इटारसी। स्व का बोध ही स्वदेशी के विचार का मूल तत्व है। इसी भाव से स्वाभिमान, स्वतंत्रता और भारतीय जीवन दर्शन, विचार, पारिवारिक व सामाजिक मूल्य, स्वभाषा, भारतीय शिक्षा और हमारे इतिहास के महानायकों के प्रति आत्म गौरव की अनुभूति का भाव मन में आता है। प्राचीन समय में भारत विश्व में ज्ञान के साथ ही हस्त कौशल उद्योग, व्यापार का बड़ा केंद्र होने के कारण सर्वाधिक समृद्ध अर्थव्यवस्था था। दासता काल में सुनियोजित रूप से हमारे धार्मिक आस्था, अध्ययन और उद्योग व्यापार के केंद्र ध्वस्त किये गये तो हम दुनिया में पीछे चले गये। स्वतंत्रता संग्राम की मूल अवधारणा के पीछे स्वदेशी आंदोलन की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
उक्त विचार सरस्वती शिक्षा समिति (Saraswati Shiksha Samiti) के उपाध्यक्ष एवं विद्याभारती (Vidya Bharti) पूर्व छात्र परिषद के विभाग संयोजक अभिषेक तिवारी (Abhishek Tiwari) ने सरस्वती विद्या मंदिर (Saraswati Vidya Mandir) में चल रहे संभागीय नवीन आचार्य विकास वर्ग के संवाद सत्र में व्यक्त किए। मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित अभिषेक तिवारी ने अपने उद्बोधन में स्वदेशी की संकल्पना विषय पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि स्वभाषा, स्वधर्म, हमारे पारिवारिक व सामाजिक मूल्यों के साथ ही स्वदेशी वस्तुओं के प्रति आग्रह का मूल स्व का बोध ही है। आज के युग में देश का आर्थिक सामथ्र्य ही विश्व में उसका स्थान तय करता है। भारत (India) आज दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।
उन्होंने भारत के आर्थिक महाशक्ति बनने की दिशा में स्वावलंबन व स्वदेशी के प्रति समर्पण की आवश्यकता विषय पर भी विस्तृत जानकारी दी। उल्लेखनीय है कि विद्या भारती मध्यभारत प्रांत की योजना से आयोजित सात दिवसीय प्रशिक्षण वर्ग में प्रतिदिन के संवाद सत्र में विद्वान वक्ताओं द्वारा विभिन्न विषयों पर नव चयनित आचार्यों का प्रबोधन किया जाता है। इस अवसर पर अध्यक्षता समाजसेवी एवं व्यवसायी भोजराज मूलचंदानी (Bhojraj Moolchandani) ने की। समिति के सदस्य डॉ पंकज मणि पहारिया (Dr. Pankaj Mani Paharia), विभाग समन्वयक रामकुमार व्यास (Ramkumar Vyas), वर्ग संयोजक अशोक कुमार दुबे (Ashok Kumar Dubey) सहित संचालन टोली व अन्य आचार्य उपस्थित रहे।