महालक्ष्मी व्रत : जाने शुभ मुहूर्त, पूजन विधि, व्रत कथा सम्‍पूर्ण जानकारी 2022

Post by: Aakash Katare

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महालक्ष्मी व्रत

महालक्ष्मी व्रत शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजन सामग्री, व्रत नियम, पूजा विधि, व्रत कथा, क्षमा प्रार्थना मंत्र, आरती सम्‍पूर्ण जानकारी 2022 

महालक्ष्मी व्रत (Mahalaxmi Vrat)

हिंदू पंचाग के अनुसार ‘भाद्रपद’ में शुक्ल पक्ष की ‘अष्टमी’ से 16 दिनों तक महालक्ष्मी व्रत किया जाता है। और अश्विन महीने की कृष्ण पक्ष अष्टमी को यह व्रत समाप्त होता है। यदि भक्त इस व्रत को 16 दिन नहीं रख सकते हैं तो शुरू के 3 और अन्‍त के 3 व्रत रख सकते हैं। इस पवित्र व्रत को करने की विधि भगवान श्रीकृष्ण ने पांडव में सबसे बड़े भाई युधिष्ठिर को बताई थी।

महालक्ष्‍मी व्रत में अन्न ग्रहण नहीं किया जाता है। और 16 वें दिन माता महालक्ष्मी व्रत का उद्यापन कर समापन किया जाता है। शास्त्रों में इस व्रत का बहुत अधिक महत्‍व बताया है। यदि कोई स्त्री या पुरूष इस व्रत को पूर्ण भक्ति-भाव से करते हैं तो उसके जीवन मे धन, सुख, समृद्धि, आदि की प्राप्ति होती है और उनके जीवन मे कभी कष्‍ट नहीं आता।

महालक्ष्मी व्रत शुभ मुहूर्त  (Mahalakshmi Vrat Auspicious Time) 

महालक्ष्मी व्रत

  • अष्टमी तिथि शुरू: 03 सितंबर, 2022 दोपहर 12:28 बजे
  • अष्टमी तिथि समाप्त: 04 सितंबर, 2022 सुबह 10:40 बजे
  • महालक्ष्मी व्रत 2022 समाप्त: 17 सितंबर, 2022 शनिवार

महालक्ष्मी व्रत महत्व (Mahalaxmi Vrat Significance)

महालक्ष्मी व्रत

हिंदू धर्म में महालक्ष्मी व्रत का एक विशेष महत्व है। महालक्ष्मी व्रत माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद पाने के लिए किया जाता है। इस व्रत मे माता महालक्ष्‍मी की 16 दिनों तक विधिवत पूजा की जाती है। ऐसी मान्‍यता है जो भी इस व्रत को पूर्ण भक्ति-भाव से पूरा करता है उसे धन, सुख, सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

महालक्ष्मी व्रत पूजन सामग्री (Mahalaxmi Vrat Puja Material)

महालक्ष्मी व्रत पूजन सामग्री : फूल, दूबा, अगरबत्ती, कपूर, इत्र, रोली, गुलाल, अबीर, अक्षत, लौंग, इलायची, बादाम, पान, सुपारी, कलावा, मेहंदी, हल्दी, बिन्‍दी, बिछिया, वस्त्र, मौसमी फल-फूल, मावे का प्रसाद और सोलह श्रृंगार।

महालक्ष्मी व्रत नियम (Mahalaxmi Vrat rules)

  • महालक्षमी व्रत मे 16 दिनों तक प्रतिदिन सुबह माता लक्ष्मी की पूजा की जाती हैं इन 16 दिनों में माता के आठ रूपों की पूजा होती है।
  • माता लक्ष्मी की पूजा के बाद सोलह दूबा को एक साथ बांधा जाता है। इसे पानी में डुबोकर शरीर एवं घर पर छिड़का जाता है और पूजा के अंत में महालक्ष्मी व्रत कथा का पाठ किया जाता है।
  • जो लोग इस व्रत का पालन करते हैं उन्‍हें 16 दिनों तक मांस-मंदिरा से दूर रहना चाहिए।
  • व्रत के अंतिम दिन कलश की पूजा की जाती है। यह पानी, कुछ सिक्कों और अक्षतों से भरा होता है। कलश पर आम या पान के पत्तों रखे जाते हैं जिसके ऊपर नारियल रखा जाता है।
  • कलश पर चंदन, हल्दी का लेप और कुम कुम लगाया जाता हैं कलश में नए लाल रंग के कपड़े का एक टुकड़ा बांधा जाता हैं।

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महालक्ष्मी व्रत पूजा विधि (Mahalaxmi Vrat Puja Method)

महालक्ष्मी व्रत

  • महालक्ष्मी व्रत करने वाले भक्‍त को प्रात: जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए।
  • इसके बाद चावल के आटे के घोल से माता लक्ष्मी के चरण बनाने चाहिए।
  • इसके बाद अपनी कलाई पर 16 गांठ लगाकर एक धागा बांधना चाहिए।
  • अब माता लक्ष्मी की गज लक्ष्मी प्रतिमा स्थापित कर कलश की स्थापना करनी चाहिए।
  • इसके बाद भगवान गणेश जी की पूजा करनी चाहिए।
  • इसके बाद माता लक्ष्मी को पुष्प माला, अक्षत, सोना या चाँदी आदि अर्पित करना चाहिए।
  • इसके बाद महालक्ष्मी व्रत की कथा पढ़ें या सुनना चाहिए।
  • इसके बाद माता लक्ष्मी की आरती कर उन्हें खीर का भोग लगाना चाहिए।
  • पूजा के बाद एक दीपक माता लक्ष्मी के आगमन के लिए घर के बाहर जलाना चाहिए।

इन मंत्रों का करें जप (Chant These Mantras)

महालक्ष्मी मंत्र : ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:॥

लक्ष्मीबीज मंत्र: ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीभयो नमः॥

लक्ष्मी गायत्री मंत्र : ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॐ॥

महालक्ष्मी व्रत कथा (Mahalaxmi Vrat Katha)

महालक्ष्मी व्रत

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार एक गाँव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था। वह नियमित रुप से भगवान विष्णु की पूजा किया करता था। उसकी पूजा-भक्ति से खुश होकर भगवान विष्णु उसे दर्शन देते है और एक वर मांगने के लिए कहते हैं। तब ब्राह्मण माता लक्ष्मी का निवास अपने घर में होने का वर मागंता हैं।

यह सुनकर भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी की प्राप्ति का मार्ग ब्राह्मण को बताते हुए कहते है कि मंदिर के सामने प्रतिदिन एक स्त्री आती है जो वहां आकर गोबर के कन्‍डे थापती है। तुम उसे अपने घर आने का आमंत्रण देना और वह स्त्री ही माता लक्ष्मी हैं। माता लक्ष्मी के तुम्हारे घर आने के बाद तुम्हारा घर धन और धान्य से भर जाएगा। और भगवान विष्णु चले जाते है। अगले दिन जब वह सुबह चार बजे मंदिर के सामने बैठ जाता है।

तब वहां माता लक्ष्मी कन्‍डे थापने के लिए आती है तो ब्राह्मण उनसे अपने घर आने का निवेदन करते है। तब माता लक्ष्मी ब्राह्मण से कहती है की तुम महालक्ष्मी व्रत करो, 16 दिनों तक व्रत करने और 16वें दिन रात्रि को चन्द्रमा को अर्ध्य देने से तुम्हारी मनोकामंना परी होगी। ब्राह्मण माता लक्ष्‍मी के कहे अनुसार व्रत विधि‍-विधान से करता हैं। माता लक्ष्‍मी खुश होकर उसके घर आती है उसके जीवन मे धन, सुख, समृद्धि, आदि की प्राप्ति होती है।

महालक्ष्मी व्रत क्षमा प्रार्थना (Mahalaxmi Vrat Forgiveness Prayer)

नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरिप्रिये।

या गतिस्तवप्रपन्ननां सा मे भूयात्वदर्चनात्।।

आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।

पूजा चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरि

मंत्रहीन क्रियाहीन भक्तिहीन सुरेश्वरि

यत्पूजितं मया देवि परिपूर्ण तदस्तु मे।।

त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।

त्वमेव विद्या द्रविण त्वमेव, त्वमेव सर्व मम देवदेवा।।

पापोहं पापकर्माहं पापात्मा पापसम्भवः।

त्राहि मां परमेशानि सर्वपापहरा भव।।

अपराधसहस्त्राणि क्रियन्तेहर्निश मया।

दासोयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि।।

सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांशुकगन्धमाल्यशोभे।

भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवन भूतिकरि प्रसीद महयम।।

 महालक्ष्मी आरती (Mahalaxmi Aarti)

ओम् जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।

तुमको निशिदिन सेवत, हर विष्णु विधाता।।

उमा रमा ब्रहमाणी, तुम ही जग-माता।

सूर्य चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता।

दुर्गा रूप निरंजनि, सुख सम्पति दाता।

जो कोई तुमको ध्याता, ऋद्धि-सिद्धि पाता।

तुम पाताल निवासिनी, तुम ही शुभ दाता।

कर्म-प्रभाव प्रकाशिनि, भव निधि की त्राता।।

जिस घर में तुम रहती, सब सद्गुण आता।

सब संभव हो जाता, मन नहीं घबराता।।

तुम बिन यज्ञ न होवे, वस्त्र न कोई पाता।

खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता ।।

शुभगुण मंदिर सुंदर, श्रीरोदधि-जाता।

रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहीं पाता।।

महालक्ष्मी जी की आरती, जो कोई नर गाता।

उर आनंद समाता, पाप उतर जाता ।

बोलो भगवती महालक्ष्मी की जय।।

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