दिन वही फिर से सुहाने आए,
ज़ाम आँखों से पिलाने आए।
भूल हमको जो गये कब के हैं,
याद वो मीत पुराने आए।
ज़िंदगी गुज़री कहाँ से होकर,
राह में फिर वो ठिकाने आए।
मुफ़लिसी में रहे भूखे बच्चे ,
वास्ते शहर कमाने आए ।
दूर रहते थे सदा जो मुझ से ,
देखिए आँख मिलाने आए ।
शाम का वक़्त है ढलता सूरज,
यूँ लगा मुझको बुलाने आए।
भीगते नैन लबों पर लम्हें,
जाने क्या-क्या वो बताने आए।
महेश कुमार सोनी,
माखन नगर