श्री राधाकृष्ण महारास एवं रुकमणी मंगल विवाह प्रसंग पर झूमा पंडाल

Post by: Poonam Soni

इटारसी। वृंदावन गार्डन (Vrandavan gardan) न्यास कालोनी में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा (Shri mandbhagwat katha) में आज महारास की लीला और रुकमणि विवाह का प्रसंग चला। कथावाचक देवी हेमलता ने कहा कि महारास साधक की साधना है और आत्मा से परमात्मा के मिलन की लीला है। इसमें वासना का कोई स्थान नहीं है।
प्रसंग को विस्तार देते हुए प्रवचनकर्ता शास्त्री ने कहा कि प्रेम चरित्र का निर्माण करता है, चरित्र को बरबाद नहीं करता। लेकिन वर्तमान में युवाओं ने प्रेम के नाम पर प्रेम को ही बदनाम कर दिया है। चूंकि वर्तमान में प्रेम की परिभाषा श्रीकृष्ण के चरित्र से नहीं पाश्चात्य संस्कृति से निकल रही है जिसमें प्रेम के रूप में केवल वासना होती है, और श्रीराधाकृष्ण का प्रेम वासना रहित है। संसार सागर में कर्मयोगी भगवान श्रीकृष्ण से बड़ा ना कोई राजनेता हुआ है और ना कोई रणनीतिकार। सत्ता का संचालन हो या युद्ध का मैदान या प्रेम से परिपूर्ण वृन्दावन धाम, इन सब क्षेत्रों में सफलता की अमिट छाप छोड़ी है श्रीकृष्ण ने। संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा के छटवें दिन भगवान श्रीकृष्ण की माधुर्य लीलाओं का उल्लेख करते हुए देवी हेमलता ने कहा कि जब दीप अपने को समाप्त करता है, तब फूल खिलता है, और जब जीवन में माधुर्यता होती है, तब अभिमान स्वत: ही समाप्त हो जाता है। उन्होंने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण से बड़ा कोई नेता नहीं और उनसे बड़ा कोई राजनीतिज्ञ नहीं। अच्छे राजनीतिज्ञ व सत्ता संचालक का संदेश श्रीकृष्ण ने राजा द्वारिकाधीश की भूमिका में प्रदान किया है। तो अच्छे रणनीतिकार का संदेश महाभारत के युद्ध में पांडवों को विजय दिलाकरदिया है। कथा में आयोजन समिति के संयोजक जसवीर सिंह छाबड़ा, जगदीश मालवीय, शरद गुप्ता, किशनलाल सेठी, अशोक खंडेलवाल, अंशुल अग्रवाल, मनोज सोनी को सपत्नीक नारायण सेवा संस्थान की ओर से राजस्थानी सम्मान प्रदान किया। कथा के अंतिम पहर में रूकमणी मंगल विवाह का आयोजन झांकी के साथ किया। कथा का समापन रविवार को संत सम्मान के साथ किया जाएगा।

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