ने विचार किया कि अब में किसकी शरण ग्रहण करूं। एकमात्र शिव शंकर ही मेरे शरणदाता हैं। ऐसे विचारते हुये मुनिश्री ने भगवान शिव का मानस ध्यान करके प्रणाम किया तथा तैरते हुये जल के ऊपर आये तब उस एकार्णव जलाधि से एक ध्वनि निकली उसे सुनकर मुनि ने सागर में दृष्टि की तो देखा उनकी और एक गाय आ रही है। इसका वर्ण हंस कुन्द इन्दु मुक्ताहार तथा गोक्षीर के समान धवल था। मस्तक पर स्वर्ण की सींगें मनोहारी लग रही थीं। खुर मुंगे के समान थे, उसकी पूंछ धर्म ध्वजा के समान लग रही थी, छोटी घंटियों मुक्ताहार स्वर्णघंटा से समस्त शरीर आवृत्त था। दीर्घ नासिका संपन्न थी। वह सागर में खुर डुबोये नांद कर रही थी। फिर मधुर स्वर से बोली मुनि भय न करो, तुम्हारी मृत्यु नहीं होगी। तुम मेरी पूछ पकड़ो और सुधा-पिपासा के निवारण के लिये मेरा स्तन पान करो। मेरे स्तनों में अमृत समाहित है। मुनि मार्कंडेय जी ने गौ के स्तनों का पान किया, तब वह तैरने में समर्थ हुये बल मिला तो मुनि ने कहा गौमाता आप कौन हंै। तब कृपामयी गौ ने कहा में विश्वरूपा महेश्वरी मानवगण को धर्म देने वाली नर्मदा हूं। इस प्रकार मां नर्मदा की अनन्त महिमा है। जो साक्षात कलियुग की गंगा है। तृतीय दिवस की कथा के प्रारभ में कार्यक्रम संयोजक अनिल गौर एवं सभी यजवानों ने आचार्य जी का स्वगत किया।

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