माण्डवगढ़। हरी-भरी मनोहारी वादियां, स्वर्णित इतिहास के साक्षी महल और चार वंशों का इतिहास समेटे माण्डवगढ़ या माण्डू को मध्य प्रदेश का कश्मीर भी कहा जाता है। माण्डू का समृद्ध इतिहास आपको हैरत में डाल देगा। माण्डू को मालवा का स्वर्ग भी कहा जाता है। माण्डू चार वंशों के कार्यकाल का साक्षी रहा है इनमें परमार काल, सुल्तान काल, मुगल काल और पवार काल शामिल हैं।
परमार राजाओं ने बसाया माण्डवगढ़
माण्डगढ़ को परमार शासकों ने बसाया था। हर्ष, मुंज, सिंधु और राजा भोज इस वंश के महत्वपूर्ण शासक रहे हैं। हालांकि इनका ध्यान माण्डू से ज्यादा धार पर था, जो माण्डू से करीब 30 किलोमीटर है। माण्डू के महलों का वास्तुशिल्प अद्वितीय है। दरअसल सुल्तानों के काल में यहां महत्वपूर्ण निर्माण हुए हैं।
दिलावर खां गोरी ने इसका नाम बदलकर शादियाबाद (आनंद नगरी) रखा। होशंगशाह इस वंश का महत्वपूर्ण शासक रहा था। मुहम्मद खिलजी ने मेवाड़ के राणा कुम्भा पर विजय के उपलक्ष्य में अशर्फी महल से जोड़कर सात मंजिला विजय स्तंभ का निर्माण कराया था। अब इसकी केवल एक ही मंजिल सलामत है।
जहाज महल, माण्डवगढ़
सुल्तान गयासुद्दीन (1469-1500) इस वंश का अगला शासक था। बताया जाता है कि उसकी 15000 बेगमें थीं। माण्डू में उसने शाही महल का निर्माण अपनी बेगमों के लिए ही कराया। यह महल अपने श्रंगारिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है। मुंज और कपूर सरोवरों के मध्य बना यह भवन जहाज जैसा दिखाई देता है।
हिंडोला महल, माण्डवगढ़
पाश्र्वभित्तियों के झुके हुए होने के कारण यह महल हिण्डोला (झूले) के समान प्रतीत होता है। अत: इसे हिण्डोला महल के नाम से जाना जाता है। यह रोमन वास्तुकला का उदाहरण माना जाता है।
चम्पा बाबड़ी
जहाज महल के उत्तर-पश्चिम में स्थित चम्पा बाबड़ी का पानी चम्पक पुष्प की तरह सुगंधित है इसलिए इसे चम्पा बाबड़ी कहा जाता है। बाबड़ी की भू योजना अष्टाकार है जबकि ऊपर की ओर यह गोलाकार है एवं भू-तल में कमरे हैं जिन्हें गर्मी के महीनों में ठंडे एवं हवायुक्त रहने के लिए बनाया गया था।
मुंज तालाब के भू स्तर पर बने इन्हीं कमरों से होते हुए बाबड़ी के तल तक जाया जा सकता है। इस बाबड़ी के नजदीक ही हमाम अथवा स्नानागार स्थित है, जिनमें ठंडे एवं गर्म पारी की सुविधा रहती थी। हवा एवं प्रकाश के लिए इन्हीं हमाम की छतों से सितारे की आकृति कटी है। इस बाबड़ी का निर्माण 14 वी-15 वी शताब्दी में किया गया था।
रूपमती महल
यह महल 365 मीटर ऊंची खड़ी चट्टान के सीमांत भाग पर निर्मित है। यह मूलरूप से एक बुर्ज के समान प्रतीत होता है। यह मंडप बाज बहादुर की प्रेयसी रूपमती के नाम से संबंधित है। बताया जाता है कि रूपमती पवित्र नर्मदा का दर्शन करने के लिए इस मंडप का उपयोग करती थी।
बाज बहादुर महल, माण्डवगढ़
शासक नासिरुद्दीन ने रूपमती-बाजबहादुर का महल बनवाकर उनके प्रेम कथानक को अमर बनाया। सम्राट अकबर जब दिल्ली की गद्दी पर बैठा तो उसने माण्डू की ओर विशेष ध्यान दिया। उसने अशर्फी महल का जीर्णोद्वार कराया। जहांगीर को माण्डू की रातें बेहद पसंद थीं। वह कई बार माण्डू आया और उसने जहाज महल का जीर्णोद्वार कराया।
अंग्रेजी शासन की नींव
यदि यह कहा जाए कि अंग्रेजी शासन की नींव यही पड़ी तो गलत नहीं होगा। सन् 1617 में जहांगीर जब माण्डू आया तो नूरजहां उसके साथ थी और उसने जलमहल में एक लड़की को जन्म दिया। सम्राट जहांगीर ने इसी अवसर पर सर टामस रो को प्रसव चिकित्सा के लिए माण्डू आमंत्रित किया था और इस चिकित्सा से खुश होकर उसने अंग्रेजों को व्यापार की अनुमति दी थी।
रानी रूपमती और बाज बहादुर का अमर प्रेम
आज माण्डू रानी रूपमती और बाजबहादुर के अमर प्रेम के कारण भी याद किया जाता है। बाजबहादुर अपने समय के संगीतज्ञ थे। अबुल फजल तो उन्हें महानतम संगीतज्ञ कहते हैं। फरिश्ता के अनुसार वह राग दीपक के उस्ताद थे।
किन्तु उनकी प्रेयसी पर बादशाह की नजर लग गई। बताते हैं कि अकबर ने रूपमती को दिल्ली गायकी के लिए बुलाया था, लेकिन नर्मदा दर्शन के बाद ही खानपान ग्रहण करने वाली रूपमती ने इसे स्वीकार नहीं किया। बादशाह की नजर रूपमती पर लग चुकी थी। इसका परिणाम यह हुआ कि रानी रूपमती को जहर खाकर अपनी जान देनी पड़ी।
बाजबहादुर कुछ दिनों तक अकबर के मनसबदार रहे लेकिन रूपमती के वियोग ने उन्हें अधिक दिनों तक जीने नहीं दिया और वह चल बसे। रूपमती खुद एक संगीत विशारदा थीं। बाजबहादुर- रूपमती के महल में आज भी वह भवन सुरक्षित है जिसमें रूपमती ने संगीत सम्राट तानसेन को हराया था।
आल्हा-ऊदल की वीरता की कहानी
आल्हाखण्ड में महाकवि जगनिक ने 52 लड़ाइयों का जिक्र किया है। उसमें पहली लड़ाई माड़ौगढ़ की मानी जाती है, जिसका साम्य इसी माण्डू से किया जाता है। इसलिए आल्हा गायकों के लिए माण्डू एक तीर्थस्थल सरीखा है। बताते हैं कि बुंदेलखंड के लोग इस लड़ाई के अवशेष देखने आते हैं।
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कैस पहुंचें माण्डू या माण्डवगढ़?
माण्डू या माण्डवगढ़ इंदौर 99 किलोमीटर दूर है। महू, इंदौर और खंडवा निकटतम रेलवे स्टेशन हैं। दिल्ली-मुंबई रेलमार्ग पर रतलाम यहां से 124 किलोमीटर दूर है। धार से प्रत्येक आधे घंटे पर बस सेवा है। इसके अलावा इंदौर, खंडवा, रतलाम, उज्जैन और भोपाल से भी नियमित बस सेवा है। यहां जाने का सर्वश्रेष्ठ समय जुलाई से मार्च तक है।रात्रि विश्राम के लिए प्राइवेट और पर्यटन विभाग के होटल हैं।