नर्मदापुरम। वर्तमान समय में बच्चों का पालन-पोषण, उनकी शिक्षा और संस्कार एक चुनौतीपूर्ण कार्य हो गया है। समाज में नैतिक मूल्यों की गिरावट, मोबाइल फोन का बढ़ता उपयोग और अन्य परिस्थितियों के चलते समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। शिक्षक, पालक और बालक के बीच संबंध शिथिल होते जा रहे हैं। इन्हीं सब समस्याओं के समाधान खोजने के उद्देश्य से समेरिटंस विद्यालय सांदीपनी परिसर में शनिवार को एक व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया।
तीन सत्र की इस व्याख्यान माला में विषय विशेषज्ञों ने अपने विचार और अनुभव सांझा किए। कायक्रम में शिक्षक, अभिभावकों और बच्चों ने भी अपनी सक्रिय सहभागिता निभाई। आयोजन के संबंध में संस्था के डायरेक्टर डॉ. आशुतोष कुमार शर्मा ने बताया कि यह एक रचनात्मक और सार्थक पहल है। इससे निश्चित रूप से हम समस्याओं के समाधान की दिशा में अग्रसर होंगे और बच्चों को तुलनात्मक रूप से अधिक श्रेष्ठ शिक्षा और संस्कार दे सकेंगे।
उन्होंने बताया कि शिक्षक, पालक और बालक तीनों सब एक समान विचार के साथ एक दिशा में चलते हैं, तभी परिणाम अच्छे हो सकते हैं। यदि इन तीनों में आसपी सामंजस्य नहीं होगा और विरोधाभास होगा तो आशानुरूप परिणाम नहीं आएंगे। इन तीनों के बीच आपसी समझ, विश्वास, श्रद्धा और मधुर संबंध होना आवश्यक है।
संवाद से ही निकलेगा समाधान
शासकीय एसएनजी विद्यालय के प्राचार्य संदीप शुक्ला ने प्रथम सत्र में विद्यार्थी, शिक्षक और अभिभावक, त्रिवेणी बनाम त्रिकोण विषय पर कहा कि यह सही है कि वर्तमान में इन तीनों के बीच कई बार सामंजस्य गड़बड़ा जाता है। ऐसे में हमें अधिक से अधिक संवाद कायम करना होगा। इसकी पहल विद्यालय या अभिभावक दोनों ओर से होनी चाहिए। इससे ही समस्या का समाधान निकलेगा। तीनों के बीच यदि सतत चर्चा चलती रहेगी तो कभी गतिरोध पैदा ही नहीं होगा।
अनुशासन बाहर भी और अंदर भी
न केवल विद्यार्थी जीवन में अपितु संपूर्ण जीवन में अनुशासन का विशेष महत्व है। इसके बिना जीवन सार्थक नहीं होगा। अनुशासन बाहरी आचार-व्यवहार के साथ ही आंतरिक भी होना जरूरी है। यह बात द्वितीय सत्र में एसडीओपी पराग सैनी ने कानून की मर्यादा और अनुशासन विषय पर कही। उन्होंने कहा कि आपके बोलने, चलने, खड़े होने, बैठने, खाने-पीने हर तरह के कार्य में अनुशासन झलकना चाहिए। अनुशासन परिस्थिति और स्थान के साथ बदलता रहता है। हमें उसी के अनुसार आचरण करना चाहिए। क्लास रूम का अलग अनुशासन है तो खेल मैदान का अलग।
सनातन की नींव पर ही बनेगा संस्कारों का भवन
अंतिम और समापन सत्र में शिक्षाविद् संतोष व्यास ने बच्चों में संस्कार विषय पर बोलते हुए कहा कि संस्कारों का भवन तो सनातन की नींव पर ही बन सकेगा। बदले आधुनिक परिवेश में हम सनातन परंपराओं को छोड़ते जा रहे हैं, इसी कारण संस्कारहीनता का संकट खड़ा हो गया है। हमें दिखावे में न उलझकर बच्चों को सनातन से जोडऩे की प्रक्रिया प्रारंभ करनी चाहिए। यह काम एक झटके में नहीं होगा। इसके लिए निरंतर प्रयास करने होंगे। इसके लिए हमें स्वयं की जीवन शैली में बदलाव करना होगा क्योंकि बच्चे कहने से नहीं अपितु देखने से सीखते हैं। संचालन और विषय की भूमिका प्रमोद शर्मा ने रखी जबकि समापन वक्तव्य प्राचार्य श्रीमती प्रेरणा रावत ने दिया।