इटारसी। दीपावली (Deepawali) पर आपके घर लक्ष्मी पूजन (Laxmi Poojan) के लिए मूर्ति तैयार कर रहे मूर्तिकार परिवारों को अब लक्ष्मी से ही उनके घर लक्ष्मी आने का आस है, क्योंकि गणेश और दुर्गा उत्सव ने उनको अपेक्षित आमदनी न देकर मायूस ही किया है। कोरोनाकाल (Corona Virus) में पर्वों का सिमटता दायरा कई मेहनतकश लोगों के लिए परेशानी का सबब लेकर आया है। जिन उत्सवों से माटीकला के महारथी अपने वर्षभर का राशन और बच्चों का भविष्य संवारने के सपने देखते थे, उन सबके सपने धुंधला गये हैं। हालात यहां तक बदतर हो गये हैं कि जिन बच्चों ने उच्च शिक्षा लेकर भविष्य गढऩे के बड़े सपने देखे थे, वे भी अब अपनी परंपरागत माटी कला के माध्यम से परिवार को मदद करने लगे हैं।
माटी कला के माध्यम से प्रजापति समाज की बड़ी संख्या में कलाकार अपने वर्षभर का राशन और बच्चों की शिक्षा के लिए उन उत्सवों पर आश्रित रहते हैं, जिनमें मिट्टी की मूर्ति, दीये व अन्य सामग्री का उपयोग होता है। इस वर्ष वैश्विक महामारी कोविड-19 के अंतर्गत पहले लॉकडाउन ने और फिर कोविड से बचाव के लिए बनी शासन की गाइड लाइन और निर्देशों से इन पर्वों का दायरा सीमित कर इन लोगों की आमदनी पर गहरी और गंभीर चोट पड़ी है। जीवन का महत्व समझते हुए सभी ने कोरोना की गाइड लाइन का शिद्दत से पालन किया है। लेकिन, एक लंबा अरसा बीतने के बावजूद कोरोना का डर खत्म नहीं हुआ है और त्योहार भी सीमित हो गये। ऐसे में उनकी इस कला से होने वाली आमदनी भी खासी कम हो गयी है।
अब तो दीपावली से ही आस
दुर्गा उत्सव (Durga Utsav)और गणेश उत्सव (Ganesh Utsav) इन माटी के कलाकारों की करीब 50 फीसद आमदनी का जरिया होते हैं। यह आय तो गयी, अब दीवाली से ही आस बची है। दीपावली में लक्ष्मी जी की मूर्ति, दीये की बिक्री इनके घरों में रोशनी करती है और लक्ष्मी के घर में आगमन का रास्ता साफ करती है। पुरानी इटारसी में छात्रा अंजलि मालवीय कहती हैं कि दुर्गा और गणेश उत्सव में अपेक्षित आमदनी नहीं होने से परिवार पर संकट था। स्कूल-कालेज अभी खुले नहीं हैं, घर पर ही परिवार को इस परंपरागत कारोबार में मदद कर रहे हैं ताकि लोगों के घर लक्ष्मी पूजन हो तो अपने घर भी लक्ष्मी का आगमन हो।
इस वर्ष कई आसन हैं देवी के
इस वर्ष भी धन की देवी लक्ष्मी की मूर्तियां कई अलग-अलग आसनों पर विराजेंगी। पुरानी इटारसी में ज्यादातर मूर्तिकार कलाकारों का निवास है और माटीकला के माध्यम से देवी-देवताओं की मूर्ति, दीये, मटके और ऐसे ही मिट्टी से बनी कलाकृतियों की आपूर्ति शहर की बड़ी आबादी को यही से होती है। दीपावली के लिए लक्ष्मी जी की मूर्ति तैयार करने में कलाकारों का पूरा परिवार रात-दिन जुटा है। इस वर्ष धन की देवी को शेषनाग पर विराजमान किया है तो कुछ के आसन कमल भी हैं। माता, कुबेर के साथ हैं तो गणेश के साथ भी हैं। इन मूर्तियों की कीमत 50 रुपए से 500 रुपए तक है।