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सरकारी अस्पताल : कई विशेषज्ञ डॉक्टर्स की कमी, मरीज परेशान

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इटारसी। शहर के सरकारी अस्पताल में विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी कई वर्षों से बनी हुई है। सरकार बदलने के बाद उम्मीद की जा रही थी कि यहां कुछ डाक्टर्स आएंगे, क्योंकि ऐसा दावा किया गया था। डाक्टर तो आए, लेकिन, जितने डॉक्टर इस अस्पताल को मिले, उतने यहां से चले भी गये और हालात जस के तस बने हुए हैं। इसके अलावा टेक्निशियन और अन्य कमियां भी बनी हुई हैं।
जिले का दूसरा बड़ा डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी शासकीय अस्पताल पिछले ड़ेढ दशक से विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी से जूझ रहा है। हालात इतने खराब हैं कि शासन से मंजूर पदों से आधे चिकित्सक भी यहां पदस्थ नहीं हैं। क्लास वन एवं क्लास टू के डेढ़ दर्जन से ज्यादा पद यहां सालों से रिक्त पड़े हुए हैं।

शहर और गांव इसी के भरोसे
केसला विकासखंड की 49 ग्राम पंचायतों और सवा लाख की आबादी वाले इटारसी शहर की सेहत इसी अस्पताल के भगवान है। यहां लाखों रुपए के आधुनिक उपकरण और करोड़ों की लागत से नई इमारत तो बन रही है, लेकिन अस्पताल में सबसे ज्यादा जरूरी डॉक्टर्स ही नहीं हैं। 15 साल की भाजपा सरकार रहते जिले में नए डॉक्टर्स नहीं आ सके तो अब सत्ता परिवर्तन के बाद कांग्रेस के बड़े नेताओं को भी इसकी फिक्र नहीं है।

डॉ. झा और डॉ. बड़ोदिया रिटायर
यहां पदस्थ मेडीकल ऑफिसर डॉ. विमल झा और निश्चेतना विशेषज्ञ डॉ. आरडी बड़ोदिया रिटायर्ड हो गये हैं। लंबे इतंजार के बाद सरकारी अस्पताल में शुरू हुई दंत चिकित्सा यूनिट में दंत चिकित्सा से जुड़ी मशीनें आ गई हैं। साथ ही एक डेंटिस्ट की बजाए शासन ने यहां दो पदस्थ कर दिए हैं। यहां लंबे समय से डेटिंस्ट सुचिता नायक एवं संजय राघव दोनों दंत चिकित्सा इकाई में पदस्थ हैं। डॉ. झा के रिटायर्ड होने से एक एमओ कम हो गया है और डॉ. बड़ोदिया के भी रिटायर हो जाने से इकलौती निश्चेतना विशेषज्ञ डॉ. आभा दुबे ही बचेंगी। अकेली डॉक्टर होने से सीजर डिलेवरी और अन्य ऑपरेशन के मामले में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

इन विशेषज्ञों की दरकार
हृदय रोग, हड्डी रोग, मेडीकल, सर्जिकल, ईएनटी, पैथालॉजी विशेषज्ञ के पद रिक्त पड़े हैं। आपातकाल में इन्हीं डॉक्टर्स की जरूरत होती है। मेडीकल ऑफिसर तो ओपीडी एवं वार्डों में भर्ती मरीजों के केस संभाल लेते हैं, लेकिन गंभीर घायल होने, हार्ट अटैक और ऑपरेशन की स्थिति में जूनियर डॉक्टर हाथ खड़े कर देते हैं। मरीज को जिला अस्पताल या भोपाल रेफर करना पड़ता है।

तीन आए, तीन चले गये
शासन ने बहुत प्रयासों और लगातार डिमांड भेजने के बाद दो चिकित्सकों को यहां भेजा है। इनमें डॉ. आशीष पटेल, डॉ. गोपाल दंडवते और डॉ. हीरानंद कौशल। ये तीन डॉक्टर इटारसी के अस्पताल को मिले हैं तो वहीं डॉ. एसआर मेहतो जो यहां अटैच किये गये थे, उनको वापस जमानी भेज दिया है। इसी तरह से डॉ. पूनम गौर को भी जमानी भेज दिया है। ये दोनों सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र सुखतवा से अटैच हैं। ये दो डॉक्टर तो यहां से चले गये और तीसरे नेत्र रोग विभाग को वर्षों से संभाल रहे नेत्र सहायक राकेश गौर का पिछले दिनों हृदयाघात से निधन हो गया है। अब नेत्र विभाग पूरी तरह से बंद हो गया है। नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. एनके तीन 2016 में ही रिटायर हो गये थे, उनके बाद से कोई भी नेत्र चिकित्सक या विशेषज्ञ यहां नहीं आया है।

इन विशेषज्ञों की है मांग
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी शासकीय चिकित्सालय में मेडिकल, सर्जिकल विशेषज्ञों के अलावा अस्थि रोग विशेषज्ञ, नाक-कान-गला रोग विशेषज्ञ, नेत्र रोग विशेषज्ञ की मांग है। स्त्री रोग विशेषज्ञों की भी आवश्यकता है ताकि व्यवस्था बेहतर बनायी जा सके। इसी तरह से ब्लड बैंक में पैथोलॉजिस्ट नहीं होने से एचआईबी जैसे गंभीर मामलों की जांच नहीं हो पा रही है। शहर में कोई प्रायवेट ब्लड बैंक भी नहीं है, जिससे सारा भार सरकारी अस्पताल के ब्लड बैंक पर ही आता है। यहां आने वाले मरीजों के अलावा, निजी अस्पतालों के मरीज भी ब्लड के लिए आते हैं। डॉक्टर्स की कमी के कारण राउंड द क्लॉक ड्यूटी नहीं लगायी जा पा रही है। अस्पताल में कम से कम 10 स्टॉप नर्स की भी कमी है।

इनका कहना है…!
अस्पताल में कम से कम दो मेडिकल और दो सर्जिकल विशेषज्ञों के अलावा नर्सेस स्टाफ, लैब टेक्निशियन और महिला डाक्टर्स की और जरूरत है। नेत्र सहायक राकेश श्रीवास्तव के देहांत के कारण नेत्र विभाग पूरी तरह से बंद हो गया है। इटारसी, डोलरिया, केसला ब्लॉक के मरीज और कई थानों के मामलों में पोस्टमार्टम भी यहीं होते हैं।
-डा. एके शिवानी, अधीक्षक सरकारी अस्पताल इटारसी

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