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अंग्रेजो भारत छोड़ो आंदोलन गांधी ने शुरू किया, अवाम ने अंजाम तक पहुंचाया

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भोपाल। 1942 का अग्रेजों, भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement) दरअसल भारत (India) की आजादी का आंदोलन का एक नवजागरण आंदोलन था। इसके चार आयाम थे राजनीतिक, सामाजिक, स्वदेशी भावना और आधुनिक शिक्षा। इसमें राजनीतिक और सामाजिक सुधार प्रमुख हैं। उस दौर का हिंदुस्तान(Hindustan) इन दोनों मोर्चों पर संघर्ष कर रहा था। हमें वह शासन प्रणाली चाहिए थी, जो हमारी अपनी होती। पर, उस समय का समाज इसके लिए तैयार नहीं था। वह अपने आंतरिक कमजोरियों से लड़ रहा था। महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) ने इस काम को भी इसीलिए जरूरी माना था। बाद में हमारे अन्य नायकों ने पत्र-पत्रिकाओं को माध्यम बनाया। यह विचार पद्मश्री विजय दत्त श्रीधर (Padmashree Vijay Dutt Sridhar) ने गांधी भवन (Gandhi Bhavan) में शुरू हुई खास व्याख्यान माला में प्रकट किए।

श्री श्रीधर ने कहा कि 1857 की क्रांति के बाद जनता के गिरे हुए मनोबल को बढ़ाना आसान काम नहीं था। लेकिन तिलक व महात्मा गांधी जैसे महानायकों ने देश की जनता को जागरूक कर विचार की मुख्य धारा में लाने का काम किया। उन्होंने कहा कि चम्पारण सत्याग्रह (Champaran Satyagraha) के दौरान गांधी जेल जाने इसलिए तैयार हुए, ताकि भारत की जनता जेल, गिरफ्तारी व अंग्रेजी कानूनों से भयभीत नहीं हो। आजादी के बाद महात्मा गांधी का इस्तेमाल भारतीय राजनीति (Indian Politics) ने अपने हितों के लिए किया, उनके सिद्धांतों को नहीं अपनाया। उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन की प्रासंगिकता पर बात करते हुए कहा कि जड़ता, उदासीनता, किंकर्तव्यविमूढ़ता भारत छोड़ो। वह कहते हैं कि आज की भ्रष्ट राजनीति के लिए उदासीन जनता भी कम जिम्मेदार नहीं है। अगस्त क्रांति दिवस पर हुई विशेष व्याख्यान माला का शुभारंभ सर्वधर्म प्रार्थना से हुआ। गांधी भवन न्यास के सचिव दयाराम नामदेव (Dayaram Namdev) ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि हमें क्रांति के मूल्यों को समझकर अपने व्यवहार में लाना होगा। महात्मा गांधी की अहिंसा के जरिए ही देश और समाज बदल सकता है। आज की सारी समस्याओं का समाधान गांधी दर्शन में है। पूर्व अधिकारी राजेश बहुगुणा ने भी कार्यक्रम में अपने विचार प्रकट किए।

अध्यक्षीय उद्बोधन में वरिष्ठ पत्रकार और समाजसेवी लज्जा शंकर हरदेनिया (Lajja Shankar Hardenia) ने कहा कि महात्मा गांधी ने लोगों में शहीद होने की अद्भुत क्षमता पैदा कर दी थी। इसलिए गांधी जी से जब अंग्रेजों ने पूछा कि आप यह आंदोलन कैसे लड़ेंगे, तब उन्होंने कहा कि भारत छोड़ो आंदोलन में हमारे सेनानी सारे भारतीय होंगे। इसका परिणाम हम आंदोलन की सर्वव्यापकता के रूप में पाते हैं। क्योंकि भारत छोड़ो आंदोलन के शुरू होते ही लगभग भारत के सभी बड़े नेता गिरफ्तार कर लिए गए थे। लेकिन भारत की जनता ने इस आंदोलन को अंतिम लक्ष्य तक पहुंचा दिया, जो गांधी विचार के प्रति लोगों का पागलपन था। कार्यक्रम के अंत में गांधी भवन न्यास के सदस्य और वरिष्ठ पत्रकार राजेश बादल (Rajesh Badal) ने आभार माना। श्री बादल ने कहा कि विद्वान वक्ताओं के संबोधन से भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के अनेक अध्यायों के बारे में जो धुंध छाई हुई थी, वह दूर हुई है। वास्तव में भारत छोड़ो आंदोलन में नौजवानों और महिलाओं की बड़ी भूमिका थी। उन्होंने ही इसे कामयाब बनाया क्योंकि गांधी जी समेत सारे शिखर पुरुष तो जेल में ठूंस दिए गए थे। तब उषा मेहता और अरुणा आसफ अली जैसी नेत्रियों और लाखों नौजवानों ने आजादी की मशाल उठा ली थी।

कार्यक्रम का संचालन पूर्व बैंक अधिकारी, गांधी भवन न्यास के सदस्य और विचारक अरुण डनायक ने किया। उन्होंने इस आंदोलन की अनेक अंतर कथाओं का हवाला दिया और आज के दौर में गांधी की प्रासंगिकता सुनिश्चित की । कार्यक्रम में समाजसेवी राजेंद्र कोठारी, राजनीतिक कार्यकर्ता और वाम चिंतक शैलेंद्र शैली, समाजसेवी रघुराज सिंह, वरिष्ठ गांधीवादी पत्रकार कैलाश आदमी, बालेंद्र परसाई, वरिष्ठ टीवी पत्रकार बृजेश राजपूत और मनोज शर्मा, डीएनएन चैनल के प्रधान संपादक राकेश अग्निहोत्री, वरिष्ठ संपादक राघवेंद्र सिंह, वरिष्ठ पत्रकार पंकज पाठक, वरिष्ठ संपादक अजय बोकिल, वरिष्ठ पत्रकार दीपक कांकर, श्याम संकेत, अमृत मिंज सहित समाज के विभिन्न वर्गों के प्रतिनिधि उपस्थित थे। भोपाल के गांधी भवन की ओर से संचालित वृद्ध आश्रम परिवार के सदस्य भी इसमें शामिल हुए। गांधी भवन परिवार के सभी सदस्य भी इसमें उपस्थित रहे।

Rohit Nage

Rohit Nage has 30 years' experience in the field of journalism. He has vast experience of writing articles, news story, sports news, political news.

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