विनोद कुशवाहा
ये कविता मेरी माँ ने 71 वर्ष पूर्व 27 अगस्त, 1950 को ‘रक्षा बंधन’ पर्व के अवसर पर लिखी थी। तब मेरी माँ की आयु मात्र 12 वर्ष की थी। ‘रक्षा बंधन’ पर मेरे मामाजी जयपाल सिंह कुशवाहा को प्रेषित उक्त कविता आज भी मेरे पास सुरक्षित है। हालांकि वे दोनों अब इस दुनिया में नहीं हैं।
अपनी माँ किसे अच्छी नहीं लगती। यही कारण है कि मैं समय-समय पर उनके गुणों और योग्यता की चर्चा करता रहा हूं। इस बार केवल इतना बताना चाहता हूं कि उन्होंने प्रयाग महिला विद्यापीठ, इलाहाबाद से शिक्षा प्राप्त की थी जिसकी तत्कालीन प्रधानाचार्य सम्माननीय महादेवी वर्मा थीं। माँ को पढ़ने का बेहद शौक था और वे लिखती भी थीं। गुरुदत्त, विमल मित्र, अमृतलाल नागर आदि उनके पसंदीदा लेखक रहे। सो लिखने-पढ़ने का गुण उनसे ही मुझे विरासत में मिला। मैं स्वयं भी शरतचंद्र, विमल मित्र, आर के नारायण, अज्ञेय, विनोद कुमार शुक्ल, जयशंकर के लेखन से प्रभावित रहा हूं। अब मेरा अपना क्या प्रकाशित हुआ उसकी चर्चा फिर कभी। फिलहाल मेरी माँ का 71 वर्ष पूर्व लिखा हुआ ये गीत पढ़िए। आप निश्चित ही सुखद एहसास से भर उठेंगे। ‘नर्मदांचल परिवार’ तथा “बहुरंग” स्तम्भ की ओर से ‘रक्षा बंधन पर्व’ की असीम, अनन्त, आत्मीय, अशेष शुभकामनाएं।
विनोद कुशवाहा (Vinod Kushwaha)