- अखिलेश शुक्ल
1979 का साल था। मुंबई की गलियों में एक युवा लड़की अपने सपनों को पंख लगा रही थी। कविता कृष्णमूर्ति, जिन्होंने मुंबई से ग्रेजुएशन किया था, अब जिंगल्स गाने लगी थीं। लेकिन उनकी जिंदगी में एक मोड़ तब आया जब हेमा मालिनी की माँ के जरिए उनकी मुलाकात मशहूर संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल से हुई। यह मुलाकात कविता के करियर का टर्निंग पॉइंट साबित हुई।
लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने कविता को अपने साथ रख लिया। उनका काम था गीतों की डमी रिकॉर्डिंग करना। यानी, फाइनल गाने से पहले उसका एक प्रारूप तैयार करना। इसके बाद लता मंगेशकर जैसी दिग्गज गायिकाएं उन गीतों को अंतिम रूप देती थीं। लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल उस समय के टॉप म्यूजिक डायरेक्टर थे, इसलिए कविता को हफ्ते में तीन-चार बार डमी रिकॉर्डिंग करनी पड़ती थी। इस तरह, उन्हें प्लेबैक सिंगिंग का बेहतरीन अभ्यास मिल रहा था।
बच्चे की आवाज़ बनने का चैलेंज
साल 1982-83 की बात है। कविता को फिल्म “प्यार झुकता नहीं” के गीतों की डमी रिकॉर्डिंग का मौका मिला। फिल्म के निर्माता के.सी.बोकाडिया और गीतकार एस.एच.बिहारी भी स्टूडियो में मौजूद थे। उस दिन गाना “तुमसे मिलकर ना जाने क्यों” रिकॉर्ड किया जा रहा था। कविता ने शब्बीर कुमार के साथ मिलकर गाना गाया। रिकॉर्डिंग खत्म होने के बाद बोकाडिया ने कविता से कहा, “यह गाना फिल्म में एक बच्चा गाएगा। क्या आप बच्चे की आवाज़ में इसे गा सकती हैं? अगर अच्छा गाया तो हम इसे फिल्म में रख लेंगे।”
कविता के लिए यह एक बड़ी चुनौती थी। वह थोड़ी नर्वस हुईं, लेकिन उन्होंने इसे स्वीकार किया। उन्होंने बच्चे की आवाज़ में गाना रिकॉर्ड किया। हालांकि, उन्हें उम्मीद नहीं थी कि उनकी आवाज़ फिल्म में रखी जाएगी। लेकिन कुछ दिनों बाद उन्हें खबर मिली कि उनका गाना फिल्म में शामिल कर लिया गया है। यह कविता के लिए एक बड़ी उपलब्धि थी।
पहली बार सुनी अपनी आवाज़
जब फिल्म रिलीज़ हुई, तो कविता बेहद उत्साहित थीं। वह थिएटर में फिल्म देखने गईं, क्योंकि वह अपनी आवाज़ में गाए गए गाने को सुनना चाहती थीं। गाना सुनकर उन्हें गर्व महसूस हुआ। इस गाने के लिए उन्हें प्लैटिनम अवॉर्ड भी मिला।
हालांकि, यह कविता का पहला फिल्मी गाना नहीं था। इससे पहले 1980 की फिल्म “मांग भरो सजना” में उन्होंने गाना “काहे को ब्याही बिदेश” गाया था। लेकिन यह गाना ज्यादा नोटिस नहीं किया गया। इसलिए, कविता “प्यार झुकता नहीं” के गाने को अपना पहला ऑफिशियल गाना मानती हैं।
टाइपकास्ट होने का खतरा
इस गाने की सफलता के बाद कविता को बच्चों की आवाज़ के लिए टाइपकास्ट होने का खतरा भी था। उन्हें ज्यादातर बच्चों पर फिल्माए जाने वाले गाने ही मिलने लगे थे। लेकिन कविता ने इस चुनौती को भी पार किया और अपने करियर को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया।
बचपन से ही संगीत का जुनून
कविता कृष्णमूर्ति का जन्म 25 जनवरी 1958 को दिल्ली में हुआ था। बचपन से ही उन्हें संगीत की शिक्षा मिली। उनके पिता, जो खुद एक संगीत प्रेमी थे, ने उन्हें शास्त्रीय संगीत सीखने के लिए प्रोत्साहित किया। कविता ने बचपन से ही हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की तालीम लेनी शुरू कर दी थी। यही वजह थी कि वह आज इतनी सफल और लोकप्रिय गायिका बन पाईं।
संघर्ष और सफलता का सफर
कविता का सफर आसान नहीं था। मुंबई आकर उन्होंने कई चुनौतियों का सामना किया। शुरुआत में उन्हें छोटे-मोटे काम करने पड़े। लेकिन उनकी मेहनत और लगन ने उन्हें बॉलीवुड में एक मुकाम दिलाया। “प्यार झुकता नहीं” के गाने की सफलता के बाद उन्हें कई बड़े प्रोजेक्ट्स मिले। उन्होंने कई फिल्मों में बच्चों के लिए गाने गाए, जो बेहद लोकप्रिय हुए।
करियर की ऊंचाइयां
कविता ने अपने करियर में कई यादगार गाने गाए। उन्होंने न केवल बच्चों के लिए, बल्कि बड़े कलाकारों के लिए भी गाने रिकॉर्ड किए। उनकी आवाज़ की मिठास और लचीलापन उन्हें अन्य गायिकाओं से अलग बनाता था। उन्होंने कई भाषाओं में गाने गाए, जिससे उनकी पहचान एक बहुमुखी गायिका के रूप में बनी।
45 भाषाओं में 50,000 गानों का रिकॉर्ड
कविता कृष्णमूर्ति ने अपने करियर में 45 भाषाओं में लगभग 50,000 गाने गाए हैं। यह एक अद्भुत रिकॉर्ड है, जो उनकी प्रतिभा और मेहनत को दर्शाता है।
उनके कुछ प्रमुख गानों में शामिल हैं:
- 1. “तुमसे मिलकर ना जाने क्यों” (फिल्म: प्यार झुकता नहीं)
- 2. “काहे को ब्याही बिदेश” (फिल्म: मां भरो सजना)
- 3. “हमको हमी से चुरा लो” (फिल्म: मोहब्बतें)
- 4. “धक धक करने लगा” (फिल्म: बेताब)
- 5. “प्यार दिवाना होता है” (फिल्म: मस्त)
आपको उनके कोनसे गीत पसंद हैं? कमेंट बॉक्स में लिखकर बताएं।
व्यक्तिगत जीवन और प्रेरणा
कविता कृष्णमूर्ति ने न केवल अपने करियर में, बल्कि व्यक्तिगत जीवन में भी कई चुनौतियों का सामना किया। उन्होंने अपने परिवार और करियर के बीच संतुलन बनाए रखा। उनकी सफलता की कहानी न केवल संगीत प्रेमियों के लिए, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणादायक है जो अपने सपनों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहा है।
निष्कर्ष
कविता कृष्णमूर्ति की कहानी हमें सिखाती है कि मेहनत और लगन से हर चुनौती को पार किया जा सकता है। उनका सफर न सिर्फ प्रेरणादायक है, बल्कि यह बताता है कि सपने देखो और उन्हें पूरा करने के लिए हर मुश्किल का सामना करो। कविता ने अपनी आवाज़ से न केवल बॉलीवुड, बल्कि लाखों दिलों में भी जगह बनाई। उनकी कहानी हमें यह याद दिलाती है कि सफलता पाने के लिए धैर्य, मेहनत और विश्वास बहुत जरूरी है।
कविता कृष्णमूर्ति आज भी संगीत की दुनिया में सक्रिय हैं और नई पीढ़ी को प्रेरित कर रही हैं। उनका योगदान न केवल बॉलीवुड, बल्कि भारतीय संगीत की दुनिया में अमूल्य है। उनकी आवाज़ आज भी लाखों लोगों के दिलों में गूंजती है और उन्हें एक नई ऊर्जा देती है।

अखिलेश शुक्ल,
सेवा निवृत्त प्राचार्य, लेखक, ब्लॉगर