झरोखा/पंकज पटेरिया। गौर वर्ण भव्य क्रांतिवान मुख्य मंडल उन्नत, ललाट, तपस्वी सा व्यक्तित्व देखकर लगता था जैसे किसी देव ऋषि से भेंट हो रही हैं। यह थे साहब बहादुर जो बरसों पहले होशंगाबाद के कलेक्टर हुआ करते थे। कीर्ति शेष के सीएच आचार्य साहब कलेक्टर जमीन से जुड़े थे। वह बहुत अनुशासित और कर्मठ प्रशासकीय अधिकारी थे। मां नर्मदा जी के प्रति उनके हृदय में अधिक श्रद्धा भक्ति भाव था, नियमित पूजा पाठ करते थे और उसके साथ उतने ही अपने कर्तव्य के प्रति समर्पित रहते थे। नर्मदांचल में उनके किए गए जनहित कार्यों को आज भी लोग याद करते हैं। अपनी निष्ठा और ईमानदारी के चलते उन्नति के सोपान पार करते, वे मध्य प्रदेश के मुख्य सचिव बने। यह किस्सा उनके उसी स्वर्णिम काल की एक अखबार में प्रकाशित खबर को लेकर हुई। सच्ची रोचक घटना पर आधारित जिसके चलते एक अनाथ और दर-दर भटक रहें एक युवक को अनुकंपा नियुक्ति मिली।
घटना होशंगाबाद की हैं, उन दिनों इन पंक्तियों का लेखक दैनिक भास्कर का जिला संवाददाता था। एक गरीब युवक लोगों के घर बर्तन मांज कर अपने विधवा मां और भाई बहन का भरण पोषण करता था। किसी ने सलाह दी कि तुम्हारे पिता की नौकरी में रहते हुए मृत्यु हुई हैं, लिहाजा तुम्हें उनकी जगह अनुकंपा नियुक्ति मिल सकती हैं। इस सलाह को मानते हुए उसने एक आवेदन अपनी पिता की जगह नौकरी देने का संबंधित विभाग में दिया। लेकिन सालों गुजरने के बाद भी वह ऑफिस दर ऑफिस भटकता रहा, लेकिन उसकी सुनवाई नहीं हुई। तभी मुझे पता लगा की एक परिवार यहां वह बर्तन मांजने आदि का काम करता था, वहां की एक बेटी को उसने धर्म बहन बनाया था। जिससे मुन्ना नाम का यह युवक हर साल रक्षाबंधन पर राखी बंधवा था, भेंट स्वरूप हजार बार मना करने पर अपनी तरफ से बहन को कुछ ना कुछ भेंट करता था।
लेकिन 1 साल उसके पास बहन को देने के लिए कुछ भी नहीं था, वह फिक्र बंद था और सोचा विचारी में वह नर्मदा जी में स्नान करने गया, जहां वे रोज आता था, आज उसने नर्मदा मैया से विनय कर अपने लाचारी बताई। इधर 11.12 का समय हो गया था भूखी-प्यासी उसकी धर्म बहन अपने भाई को राखी बांधने के लिए दरबाजे की ओर टकटकी लगाए इंतजार कर रही थी।
नर्मदा मैया ने मुन्ना की पुकार सुनी मुन्ना ने जैसी ही नर्मदा जी में डुबकी लगाई है तो अनायास उसके हाथ में चमकता एक रुपए का सिक्का आ गया वह तुरंत ही गीले कपड़ो में हाथ में सिक्का लिए अपनी बहन से राखी बांधने दौड़ा चला आया।
बहन ने जब उसकी यह हालत देखी तो थोड़ा प्यार से डांटते हुए पूछा यह क्या हालत बना रखी हैं। इतनी देर कहां लगाई। भरे कंठ आंखों में आंसू भरे भाई ने अपने बहन को सारी दास्तान सुना दी, सुनकर बहन उनके माता पिता की आंखें भी भर आई। खैर..बहन के परिवार ने उसके लिए लाए गए वस्त्र भेंट किए और भरे मन भीगे नैन अनोखी भेंट की निशानी वह सिक्का स्वीकार करी। नौकरी का क्या हुआ इस सवाल पर वह 15 सोलह साल का किशोर उदास लहजे मैं बोला कुछ नहीं जीजी, भाई अब तो पांव में छाले पड़ गए दफ्तरों पर माथा टेकते टेकते।
जब यह घटना मुझे पता लगी तो मैंने एक कथा खबर बनाकर भास्कर में भेजी दूसरे दिन खबर छप गई और ऐसा हड़कंप मचा की मुन्ना को ढूंढने पूरा जिला प्रशासन हरकत में आ गया। तात्कालिक कलेक्टर किरण विजय सिंह, तात्कालिक एसडीएम एस के तिवारी को इस पीडि़त लड़की की खोज खबर करने का आदेश दिया। खबर मैंने लिखी थी लिहाजा उन्होंने मुझसे संपर्क किया। मैंने मुन्ना का घर उन्हें बता दिया वे उसे अपने साथ कलेक्ट्रेट ले गए कलेक्टर ने उसका सारा प्रकरण समझा किया और तत्काल उसे अनुकंपा नियुक्ति देने का प्रकरण मुख्य सचिव महोदय को भेजा। यहां उल्लेखनीय है मुख्य सचिव आचार्य साहब ने नित्य अखबारों में चाय के साथ अपने लाँन में एक अखबार में यह खबर पढ़ी थी।
आचार्य साहब रोजमर्रा इस तरह किसी अखबार की जनहित से जुड़ी किसी खबर को पढ़ते तो उस पर लाल पेंसिल से घेरा लगाते और संबंधित जिले के कलेक्टर को तत्काल कार्यवाही करने के निर्देश देते। खुशकिस्मती से यह खबर भी उनकी नजर से गुजरी और उन्होंने तत्काल होशंगाबाद कलेक्टर को आदेश दिए नतीजतन उस गरीब बेरोजगार युवक को सरकारी नौकरी नसीब हो सकी। कुछ समय बाद मां नर्मदा जी के जयंती महोत्सव में शामिल होने चीफ सेक्रेटरी होशंगाबाद आए। कार्यक्रम मुताबिक उन्हें सर्किट हाउस घाट से जल मार्ग से महोत्सव के लिए जल मंच तक जाना था।
रेशमी कुर्ता और धोती पहने चीफ सेक्रेटरी प्रोटोकॉल के मुताबिक सुरक्षा घेरे में एक बड़ी नाव में सवार होने सर्किट हाउस घाट उतर रहे थे। तभी जिला प्रशासन के एक अधिकारी ने मुझे सीएस से मिलने का संकेत दिया, तत्काल मैंने अपना परिचय देकर उन्हें हार्दिक धन्यवाद देते हुए कहा….सर, आपने एक अनाथ बच्चे के साथ न्याय कर उसे सनाथ बना दिया दिया। तब मुख्य सचिव आचार्य साहब ने हाथ जोड़ मुझसे कहा नहीं नहीं भाई यह तो आपने शासन प्रशासन की मदद की हैं बंद आंखें खोली है। साधुवाद आपका आपने बड़ा काम किया है। और नर्मदे हर का उद्घोष कर वे नाव की ओर बढ़ गए। आज भी वह दृश्य एक भीगी स्मृति वन मेरी आंखों में सजा है। इस तरह के अच्छे व्यक्ति केवल यादों या चित्रों में ही मिलते हैं। प्रसंगवश मुझे बरबस अपनी एक चर्चित कविता की
पंक्तियां याद आ गई।
अच्छे लोग, अच्छे लोग सदा अच्छे रहते है,
अच्छे लोग बड़े नसीव से मिलते है।
जाने कितने जन्मों के कर्मो का पुण्य फल फलता है
जब अच्छे लोगों से मिलते हैं,
अच्छे लोगों का दर्शन आल्हादित करता हैं।
अच्छे लोग की आंखे आरती उतारती हैं,
आत्मा अर्चना करते हैं, अच्छे लोग अद्भुत आभामय होते हैं
पावन गंगाजल होते हैं, अच्छे लोगों की याद चिंतन में उदबत्ती सी सुलगती हैं, सांसों में स्तुति सी बहती हैं
अच्छे लोग आत्मा के इत्र होते हैं,
अच्छे लोग जहां होते हैं अच्छे होते है।
ऐसे अच्छे लोगों को प्रणाम। नर्मदे हर।
पंकज पटेरिया वरिष्ठ पत्रकार साहित्यकार
ज्योति सलाहकार संपादक शब्द ध्वज,
9340244352,,940750565