भगवान का नाम लेने से बड़े से बड़े पाप कट जाते हैं : योगेन्द्र वल्लभ

Post by: Rohit Nage

इटारसी। विजयासन देवी दरबार समिति (Vijayasan Devi Darbar Committee), सरस्वती सेवा समिति (Saraswati Seva Samiti) एवं गृहलक्ष्मी महिला मंडल इटारसी (Grihalakshmi Mahila Mandal Itarsi) के संयुक्त तत्वावधान में आठ दिवसीय श्रीमद भागवत कथा तृतीय दिवस की कथा में कथा वाचक आचार्य योगेन्द्र वल्लभ (Acharya Yogendra Vallabh) ने भगवान के विराट स्वरूप का वर्णन किया। विराट स्वरूप में 3 लोक 14 भवन विराजमान हैं। अर्थात भगवान कण-कण में विराजमान हैं।

जड़भरत चरित्र का वर्णन करते हुए कथा व्यास आचार्य योगेन्द्र वल्लभ जी ने कहा कि जड़भरत का प्रकृत नाम भरत है, जो पूर्वजन्म में स्वायंभुव वंशी ऋषभदेव के पुत्र थे। मृग के छौने में तन्मय हो जाने के कारण इनका ज्ञान अवरुद्ध हो गया था और वे जड़वत् हो गए थे जिससे ये जड़भरत कहलाए। जड़भरत की कथा विष्णुपुराण के द्वितीय भाग में और भागवत पुराण के पंचम काण्ड में आती है।

अजामिल चरित्र का वर्णन करते हुए कथा व्यास योगेंद्र वल्लभ महाराज ने कहा कि भगवन्नाम उच्चारण बड़े से बड़े पाप को काटने की सामथ्र्य रखता है क्योंकि भगवान के नाम के उच्चारण से मनुष्य की बुद्धि भगवान के गुण, लीला और स्वरुप में रम जाती है और स्वयं भगवान की भी उसके प्रति आत्मीय बुद्धि हो जाती है।

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