बेटी दिवस पर एक कविता शीर्षक “बेटी”
घर की रौनक होती है बेटी
घर का आभूषण होती है बेटी।
वो घर की चहक होती है
घर की महक होती है।
आँगन की गुनगुनी धूप होती है
छत की शीतल चांदनी होती है।
रस की धार होती है
मधुवन की बहार होती है।
माँ का अहसास होती है
ममता की प्यास होती है।
खुशियों का पैगाम होती हैं।
पिता के दिल का अरमान होती है।
सांसो का चंदन होती है
प्यार का वंदन होती है। दुनिया में सिर्फ वो बेटी ही होती है
जो बड़ी होकर दो कुलों दो परिवारों को
एक साथ रोशन करती है।
वो बहू भी होती है
वो बेटी भी होती है।
चंद्रकांत अग्रवाल(Chandrakant Agrawal)