कितने सारे गीत रचे हैं ,
तुम्हें सुनाने मीत ।
भूल गए क्यों प्रीत हमारी
और प्रेम की रीत ।।
कोयल बागों में है कुहुँके ,
देख आम के बौर ,
तितली करती प्रेम फूल से ,
है वसंत का जोर ।
तुम भी आ जाओ उपवन में
ओढ़ पलाशी प्रीत ।।
भूल गए क्यों प्रीत हमारी …
कलरव करते पंछी देखो
होते ही फिर भोर ,
घर आँगन है सूना-सूना
अलसाया मन मोर ।
टेसू सा दहके मन सजनी
धरे नहीं है धीर ,
कलियों का मुख भँवरे चूमे ,
उठे ह्रदय में पीर ।
मादकता है घुली पवन में ,
मदन गया है जीत ।।
भूल गए क्यों प्रीत हमारी …
राह निहारत मनवा मेरा
तटनी के है तीर ,
पलकों की कोरें हैं भीगी
संध्या होत अधीर ।
बंद हुए भँवरे पंकज में
देख विभु का रूप ,
बिखर गई कौमदी नीर पर
कितना दृश्य अनूप ।
देती तुम्हें प्रीत उल्हाना ,
किसे सुनाये गीत ।।
भूल गए क्यों प्रीत हमारी …
महेश कुमार सोनी, माखन नगर .