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Special : दशरथनन्दन श्रीराम

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- विनोद कुशवाहा :


              राम तुम्हारा वृत्त
              स्वयं ही काव्य है , 
              कोई कवि बन जाए
              सहज संभाव्य है ।

                     चित्रकूट को आधार माना जाए तो श्रीराम की ऊंचाई लगभग 15 फीट तथा सीता की ऊंचाई करीब 11फीट रही होगी । एक तथ्य ये भी है कि राम की ऊंचाई 10 फुट और रावण की ऊंचाई 8 फुट थी । शायद यही वजह है कि श्रीराम पर बनने वाली फिल्म के लिये दक्षिण भारत के सुपर स्टार बाहुबली फेम प्रभास को कास्ट किया गया है । खैर ।

                     राम के दादा का नाम महाराज अज तथा नाना का नाम भानुमंत था । श्रीराम की एक बड़ी बहन भी थीं जिनका विवाह ऋषि श्रृंग के साथ हुआ था । हालांकि इस सम्बंध में विभिन्न मत प्रचलित हैं ।

                      राम के इष्ट भगवान शिव थे । श्रीराम ने  रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना भी की थी । रामचरित मानस में आठ बार भगवान शंकर का नाम आया है । इस पर भी श्रीराम को शक्ति का आव्हान तो करना ही पड़ा । निराला की 'राम की शक्ति पूजा' आपको स्मरण ही होगी ।

                     श्रीराम-रावण युद्ध 84 दिन ( इस अवधि में 15 दिन युद्ध नहीं ) चला लेकिन राम और रावण के बीच केवल 9 दिन युद्ध हुआ पर रावण का वध दशमी को ही हुआ । युद्ध के बावजूद वनवास के 20 दिन शेष रह गए थे । उसके बाद श्रीराम अयोध्या गए । राम पैदल ही लौटना चाहते थे मगर विभीषण की जिद के चलते श्रीराम पुष्पक विमान से अयोध्या लौटे । अयोध्या लौटने के बाद उन्होंने केवल एक बार जन सभा को संबोधित किया ।

                         रामचरितमानस में श्रीराम के लिये बिहसि शब्द बीस बार आया है जबकि वे उन्नीस बार हंसे और सत्रह बार मुस्कुराये हैं ।

       सुनत बिहसी बोले रघुबीरा ,
       ऐसेहिं करब धरहु मन धीरा ।
       अस कहि प्रभु अनुजहि समुझाई ,
       सिंधु समीप गए रघुराई ।।

अर्थ :– यह सुनकर श्री रघुवीर हंसकर बोले — ऐसे ही करेंगे, मन में धीरज रखो । ऐसा कहकर छोटे भाई को समझाकर प्रभु श्रीरघुनाथजी समुद्र के समीप गये । (सुन्दर कांड )

                   शेष समय तो वे दुख में ही रहे । बाल्यकाल में गुरु वशिष्ठ से शिक्षा प्राप्त करने वन गमन किया । जैसे-तैसे वन से लौटे तो फिर वनवास मिला । सीता का वियोग भी सहन किया ।

                    राम का विवाह और राज्याभिषेक दोनों शुभ मुहूर्त देख कर ही किया गया था । फिर भी न उनका वैवाहिक जीवन सफल रहा और न ही उनका राज्याभिषेक ही हो सका । जब मुनि वशिष्ठ से इसका जवाब मांगा गया तो उन्होंने साफ कह दिया -

          सुनहु भरत भावी प्रबल ,
          बिलखि कहेहूं मुनिनाथ ।
          हानि - लाभ जीवन - मरण ,
          यश - अपयश विधि हाथ ।।

                    वैसे भी ये भी तो कहा गया है -

          विधि का विधान जान ,
          सुख दुख सहिये ।
          जाहि विधि राखे राम ,
          ताहि विधि रहिये ।।

                           96445 43026
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