इटारसी। श्री शतचंडी महायज्ञ का यह पचासवॉ वर्ष है। इस वर्ष आयोजन समिति उत्साहित है, भक्तों का उत्साह भी कम नहीं है। स्वर्ण जयंती वर्ष में मंदिर समिति ने कुछ बदलाव और नयापन भी आयोजन में लाने का प्रयास किया है। हालांकि जिस तरह से प्रसाद पाने देर रात तक भक्तों की कतार होती है, यज्ञ में शामिल भक्तों की संख्या कम दिखाई दे रही है। अब इस वर्ष के श्री शतचंडी महायज्ञ में महज दो दिन का समय शेष रह गया है। 12 फरवरी को यज्ञ की पूर्णाहुति के साथ समापन हो जाएगा। शहर के बड़े धार्मिक आयोजन में शुमार श्री बूढ़ी माता मंदिर के श्री शतचंडी महायज्ञ की बुनियाद पांच दशक पूर्व रखी गई तो उस दौरान के भक्तों ने सोचा भी नहीं होगा कि यह आयोजन भव्य रूप ले लेगा।

श्री बूढ़ीमाता मंदिर मालवीयगंज में श्री शतचंडी महायज्ञ का इस बार 50 वॉ वर्ष है। 1975 में इस निर्जन, सुनसान इलाके में स्थित छोटी सी मढिय़ा के जीर्णोद्धार के मकसद से यहां प्रथम बार श्री शतचंडी महायज्ञ कराने का निर्णय लिया था। उस वक्त श्री सालगराम पगारे और श्री बम बहादुर के साथ डॉ. राजेंद्र अग्रवाल और दुष्यंत अदलिया, हरकचंद मेहता ने भावसार बाबू के सामने मंदिर में जीर्णोद्धार कराने यहां शतचंडी महायज्ञ कराने की भावना रखी। भावसार बाबूजी की सहमति के बाद सभी ने विश्वनाथ दादा से इसमें मदद का अनुरोध किया। दोनों की मदद और इन भक्तों के काम के आधार पर 1975 में श्री बूढ़ीमाता मंदिर में शतचंडी महायज्ञ की नींव पड़ी।
श्री शतचंडी महायज्ञ के सात दिनों में शुरूआत घट यात्रा से होने के बाद घट स्थापना, पंचांग पूजन, ब्राहण वरण, मण्डपस्थ देवता पूजन, श्री रामरचित मानस के सुंदरकांड पाठ व श्रीमद देवी भागवत पाठ प्रारंभ तथा अरणि मंथन द्वारा अग्नि प्राकटय होता है। इसके बाद प्रतिदिन सुबह व दोपहर में दुर्गासप्तशती पाठ एवं रूद्राभिषेक के साथ हवन, आरती एवं प्रसाद वितरण और यज्ञ के अंतिम दिन पूर्णाहुति पूजन, आरती, प्रसाद वितरण ब्राहण एवं कन्या भोजन व महाप्रसाद इसके अलावा प्रतिदिन दोपहर में प्रवचनकर्ता के द्वारा प्रवचन होते हैं।
इस वर्ष यह पचासवॉ महायज्ञ है, और श्रीमद् देवी भागवत का पहली बार आयोजन हो रहा है, जिसमें भक्त पहुंचकर कथा श्रवण कर रहे हैं। अर्धशताब्दी वर्ष पूर्व डाली गई नींव का परिणाम है कि श्री बूढ़ी माता मंदिर में होने वाले इस महायज्ञ में हर वर्ष इटारसी, होशंगाबाद और आसपास के लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं। 50 वर्ष पूर्व हर घर से एक रुपए और कुछ बड़े दानदाताओं की मदद से लगाया छोटा सा पौधा पेड़ बन गया है।