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सियासत के गलियारे… पार्टियों में गुटबाजी का माहौल चरम पर

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रोहित नागे, इटारसी
जिस घर में बर्तन ज्यादा हों, टकराहट और आवाजें भी ज्यादा होने लगती है। जब जश्न या खास मौका हो तो यह प्रक्रिया और भी तेज होने लगती है। कुछ ऐसा ही इन दिनों भारतीय जनता पार्टी में देखने को मिल रहा है, क्योंकि चुनाव जैसा खास मौका आ गया है, जो पांच वर्ष में एक बार ही हाथ आता है। भाजपा के लोग अनुशासन, निष्ठा, प्रतिबद्धता, पार्टी लाइन जैसी चीजें भूल गये और खुलकर मीडिया तक अपने असंतोष को पहुंचाकर पार्टी पर दबाव बनाने लगे हैं। पहले कभी ऐसे संस्कार कांग्रेस के बताकर यही भाजपायी स्वयं को कैडर बेस्ड पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ता बताया करते थे।

गुटबाजी का माहौल चरम पर

खैर, परिवर्तन का दौर है तो राजनीति भी इससे अछूती कैसे रह सकती है। इन कार्यकर्ताओं ने अपना असंतोष, विरोध का तीर छोड़ दिया है, पार्टी इसे कैसे लेती है, यह समय की गर्त में है। लेकिन, इन घटनाओं से तय हो ही गया है कि भाजपा में गुटबाजी का माहौल चरम पर पहुंच रहा है। पहले करीब एक दर्जन लोग भोपाल जाकर वर्तमान विधायक को टिकट नहीं देने की मांग कर आये फिर पार्टी के मंडल के सबसे जिम्मेदार पद पर बैठे नेता ने पार्टी लाइन से हटकर मुद्दे को पार्टी फोरम के साथ ही मीडिया में भी उठा दिया कि उनको विधायक ने प्रवासी विधायक से दूर रहने की चेतावनी दी है। कहीं न कहीं वे इसके लिए विधायक के इर्द-गिर्द के लोगों को भी जिम्मेदार ठहराने से भी नहीं चूके। बहरहाल, यही कहा जा सकता है कि लोकतंत्र है और सबको अपनी बात कहने और करने का हक है।

दोनों पार्टी में कमी नहीं है दावेदारों की

कांग्रेस में दो दर्जन से अधिक दावेदार गिनाये जा रहे हैं, जो इस बार विधानसभा चुनावों में अपने राजनीतिक भाग्य को न सिर्फ आजमाना चाहते हैं, बल्कि इस बार मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार की संभावना को भुनाना और जीत के लिए जोर लगाना भी चाहते हैं। एक दावेदार प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष माणक अग्रवाल तो मीडिया से कह भी चुके हैं, कि इस बार टिकट मिली तो न सिर्फ चुनाव लड़ेंगे, बल्कि जीतने के लिए लड़ेंगे। अब हारने के लिए तो कभी उन्होंने भी चुनाव नहीं लड़ा होगा, फिर वे ही नहीं जो भी चुनाव में जाता है तो जीत के लिए ही जाता है। जनता के हाथ है कि जीत की माला पहनाती है या फिर हार का हार गले में डालती है। माणक अग्रवाल के अलावा गांधीवादी विचारक समीरमल गोठी के सुपुत्र संजय गोठी, पूर्व विधायक अंबिका प्रसाद शुक्ल के बेटे हेमंत शुक्ला, चंद्रगोपाल मलैया, शिवराज चंद्रोल, महेन्द्र शर्मा, शिवाकांत गुड्डन पांडेय, जितेन्द्र ओझा सहित दो दर्जन दावेदार हैं। भाजपा में वर्तमान विधायक डॉ.सीतासरन शर्मा, डॉ. राजेश शर्मा, पीयूष शर्मा, अखिलेश खंडेलवाल, पंकज चौरे, संदेश पुरोहित सहित एक दर्जन दावेदार हैं।

सांसद ने कर दिया स्पष्ट

सांसद राव उदय प्रताप सिंह के भी विधानसभा चुनाव लडऩे की अटकलें थीं। लेकिन, पिछले दिनों उन्होंने मीडिया में एक बयान के जरिये स्पष्ट कर दिया कि वे आठ विधानसभाओं के नेता हैं। केवल किसी एक विधानसभा में नेतृत्व की उनकी इच्छा नहीं है। वे खुद को आठ विधानसभा में चुनाव जिताने के लिए जिम्मेदारी लेने को तैयार हैं। सांसद श्री सिंह के इस बयान के बाद उनके विधानसभा चुनाव लडऩे की अटकलों पर विराम लग गया। सांसद के सिवनी मालवा क्षेत्र से विधानसभा चुनाव लडऩे की अटकलें काफी दिनों तक चलती रही थी। उनके बयान के बाद सारी अटकलों पर विराम लग गया है।

क्या हैं इस तरह के इशारे

राजनीति में कई खेल इशारों में भी होते हैं। अब यह समझने वालों पर है कि वे इशारों को कैसे समझते हैं। ये इशारे वास्तविकता की धरातल पर कितने खरे होते हैं, यह भी काम होने के बाद ही स्पष्ट हो पाता है। पिछले दिनों नर्मदापुरम में विधानसभा स्तर का जो सम्मेलन हुआ उसमें विधायक का विरोध करने वालों को खास तबज्जो नहीं मिली। यहां तक कि मंच भी नसीब नहीं हुआ। उस पर मुख्य अतिथि रामेश्वर शर्मा ये कह गये कि जनवरी में अयोध्या में श्रीराम मंदिर बनकर तैयार हो जाएगा। डॉ. शर्मा से पूछ लिया कि वे विधायक बनते ही अपने क्षेत्र के लोगों को रामलला के दर्शन कराने ले जाएंगे क्या? अब इस इशारे को क्या समझें?

ऐसे ही कांग्रेस में प्रदेश उपाध्यक्ष माणक अग्रवाल का लगातार दौरा करना भी संकेत दे रहा है कि शायद आलाकमान से उनको टिकट का इशारा मिला हो? हालांकि माणक भाई की चुनावों से पूर्व इस तरह की सक्रियता नयी नहीं है, वे पहले भी ऐसी सक्रियता दिखाते रहे हैं। लेकिन, राजनीति में ऊंट कब किस करवट बैठ जाए कहा नहीं जा सकता है। देखते हैं, वक्त का ये परिंदा कहां जाकर बैठता है और विधानसभा चुनावों में मुकाबला किन दो चेहरों के बीच होता है, फिलवक्त सब समय की रेत में दबा है और सामने है तो केवल इंतजार!

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