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ग्राम राइटडेम टोला के लोगों ने अफसरों की बातों में आकर छोड़ा आशियाना

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अब छत भी मयस्सर नहीं, रुखी-सूखी के भी पड़े लाले

इटारसी। शासन से दस लाख रुपए Ten lekh rupees मिलने के बाद जिंदगी संवरने का सपना राइट डेम टोला Right dam tola के लोगों को बाबई और बागरातवा के बीच ग्राम मानागांव के पास ले आया। वन विभाग Forest department के अफसरों Officers ने बातों में ऐसा फंसाया कि सारा गांव ही बिना कोई विरोध किये विस्थापन को तैयार हो गया। लेकिन, अब ये ग्रामीण Rural खुद को छला हुआ महसूस कर रहे हैं। इनके संघर्ष को आगे बढ़ाया इटारसी के अधिवक्ता रमेश के साहू ने। हाईकोर्ट जबलपुर से इनको न्याय दिलाने में सहयोग किया और अब जीत तो कोर्ट में हो गयी, लेकिन मैदान में अफसर अब भी इनकी पीड़ा को महसूस नहीं करके देरी कर रहे और इनका दुख बढ़ते जा रहा है। कोर्ट ने तीन माह में इनको योजना अनुसार पैसा देने और जब तक पैसा न मिले, जहां हैं, वहीं रहने देने के आदेश दिये हैं।

केन्द्र सरकार की राष्ट्रीय बाघ संरक्षण योजना के अंतर्गत तवा बांध के दाहिनी तरफ ग्राम राइट डेम टोला को विस्थापित करके ग्राम मानागांव के पास भेजा गया है। दरअसल, सभी को दस-दस लाख रुपए देने का अफसरों ने कहा और इसी से विस्थापन होना था। इन लोगों ने एक निजी भूमि स्वामी से बात करके मानागांव के पास जमीन खरीद का सौदा किया। लेकिन, पैसा नहीं मिलने पर भू-स्वामी ने उनको जमीन का मालिकाना हक भी नहीं दिया और उक्त भूमि पर भी नहीं जाने दिया। ये लोग गांव तो खाली कर ही चुके थे।

रोड किनारे अस्थायी ठिकाना Roadside temporary location
विस्थापन योजना Visthapan scheme के अंतर्गत दस लाख रुपए मिलने की आस में इन लोगों ने 6 जून से गांव खाली करना शुरु किया और एक सप्ताह में 13 जून तक ये मानागांव Managaon के पास उस भूमि Land के निकट पहुंच गये जहां उनको भूमि खरीदनी है। पैसा नहीं देने के कारण उक्त भू-स्वामी ने भूखंड पर नहीं जाने दिया तो ये लोग उसी से सटी जगह पर कच्चे झोपड़े बनाकर रहने लगे। यह सरकारी भूमि थी। जब तहसीलदार को जानकारी मिली तो पटवारी ने आकर देखा और इनके अतिक्रमण के प्रकरण बना दिये और पुलिस में भी रिपोर्ट दर्ज करा दी।

दोनों जगह बयान देना पड़ा
पुनर्वास समिति Rehabilitation committee राइट डेम टोला तवानगर के अध्यक्ष मनोज कौरव का कहना है कि हमें अतिक्रमणकारी बना दिया गया। पटवारी-आरआई ने आकर नापजोख की और केस तैयार कर दिया। हमें तहसीलदार के पास बुलाया गया, जहां हमारे बयान हुए। इसके अलावा हमारे खिलाफ बाबई पुलिस थाने में भी शिकायत दर्ज करायी गयी है। हम लोगों को बाबई थाने जाकर भी अपने बयान दर्ज कराने पड़े। हम कोई अतिक्रमण नहीं कर रहे हैं, हमें जैसे ही पैसे मिलेंगे, हम भूखंड स्वामी को पैसा देकर अपने मकान तैयार करना शुरु कर देंगे।

कुल 32 लोगों के नाम दर्ज हैं
जिन लोगों को केन्द्र सरकार की राष्ट्रीय बाघ संरक्षण योजना के अंतर्गत दस-दस लाख रुपए मिलने की जानकारी दी गई है, उसमें 32 लोगों के नाम हैं। इनको भूमि इसलिए उपलब्ध नहीं करायी गयी, क्योंकि इनके पास पट्टे नहीं हैं। यदि इनके पास पट्टे होते तो सरकार सरकारी जमीन पर पुनर्वास करती और दस लाख रुपए से अन्य सुविधाएं जुटाकर दी जाती। मुखिया को खेतिहर भूमि भी देने का प्रावधान है। लेकिन, राइड डेम टोला के इन करीब दो दर्जन परिवारों के पास पट्टा नहीं होने से यह परेशानी भोगनी पड़ रही है।

रोटी के भी पड़े लाले
पहले जहां ये लोग रहते थे, वह तवा नदी का किनारा था। मछली पकड़कर किस तरह से अपने परिवार का गुजारा कर लिया करते थे। कुछ मजदूरी कर लिया करते थे। अब अपनी भूमि छोड़कर, छत छोड़कर आये तो छत भी मयस्सर नहीं और रूखी-सूखी भी हाथ से गयी। खेतों में मजदूरी करने का प्रयास किया। लेकिन, अनुभव नहीं होने से ये खेतीहर मजदूर भी नहीं बन सके। तवा में मछली पकडऩे गये तो उनको बागरा तवा क्षेत्र का निवासी बताकर मछली का शिकार करने से भी रोक दिया गया। अब राह नहीं सूझ रही है।

इनका कहना है…
हमें जो वादा करके अपने गांव से हटाया गया है, उसे पूरा नहीं किया गया है। हमें दस से पंद्रह दिन में दस-दस लाख रुपए देने का कहा था, तीन माह से अधिक समय हो गया है, कुछ भी पैसा नहीं मिला है, हम परेशान हो गये हैं। यदि पैसा नहीं देते तो हम वापस अपनी जगह पर चले जाएंगे।
मनोज केवट, अध्यक्ष पुनर्वास समिति

न्यायमित्र योजना के अंतर्गत उच्च न्यायालय जबलपुर में एक रिट याचिका प्रस्तुत की है जिसमें निर्देश जारी हुए हैं कि पात्र हितग्राहियों को विस्थापन योजना का पैसा तीन माह के भीतर दिया जाए और अभी जहां काबिज हैं, वहां से तब तक नहीं हटाया जाए, जब तक पैसा नहीं मिल जाता।
रमेश के साहू, अधिवक्ता

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