- विनोद कुशवाहा
हिंदी साहित्य जगत् में जब भी इटारसी का जिक्र होगा तो बात विपिन जी से शुरू होकर विपिन जोशी पर ही खत्म हो जाएगी। न किसी स्थानीय कवि को याद किया जाएगा और ना ही किसी अंतर्राष्ट्रीय कवि के नाम का सम्मान के साथ उल्लेख होगा। वैसे भी मंचीय कवियों का नाम आदर से नहीं लिया जाता, क्योंकि ज्यादातर व्यवसायिक कवियों की कवितायें निहायत ही अश्लील, फूहड़ और चुटकुलेबाजी से भरपूर होती है। जिसे लोग रात के गंदे सपने की तरह देखते हैं/सुनते हैं और सुबह भूल जाते हैं।
खैर। 18 अगस्त, 1961 को विपिन जी की भोपाल में मृत्यु के बाद इटारसी में उनका कोई नामलेवा नहीं रह गया था। ऐसे में शम्भूदयाल व्यास ने ‘विपिन जोशी स्मृति बाल किशोर सदन’ के माध्यम से उनकी स्मृतियों को जीवित रखा। इस संस्था ने शहर की साहित्यिक गतिविधियों को भी नया जीवन दिया। तत्समय संस्था द्वारा आयोजित एक वाद विवाद प्रतियोगिता भी आयोजित की गई थी जिसमें मुझे प्रो डॉ राजेश्वर गौर के हाथों तृतीय पुरस्कार प्राप्त हुआ था। ‘विपिन जोशी स्मृति बाल किशोर सदन’ के द्वारा संभवत: एक लाइब्रेरी भी संचालित की जाती थी जो डॉ एनएल हेड़ा के सामने स्थित बैंक ऑफ इंडिया के एटीएम के समीप थी। पुरस्कार समारोह डॉ हेडा के क्लीनिक के स्थान पर पड़ी खाली जगह पर आयोजित किया गया था। पुरस्कार समारोह से याद आया कि ‘विपिन जोशी स्मारक समिति’ का पहला कार्यक्रम देशबंधु प्राथमिक शाला में आयोजित किया गया था। इसकी परिकल्पना वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद पगारे ने की थी। वे ही इस कार्यक्रम के सूत्रधार भी थे।
उपरोक्त कार्यक्रम केपी बस्तवार (तत्कालीन विधायक टिमरनी), विजय दुबे काकू भाई (तत्कालीन विधायक इटारसी) और अंबिका प्रसाद शुक्ल (तत्कालीन विधायक होशंगाबाद) की गरिमामय उपस्थिति में संपन्न हुआ था। इस सम्मान समारोह में गांधी वाचनालय के तत्कालीन ग्रन्थपाल वरिष्ठ साहित्यकार तथा ‘मानसरोवर साहित्य समिति’ के संस्थापक डॉ चंद्रकांत शास्त्री राजहंस एवं राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षक महेश प्रसाद भारती का विपिन जोशी स्मारक समिति ने सम्मान किया था। कार्यक्रम के संचालन का सौभाग्य मुझे मिला था लेकिन अफसोस कि जब संस्था ने अपना रजत जयंती वर्ष मनाया तो मुझे भुला दिया। उसके पश्चात् शुरू हुआ शिक्षकों के सम्मान का सिलसिला जो विगत् 40 वर्षों से निरंतर जारी है।
एक बात और। प्रमोद भाई ने एक अच्छा काम और किया। उन्होंने विपिन परम्परा के गीतकार नत्थूसिंह चौहान से इटारसी का संपूर्ण इतिहास लिखवाया। इस पुनीत कार्य में सहयोग हेतु मेरे अतिरिक्त सीबी काब्जा, टी आर चौलकर भी साथ थे। हम लोग बहुत भटके। कहां-कहां नहीं गए। किस-किस से नहीं मिले। वैसे भी बिना भटके ये कठिन कार्य सम्भव नहीं था। … लेकिन इटारसी के इस गौरवशाली इतिहास के विमोचन-समारोह के समय भी मुझे इस कार्यक्रम से दूर ही रखा गया। खैर। 1985 में उक्त संस्था की स्थापना के ठीक बाद में नगर के कतिपय साहित्यकारों ने विपिन साहित्य परिषद की स्थापना भी की। उसमें मेरे अलावा नत्थूसिंह चौहान, डॉ केसी सचान, डॉ ज्ञानेन्द्र पांडे, डॉ कश्मीर उप्पल, महेश दर्पण, दिनेश द्विवेदी, डॉ मनीषा तिवारी, डॉ ज्योति चौरसिया, बाबा भाई (आरएम खान), वीरां नायडू, हिमांशु मिश्र (राम), कुसुमा नायडू, आशा पवार, राजेन्द्र सिंह तोमर, सुधांशु मिश्र (मुन्ना), समर सिंह तोमर, आशीष सिंह तोमर, रॉकी तोमर आदि थे।
हम सबके संयुक्त प्रयासों से न केवल विपिन जोशी के काव्य संग्रह ‘साधना के स्वर’ का पुनप्र्रकाशन हुआ बल्कि दिनेश द्विवेदी द्वारा संपादित बहुचर्चित पत्रिका ‘पुनश्च’ का विपिन जी मार्फत पत्र और डायरी अंक भी सामने आया। संस्था द्वारा इटारसी के अग्रवाल भवन में आयोजित विमोचन समारोह में अशोक वाजपेयी ने साधना के स्वर के नए संस्करण का विमोचन किया। इसके अतिरिक्त विपिन साहित्य परिषद द्वारा आयोजित संस्था के आगामी कार्यक्रमों में कमला मौसी खंडवा, डॉ विजय बहादुर सिंह विदिशा, डॉ कमला प्रसाद, डॉ पूर्णचंद्र रथ, डॉ भगवत रावत, डॉ विनय दुबे, भोपाल, गीतकार बृजमोहन सिंह ठाकुर, माखनननगर आदि लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यिक विभूतियों ने शिरकत की।
पिन साहित्य परिषद ने इस महत्वपूर्ण अवसर पर युवा साहित्यकार डॉ धर्मेन्द्र पारे, हरदा, गीतकार, शाइरा डॉ जया नर्गिस, नर्मदापुरम् को विपिन जोशी सम्मान से नवाजा भी। इस कार्यक्रम के संचालन का दायित्व मुझे सौंपा गया था। साथ ही मेरे कविता संग्रह ‘तलाश खत्म नहीं होगी’ का विमोचन भी इस शुभ अवसर पर डॉ विजय बहादुर सिंह, डॉ स्व कमला प्रसाद, दिनेश द्विवेदी आदि ने किया। इस बीच कांग्रेस की सरकार में मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा के कार्यकाल में जब क्षेत्रीय विधायक विजय दुबे काकू भाई मध्यप्रदेश शासन के जन सम्पर्क उप मंत्री बनाए गए तब उनके सहयोग से स्व विपिन जोशी की अप्रकाशित कविताओं का संग्रह ‘छंदों की छांह में’ का प्रकाशन भी किया गया।
इतना ही नहीं इटारसी की नगरपालिका परिषद के सौजन्य से, बंद पड़े गांधी वाचनालय के श्यामल उद्यान में गीतों के राजकुमार विपिन जोशी की प्रतिमा स्थापित की गई। चूंकि गांधी वाचनालय वीरान पड़ा हुआ था। अतएव विपिन जी की प्रतिमा चोरी चली गई। बाद में स्थानीय नगरपालिका परिषद ने पुन: उनकी प्रतिमा की स्थापना करवाई। इसके लिये इटारसी शहर, नगरपालिका परिषद का हमेशा ऋणी रहेगा परन्तु बात वहीं पर आकर अटक जाती है कि गांधी वाचनालय के बन्द पड़े होने एवं वहां कोई सुरक्षा व्यवस्था न होने की स्थिति में स्व विपिन जोशी की नई प्रतिमा कितनी सुरक्षित है?
ज्ञातव्य है कि जिस उजाड़ श्यामल उद्यान के प्रांगण में गांधी वाचनालय स्थित है उसके मेन गेट 24 घंटे खुले रहते हैं। इटारसी की नगरपालिका इतनी गरीब है कि उसके पास यहां के गेट पर लगाने के लिये एक ताला तक नहीं है। इधर कभी इटारसी की साहित्यिक, सांस्कृतिक व सामाजिक गतिविधियों का केन्द्र रहे गांधी वाचनालय को आधार सेवा केंद्र में तब्दील कर दिया गया है। बताया जाता है कि आधार सेवा केंद्र में भी दो बार चोरी हो चुकी है। दुख का विषय है कि गांधी वाचनालय में एक पूर्णकालिक ग्रन्थपाल तथा उसकी अनुपस्थिति के कारण देखरेख के अभाव में हजारों रुपये मूल्य की बहुमूल्य किताबें दीमक के हवाले कर दी गईं। नगरपालिका परिषद, इटारसी इसके लिए जिम्मेदारी तय करे और दोषी कर्मचारी के खिलाफ सख़्त से सख्त कार्यवाही की जाए।