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कहानी: जवाब…

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अदिति टंडन: ‘साक्षी, सुनो आज तुमसे कुछ कहना चाहता हूं। कई दिनों से सोच रहा था। हिम्मत करके कह रहा हूंl ‘सारांश ने साक्षी की आंखों में झांकते हुए कहा। साक्षी की सांस एक पल को जैसे रुक गई। संसार भी जैसे थम सा गया। आखिर सारांश क्या वही कहना चाहता है जो वो सुनना चाहती है।

‘मैं तुम्हें चाहने लगा हूं, साक्षी। तुम अब जैसे मेरी ज़िंदगी बन गई हो। क्या तुम भी… ‘सारांश ने अपनी बात अधर में ही छोड़ दी। सारांश को लगा कि यदि आज वह साक्षी से नहीं कह पाया तो शायद कभी नहीं कह पायेगा ।

आसमानी रंग के सूट में साक्षी अन्य दिनों की अपेक्षा कुछ ज्यादा ही सुंदर दिख रही थी। वैसे भी वह कम खूबसूरत नहीं थी। उसके माथे पर लाल बिंदी सूरज की तरह चमक रही थी। पहाड़ों के पीछे सूर्य भी अस्ताचल को जा रहा था । साक्षी और सारांश नदी किनारे बैठे सूरज को ढलते देख रहे थे।

‘ये आप क्या कह रहे हैं सारांश। आप बहुत अच्छे दोस्त हैं मेरे पर ऐसा मैं कैसे सोच सकती हूं। ‘साक्षी ने अचानक खामोशी तोड़ते हुए कहा। खामोशी जो दोनों के बीच पसरी हुई थी। ‘क्यूं नहीं सोच सकतीं? क्या मैं इस काबिल नहीं? ‘ सारांश ने साक्षी का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा। उसके हाथों की तपिश वह महसूस कर रहा था।

‘प्लीज, आप ऐसे मत कहिए । मेरा मतलब ये नहीं था। ‘साक्षी ने अपना हाथ अलग करने की कोशिश नहीं की। उसके वश में होता तो वो ये हाथ ज़िंदगी भर के लिए थाम लेती। ‘फिर क्या बात है, बोलो न साक्षी। ऐसे चुप मत रहो। ‘सारांश के माथे पर पसीने की बूंदें चमक रही थीं।

आप तो मेरा अतीत जानते हैं सारांश । मैं एक तलाकशुदा हूं। फिर भी आप मोहब्बत की बात कर रहे हैं। ‘कहते हुए साक्षी ने सारांश के कंधे पर सर टिका दिया।

सारांश के हाथों की पकड़ मजबूत हो गई थीं। साक्षी को भी एक सुखद स्पर्श का अहसास हो रहा था। तभी उसने अपने आप को सारांश से अलग कर लिया।

‘ये ठीक नहीं है सारांश। चलिये अब घर चलते हैं। ‘ साक्षी ने उठने का प्रयास किया। मगर सारांश ने उसका हाथ फिर थाम लिया। कभी न छोड़ने के लिए।

‘हां, मैं जानता हूं तुम्हारा बीता हुआ कल। अगर तुम्हारा तलाक हुआ भी है तो उसमें तुम्हारी क्या गलती है ? जो पति , पत्नी को बराबरी का दर्जा न दे। प्रेम न दे। बस दुर्व्यवहार करे। ऐसे जीवनसाथी से अलग होने का कदम जो तुमने उठाया वो सही ही तो है। इसके लिए तुम खुद को दोष क्यूं देती हो ? ‘ सारांश भावुक हो चला था।

‘पता नहीं सारांश पर लोग अक्सर मुझे ही तो ताने देते हैं। ‘साक्षी का आंखें भर आईं। उसके आंसुओं से सारांश का कंधा तर हो रहा था।

‘लोगों की मत सुना करो । लोग बस ताने दे सकते हैं पर तुम्हारा गम बांटने नहीं आने वाले। साक्षी हर इंसान को ज़िंदगी में ऐसे भावनात्मक प्रेम की जरूरत होती है जो जीने का सहारा बन सके ।
मैं तुमको उसी साथी के रूप में देखने लगा हूं और तुम्हारी जिंदगी में वही प्यार बन कर आना चाहता हूं। कहो न साक्षी क्या तुम राज़ी हो? ‘सारांश ने प्रश्न किया।

‘हो सकता है आप सही कह रहे हों लेकिन अब इस उम्र में शादी के बारे में सोचना कुछ अजीब सा लगता है। देखिए न अब तो आपके और मेरे बालों में कुछ – कुछ सफेदी भी झलकने लगी है। ‘साक्षी सारांश के बालों को अपनी उंगलियों से सहला रही थी।

‘तुम भी कैसी बात करती हो । प्यार तो दिल के जज़्बात होते हैं और जज्बातों की तो कोई उम्र नहीं होती। बस प्यार सच्चा होना चाहिए और मैं तुमसे सच में प्यार करता हूं। ‘सारांश के स्वर में दृढ़ता थी। उसके मन ने साक्षी को स्वीकार कर लिया था।

आसमान में बादल घिर आये थे। हवा में ठंडक थी। शाम हो चली थी।

‘समझती हूं मैं आपके प्यार को और महसूस भी करती हूं पर समाज से डरती हूं सारांश। ‘कहते हुए साक्षी ने अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश की।

‘जब मैं तुम्हारे साथ हूं तो क्यूं डरती हो। जमाने के हर सवाल का जवाब है हमारे पास। ‘ सारांश ने साक्षी के हाथों को कसकर थाम लिया। इस बार साक्षी ने भी हाथ छुड़ाने की कोशिश नहीं की। उसे सारे सवालों का जवाब मिल गया था।

आसमान भी खुल गया था। तारे छिटक रहे थे। चांद इस प्रणय का गवाह बन गया था। दूर कहीं कोई बांसुरी बजा रहा था।

Aditi tandan

अदिति टंडन, आगरा (उ.प्र.)

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