गुल जहां पे खिला नहीं मिलता ।
उस चमन में मज़ा नहीं मिलता ।।
तन्हा मंज़िल तलाशना है हमें ,
सबको ही काफ़िला नहीं मिलता ।
जो हमें छोड़कर जहां से गए ,
उनका यारब पता नहीं मिलता ।
जो न मां-बाप की करें इज़्ज़त ,
उनसे ज्यादा गिरा नहीं मिलता ।
मिट गया देख कर तुम्हें जो फिर ,
दिल में फिर दूसरा नहीं मिलता ।
ग़मज़दा यार लग रहे हैं भले ,
आप सा दिलजला नहीं मिलता ।
बात करते खरी-खरी जो हैं ,
कुछ भी दिल में छिपा नहीं मिलता ।
महेश कुमार सोनी, माखन नगर