इटारसी। अगले सप्ताह 10 सितंबर को गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) है। इस दिन भगवान गणेश का जन्म हुआ था। इसी दिन से लेकर 10 दिनों तक गणेश उत्सव मनाया जाता है। मध्यप्रदेश के प्रसिद्ध मंदिर है जहां प्रसिद्ध गणेश प्रतिमाओं के बारे में बताया गया है। सबसे पहले इंदौर के बड़े गणपति (Bada Ganpati) के बारे में…। देश में कई अनोखे और एतिहासिक मंदिर हैं। यह मंदिर अपने स्थापत्य और अलग खूबी के कारण दुनियाभर में प्रसिद्ध हैं। ऐसा ही एक मंदिर इंदौर में है। इसे बड़े गणपति के नाम से सभी जानते हैं। यह मंदिर भगवान की मूर्ति और उसके आकार के लिए जाना जाता है। शहर ही नहीं देश-विदेश से श्रद्धालु इस मंदिर में दर्शन करने आते हैं। इस मूर्ति को विश्व की प्राचीन मूर्तियों में विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा माना जाता है। इंदौर इस मंदिर की प्रतिमा इतनी ऊंची है कि चोला चढ़ाने के लिए सवा मन घी और सिंदूर का प्रयोग होता है। भगवान के श्रंगार में पूरे आठ दिन का समय लगता है। यहां साल में चार बार ही चोला चढ़ाया जाता है। जबकि हाल ही कुछ वर्षों में थाईलैंड में भी एक पार्क में 39 मीटर की मूर्ति स्थापित है, लेकिन यह मूर्ति मंदिर में नहीं हैं और प्राचीन नहीं है।
उज्जैन के पंडित को स्वप्न में दिया था निर्देश
कहा जाता है कि उज्जैन निवासी स्वर्गीय पंडित नारायण दाधीच भगवान गणेश के अनन्य भक्त थे। एक दिन भगवान गणेश ने उन्हें स्वपम्न में दर्शन दिए और निर्देश दिया कि उनके मंदिर का निर्माण किया जाए। स्वप्न में ही दाधीच ने भगवान से पूछा कि कहां पर मंदिर बनाया जाए, तो उन्होंने इंदौर स्थित स्वंभू गणेश प्रतिमा के पीछे मंदिर बनाने का आदेश दिया। दाधीच ने खोज की और बड़ा गणपति का मंदिर निर्माण हुआ। आज इस पूरे क्षेत्र को बड़े गणपति नाम से ही जाना जाता है। वर्तमान में मंदिर की देखरेख पंडित नारायण दाधीच की तीसरी पीढ़ी के पंडित धनेश्वर दाधीच कर रहे हैं।
25 फीट ऊंची है मूर्ति
बड़े गणपति स्थित भगवान गणेश की मूर्ति 25 फीट ऊंची है और 14 फीट चौड़ी है। कहा जाता है कि जिस स्वरूप में मूर्ति है, उसी स्वरूप में भगवान गणेश ने दाधीच को दर्शन दिए थे। यह मूर्ति 4 फीट ऊंची चौकी पर विराजमान है। इस मूर्ति के निर्माण में तीन साल लगे और 1901 में गणेश स्थापना पूरी हुई। ऐसा माना जाता है कि इस स्वरूप में यह विश्व की एक मात्र गणेश प्रतिमा है।
नवरत्न, अष्टधातु, मिट्टी, तीर्थों के जल से बनी है मूर्ति
इस मूर्ति के निर्माण में चूना, गुड़, तीर्थों की मिट्टी और सभी तीर्थों के जल का प्रयोग किया गया है। इसका निर्माण सोना, चांदी, लोहा, तांबा समेत सभी अष्टधातुओं और हीरा, पन्ना समेत नवरत्नों का प्रयोग किया गया है।
मनोकामना पूर्ति के लिए दूर्वा चढ़ाते हैं
बड़े गणपति मंदिर में दूर्वा चढ़ाने दूर-दूर से भक्त आते हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां आकर पांच, सात 11 दूर्वा चढ़ाने से मनोकामना पूर्ण होती है। यहां दूर्वा की माला चढ़ाने की खास परंपरा है।