लेखन में परिवार का सहयोग मिला : नीता श्रीवास्तव सिन्हा

Post by: Manju Thakur

नीता श्रीवास्तव देश की बहुचर्चित कथाकार हैं । कहानीकार हैं । हिंदी की विख्यात महिला कथाकारों के बीच उनका नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है । पिछले दिनों ‘नर्मदांचल ‘ के लिए कथाकार एवं लेखक विनोद कुशवाहा ने उनसे बातचीत की।

इटारसी से आपका सम्बन्ध कैसे रहा है ?

★ मेरे पति यहां रेलवे विभाग में लगभग 22 वर्ष रहे। इस तरह  मेरे जीवन का महत्वपूर्ण समय इटारसी में ही गुजरा। इटारसी से मेरा दिल का रिश्ता है।

वैसे आपका जन्म कहां का है ?

★ जन्म तो मेरा 14 मार्च,1955 में पश्चिम निमाड़ के नर्मदा तट स्थित कसरावद का है।

हम तो आपको इटारसी का ही मानकर चल रहे हैं।

★ क्यों नहीं। मैं भी स्वयं को इटारसी का ही मानती हूं।

आप इतने लंबे समय तक इटारसी में रहीं लेकिन कभी सामने नहीं आईं। जबकि ‘नई दुनिया’ में आपकी कहानी “अमृत दा ढाबा” पढ़ने के बाद मेरा आपसे मिलने का बहुत मन था। अजय भाई से इस सम्बंध में मेरी बात भी हुई थी।

★ कौन अजय गंगराड़े ?

जी। उनसे ही आपके विषय में चर्चा होती रहती थी। वे मेरे अभिन्न मित्र हैं। साथ ही अजय गंगराडे स्वयं भी लघु कथायें लिखते रहे हैं। देश की सामाजिक पत्र – पत्रिकाओं में उनकी लघु कथाओं का प्रकाशन भी होता रहा है। ये बात जरूर है कि व्यवसायिक व्यस्तताओं के कारण उनका लिखना मुश्किल होता चला गया। हां , वे पढ़ते अवश्य रहते हैं। बहुत कुछ तो वो उनके इंस्टिट्यूट में टाइप होने आई रचनाओं में से ही पढ़ लेते हैं। पढ़ने के बाद उनकी प्रतिक्रिया भी बहुत सटीक होती है। खरी – खरी। अजय बहुत स्पष्टवादी हैं। हालांकि अजय गंगराडे भी आपकी तरह ही साहित्य के मौन साधक हैं। इटारसी में मेरे अलावा शायद ही किसी को मालूम ही कि वे लिखते भी हैं।

★ अच्छा, वे लिखते हैं ? ये बात मुझे भी नहीं मालूम थी। मेरा उनसे मात्र इतना परिचय था कि मेरी सारी कहानियां उनके यहां ही टाइप होती रहीं।

  ◆  जी। मुझे मालूम है। मुझसे गलती ये हो गई कि मैंने अपने कालम ” बहुरंग ” में अन्य कथाकारों के साथ उनका उल्लेख नहीं किया। आपसे ‘ बातचीत ‘ के दरम्यान मैं कथा – लेखन के सशक्त हस्ताक्षर अजय गंगराडे से क्षमा की अपेक्षा रखता हूं। चलिये हमारी ” बातचीत ” को आगे बढ़ाते हैं । लिखने की प्रेरणा आपको कहां से मिली?

★ घर से ही मिली। मेरे अपने घर के माहौल से मिली। घर में पिता भाई सहित पूरे परिवार ने सहयोग किया। यहां आई तो पति को हमेशा साथ खड़े पाया। मैं जो कुछ भी लिख पाईं हूं वो सब बिना मेरे पति के सहयोग के सम्भव ही नहीं था  यदि मैं स्वेटर बनाने भी बैठती थी तो ये नाराज होते थे। कहते लिखना मत छोड़ो। मेरे पति अरूण कुमार सिन्हा इटारसी की डीजल शेड लेबोरेटरी में C. M. S. 1 पर पदस्थ थे  उनका जॉब जोखिम भरा था। यही वजह रही कि हम दोनों शांत रहकर 22 वर्षों तक अपना – अपना काम पूरा करते रहे। उनके रिटायरमेंट के बाद उन्हीं के सहयोग एवं प्रयासों से वर्ष 2009 से मेरे कथासंग्रह प्रकाशित होने का सिलसिला जो शुरू हुआ तो आज तक जारी है।

◆  आपके कथा संग्रह किस प्रकाशन से प्रकाशित हुए हैं ?

★ मेरे कथा संग्रह दिशा, समय एवं लीशा प्रकाशन से प्रकाशित होते रहे हैं।

इसका अर्थ तो ये हुआ कि आपका काफी कुछ साहित्य प्रकाशित हुआ है।

★ सही कहा आपने। मेरे छह कथा संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। देश की प्रतिष्ठित पत्र – पत्रिकाओं में तो कहानियां आती ही रहती हैं। आकाशवाणी, इंदौर एवं विविध भारती से भी न केवल मेरी कहानियां प्रसारित हुई हैं बल्कि मेरे लिखे नाटक भी प्रसारित हुए हैं। इसके अलावा मैं सन 2014 से ‘ प्रिय पाठक साप्ताहिक’ में नियमित रूप से स्तम्भ लिख रही हूं।

नीता जी मैं भी दो तीन कालम लिख रहा हूं ।

★ मुझे जानकारी है। थोड़ा बहुत तो मैं भी पढ़ती हूं न ( हंसते हुए ) ।

आपके कुछ कथा संग्रहों ने तो हिंदी साहित्य जगत में हलचल मचा रखी है क्योंकि उसमें शामिल कहानियों के माध्यम से आप “महिला विमर्श” और ‘स्त्री चिंत ‘ की सबसे बड़ी पैरोकार बन कर उभरी हैं ।

★ ये तो विनोद जी आप ही बता सकते हैं। आप खुद भी कथाकार हैं। उपन्यासकार हैं। समीक्षक हैं। स्तम्भ लेखक हैं। मैं उन कथा संग्रहों के नाम लूंगी तो ठीक मालूम नहीं देगा।

देखिए नीता जी जहां तक मुझे स्मरण है जो सच है ( 2010 ) , पानी-पानी (2010) अमृत दा ढाबा ( 2014 ) , जन्नत दिखाता है ( 2017 ) सहित आपके 6 कथा संग्रह प्रकाशित हुए हैं। जिनमें “अमृत दा ढाबा ‘ ने मुझे बेहद प्रभावित किया। इस कथा संग्रह को तो शायद पुरस्कृत भी किया गया है।

★ अरे वाह आपको तो सब के नाम याद हैं। आप सही कह रहे हैं । म प्र साहित्य अकादमी से इस कथा संग्रह को 2014 में ‘सुभद्रा कुमारी चौहान पुरस्कार’ से पुरस्कृत किया गया है।

इसके अतिरिक्त भी तो आपको अनेक सम्मान एवं पुरस्कारों से अलंकृत किया गया है ?

★ वैसे मुझे नेहरू युवा केन्द्र से “अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस” पर ‘उत्कृष्ट साहित्य सेवा सम्मान’ ( 2011 ) , म प्र लेखक संघ से “कमला चौबे स्मृति सम्मान” . (2012 ) , साहित्य समर्था से ‘श्रेष्ठ कहानी पुरस्कार’, कथा बिम्ब से “कमलेश्वर स्मृति कथा सम्मान”, ‘अमृत दा ढाबा’ को  “अम्बिका प्रसाद दिव्य स्मृति पुरस्कार” (2016), ‘काशीबाई मेहता लेखिका सम्मान’ (2019 ) के साथ-साथ समय-समय पर विभिन्न संस्थाओं तथा विविध पत्र-पत्रिकाओं ने भी मेरी प्रतिभा और योग्यता को सम्मानित किया है।

योग्यता पर से याद आया आपने शिक्षा कहां तक प्राप्त की है ?

★ मैंने समाजशास्त्र में एम. ए. किया है। साथ ही पत्रकारिता में भी प्रशिक्षण प्राप्त किया है।

क्या आपकी कहानियों के अनुवाद भी हुए हैं ?

★ हां क्यों नहीं। आपको तो मालूम होगा ही।

सच में मुझे जानकारी नहीं है नीता जी। दरअसल क्या है मुझे तो बस हिंदी भाषा ही आती है। वह भी टूटी फूटी।

★ ( हंसते हुए ) अरे नहीं। आप तो हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी तीनों भाषाओं में दखल रखते हैं।

◆ … लेकिन इटारसी के नामचीन कवि – कवयित्रियां तो यहां तक कहते हैं कि मुझे शब्दों के अर्थ भी नहीं मालूम।

★ अच्छा। फिर वो आपको जानते नहीं हैं जहां तक मेरी रचनाओं का प्रश्न है उनका तो अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ है।

वैसे आपने लिखना कब से  शुरू किया ?

★ मैं ये सोचती हूं कि 11-12  साल की उम्र से मेरा लेखन प्रारम्भ हो गया था।

मुझे किसी ने बताया था कि आपका रिश्ता सुप्रसिद्ध उपन्यासकार कृष्णा अग्निहोत्री से भी रहा है। क्या ये सच है ?

★ नहीं। बिल्कुल नहीं। वे अग्निहोत्री हैं मैं श्रीवास्तव। हां एक बात जरूर हुई। पति का उपनाम सिन्हा है लेकिन उन्होंने मुझे कहा -” लेखन में जो आपका नाम चल रहा है वही चलने दें। ” सो अभी तक नीता श्रीवास्तव नाम ही चल रहा है। आगे भी यही नाम चलता रहेगा।

आप निमाड़ से हैं तो कृष्णा जी से आपकी मुलाकात तो होती होगी ? … क्योंकि वे खंडवा भी रही हैं ।

★ जी हां। क्यों नहीं। आकाशवाणी , इंदौर में उनसे मुलाकात हो जाती थी। उन्होंने मुझसे एक ही बात कही थी -‘ शादी के बाद भी लिखना मत छोड़ना। ‘ संयोग से पति इतने अच्छे मिल गए कि वे खुद मुझे लिखने के लिए प्रेरित करते थे। अभी भी करते हैं।

लिखने के अलावा आप अध्ययन कितना कर पाती हैं ?

★ पढ़ने के लिए भी समय निकाल ही लेती हूं। युवा पीढ़ी को जरूर ज्यादा से ज्यादा पढ़ना चाहिए तभी उनका लेखन भी निखरेगा ।

इटारसी छोड़ने के बाद वर्तमान में आप कहां रह कर लेखन को जारी रखे हुए हैं ?

★ ऐसा मत कहिये। इटारसी छोड़ा कहां है। इटारसी तो स्मृतियों में बसी है। वैसे पति की सेवानिवृत्ति के बाद ननिहाल होने के कारण हम लोग महू में जाकर बस गए हैं।

चलिए आपके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आपसे ” बातचीत ” कर अच्छा लगा।

★ मुझे भी बहुत अच्छा लगा। ‘नर्मदांचल’ की प्रगति के लिए शुभकामनाएं। धन्यवाद।

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