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कलेक्टर किस्सा गोई: कब किस के आशियाने पर गिर जाए बिजली पता नहीं होता था…

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झरोखा/पंकज पटेरिया। यह सर्द किस्सा उस दौर का है जब देश पर आपातकाल का साया छाया हुआ था, लोग एक अजब तरह की दहशत से घिरे होते थे। यकीन कीजिए आपस की बातचीत भी सिमट गई थी। चौक-चौराहे पर सन्नाटा छाया रहता था, सब लोग जैसे एक खास फरमान से बंधे हुए थे, और उसकी नाफरमानी का जोखिम उठाने की जरूरत कोई नहीं कर पाता था। संभवत: 75, 77 का यह दौर था। देश में इमरजेंसी की घोषणा हो चुकी थी उसी दौर में साहब बहादुर कलेक्टर हरिसिंह साहब ने जिले की बागड़ोर अपने हाथों में ली थी।

बेहद सख्त माहौल था। एक लोहे के पिंजरे में आदमी कैद थे और मौके मौके से खिडक़ी दरवाजे खुलते थे। यह जरूर हकीकत है कि जिला प्रशासन भी ऊपर बैठे हुक्मरानों के हुकुम से बंधा था। लिहाजा आपने कई सख्ती का और चौकसी का रुख अपनाया था। कब किस पर बिजली गिर जाए, कब किसका आशियाना ढह जाए कहना मुश्किल था। हम प्रेस वालों को भी बड़े सख्त निर्देश जिला जनसंपर्क अधिकार के माध्यम से रोज मिलते थे। क्या लिखना है, क्या नहीं लिखना है, यह साफ तौर पर वार्निंग दी जाती थी। 4:00 बजे तक हमारी डाक प्रशासन द्वारा मुकर्रर की गई एक कमेटी के जरिए पेश की जाती थी। इन्हें खोला जाता था, उनका गहरा अध्ययन किया जाता था। जरा सी भी काबिल एतराज अथवा शासन प्रशासन के खिलाफ कोई शब्द, पंक्ति होती तो वह खबर रोक ली जाती थी। संबंधित अखबार के संवाददाताओं को चेतावनी के साथ रोज एक पत्र भी मिलता था। उन दिनों का डिक्टेटर शिव का एक यह उदाहरण काफी होगा कि 4 न्यूज़ एजेंसी को मिलकर बनाई गई एक एजेंसी समाचार जिसका नाम होता था उसके संवाददाता एक वरिष्ठ अखबार नवीस थे, उनकी तात्कालिक पार्टी के किसी लीडर ने शिकायत कर दी, अचरज की बात यह है की दूसरे दिन उन्हें उस एजेंसी से दिल्ली के आदेश से निकाल दिया गया था।

मेरे एक सीनियर थे बहुत धाकड़ स्तंभ की इंग्लिश पत्रकार वे हिंदी के साथ एक अंग्रेजी अखबार के नुमाइंदा थे। शहर के घटनाक्रम पर रोशनी डालते उन्होंने यह खबर अंग्रेजी अखबार में लगाई। होशंगाबाद शॉक्ड विद रेप एंड मर्डर। इस खबर से ऐसा जलजला आया की लोकल एडमिनिस्ट्रेशन का प्लेटफार्म भी हिल गया। आनन फानन रिपोर्टर की खबर लेने के हुकुम भी हो गए। लेकिन शुक्र हो उस दौर के एक पुलिस अफसर सरदार जी का जो बहुत भले आदमी थे, और उनके प्रेस से बहुत अच्छे रिश्ते भी थे। उन्होंने तत्काल संबंधित पत्रकार से संपर्क किया कि आपकी गिरफ्तारी के आदेश हुए है।ं आप चुपचाप शहर से निकल जाएं और कुछ वक्त के लिए खबरें लिखना भूल जाएं, इस तरह बच सके।

मैं भी ऐसी मुसीबतों से दो चार होता रहा हूं। बहरहाल रोज हो रही कार्रवाही के चलते बड़ा दम खोटू और दहशद भरा माहौल था। कब किस की शामत आ जाए खबर ही नहीं। कुछ ऐसा पाला सा मार गया था, कि सदा हंसते खिलखिलाते गांव, शहर, कस्बा की मुस्कानें गायब हो गई थी और चहरे कुमला गए थे। बहरहाल अति हर चीज की बुरी होती है। प्रभु कृपा से दिन फिरे और बदला, सियासी मौसम, लोगों ने खुलकर सांस ली। जिदंगी जैसे फिर पटरी पर लौटने लगी थी। आज की भी उस दौर में गिरफ्तार हुए यातना से गुजरे लोग जब कभी मिल बैठते हैं। उस दौर की दर्द भरी बातें होती तो सुनकर सिहर जाते। और तो और पीढ़ी बुजुर्ग हो गई। कुछ विदा भी हो गए दुनिया से लेकिन बहुत डरावना माहौल था उन दिनों। फिर खुला आसमान मिला ईश्वर की कृपा से और लोग अपने पंख फैला कर तबीयत से परवाज भर रहे हैं, आपस में प्यार भाईचारा और अपनापन है बहुत मजे मजे जिंदगी बसर हो रही है! नर्मदे हर

pankaj pateriya

पंकज पटेरिया
वरिष्ठ पत्रकार साहित्यका
ज्योतिष सलाहकार होशंगाबाद
9893903003,9407505691

 

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