इटारसी। जैन समाज के पर्यूषण पर्व के दौरान विभिन्न धार्मिक कार्यक्रमों के अलावा प्रवचन भी चल रहे हैं। पंडित आशीष शास्त्री समाज के लोगों को जीवन जीने के अनेक महत्वपूर्ण उदाहरण देकर प्रेरित कर रहे हैं।
आज अपने प्रवचनों में उन्होंने कहा कि जो वस्तु अपनी नहीं है, उसमें मेरापन छोडऩा, त्याग कहलाता है। वह त्याग जब सम्यग्दर्शन के साथ होता है, तब उत्तम त्याग धर्म कहलाता है।
कई जगहों पर त्याग को दान के पर्यायवाची शब्द की तरह प्रयोग किया जाता है। परंतु दोनों में कुछ अंतर इस प्रकार हैं- त्याग पर (दूसरी) वस्तु की मुख्यता किया जाता है, दान अपनी वस्तु की मुख्यता से किया जाता है। पर वस्तु हमारी न थी, न है और न होगी। हमने मात्र अपने ज्ञान में उसको अपना मान रखा है। त्याग, मात्र उसे अपना मानना छोडऩा के भाव का नाम है तथा, श्रावकों की मुख्यता से भी इसका कथन दान नाम से किया है।
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जानिये, क्या छोड़ना त्याग कहलाता है

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