काम की तलाश में गुजरात गये मजदूरों को मजदूरी के बदले बुरी तरह से पीटा

Post by: Rohit Nage

ठेकेदार ने कमरे में बंद करके पीटा, बमुश्किल छूटकर भागे

इटारसी। काम की तलाश में गुजरात गये मजदूरों के एक दल को पैसा न देकर मारपीट करके भगाया गया है। ऐसे कुछ मजदूरों को आज यहां रेलवे स्टेशन पर आदिवासी सामाजिक कार्यकर्ताओं ने उतारा। इन मजदूरों को आज सत्येंद्र धुर्वे एवं उनके अन्य साथियों ने मिलकर इटारसी रेलवे स्टेशन पर ट्रेन से उतारा है।

आदिवासी सेवा समिति तिलक सिंदूर के मीडिया प्रभारी विनोद वारीबा ने बताया कि आदिवासी ब्लॉक केसला और आसपास के गांवों से मजदूर गुजरात, महाराष्ट्र और अन्य प्रदेशों में काम की तलाश में जाते हैं। ये मजदूर सबसे पहले गांव के ही मुकद्दम के चुंगल में फंसते हैं। ये मुकद्दम उनको काम का लालच देकर बाहर भेजता है और जब ठेकेदार इनसे काम कराता है और पैसे की मांग करते हैं तो उनसे मारपीट होती है और भगा दिया जाता है।

करीब 15 मजदूर गये थे

केसला ब्लॉक के चाटुआ, चंदखार, खटामा, पोडार आदि के मजदूर 7 नवंबर को यहां गुजरात के अमरेली गए थे, जहां 8 नवंबर को काम पर रखा और कोई शीतल कंपनी में आइसक्रीम, कुरकुरे जैसे खाद्य पदार्थ की पैकिंग करायी गयी। वहां लगातार 12 घंटे काम करके और मशीन का ठंडा पानी पीकर कुछ मजदूर बीमार हो गये।

काम नहीं करने पर मारा

गुजरात से छूटकर आये मजदूर रीतेश उईके ने बताया कि मजदूर बीमार हो गये तो काम पर नहीं आये तो उनको बीमारी की हालत में कमरे में बंद करके मारा गया। उसने बताया कि उसे खुद को अजय पाल नामक व्यक्ति ने मारा। यही अजयपाल नामक व्यक्ति उन सबको केसला से बुलाकर इटारसी से ट्रेन द्वारा गुजराज लेकर गया था।
लड़कियों को हैद्राबाद ले जाते
रीतेश ने बताया कि हम लोगों के साथ लड़कियां भी गयी थीं। वहां गुजरात में कुछ दिन काम कराके बताया गया कि लड़कियों को हैद्राबाद ले जाया जाएगा। हमने विरोध करके कहा कि लड़कियों को अकेले नहीं ले जाने देंगे, हम भी उनके साथ चलेंगे, इस पर हम लोगों को कमरे में बंद कर दिया। मुश्किल से सभी छूटकर भागे हैं।

किसी को नहीं मिली मजदूरी

इन लोगों ने वहां जितना काम किया है, किसी को मजदूरी नहीं मिली, उल्टा इनसे मारपीट की गई है। हम तो सेठ के माध्यम से गये थे, तो कंपनी से पैसे भी नहीं मांग सकते थे। सेठ कौन, इस पर रीतेश को नाम नहीं पता। दरअसल, सेठ, मुकद्दम और कंपनी के बीच लंबी कड़ी होती है, जो मजदूरों को समझ ही नहीं आती है। किसी मजदूर के 11, किसी के 12 और किसी के 13 दिन के पैसे नहीं मिले।

ऐसे पहुंचे इटारसी

इनमें से कई मजदूर ये मजदूर ठेकेदार की चुंगल से निकलकर रेलवे स्टेशन पहुंचे जहां मजदूर भटकते रहे। इस दौरान भारतीय मजदूर संघ जिला मंत्री राजकोट शिवराज सूर्यवंशी ने मजदूरों को तुरंत 10000 की राशि दी जिससे भोजन की व्यवस्था और इटारसी तक पहुंचने रेलवे टिकट की व्यवस्था करके मजदूर अपने घर वापस लौटे हैं।

गांव के व्यक्ति को जिम्मेदारी

इस पूरे खेल में ठेकेदार द्वारा सबसे पहले गांव में ही एक व्यक्ति को मुकद्दम बनाया जाता है। मुकद्दम उसे बनाया जाता है, जो पहले काम करके आ चुका होता है। उसके भरोसे पर ही गांव के मजदूरों का इक_ा करके, बाहर भेजता है। एक महीने होने के बाद जब मजदूर भुगतान की बात करते हैं तो उनको बेरहमी से मारकर गलत व्यवहार करके भगा दिया जाता है, नहीं तो बंधक बनाकर रखते हैं।

ये मजदूर गये थे गुजरात

गाम कोटमी रैयत से बेबी अखंडे, सीमा अखंडे, दुधवानी से सुनील बारस्कर, नया पोडार से मनीषा सेलूकर, खटामा से रीतेश उईके, सुरेश कलमे सहित करीब 15 मजदूर थे।

इनका कहना है…
मजदूरों की तरफ से हमारे पास अभी तक कोई सूचना नहीं आयी है, ना ही ऐसी कोई जानकारी मिली है। बाहर जाने से पहले पुलिस को जानकारी नहीं देने से भी ऐसी चीजें हो जाती हैं। हालांकि वे हमारे पास आकर अभी भी जानकारी देंगे तो हम उनकी पूरी मदद करेंगे।
गौरव सिंह बुंदेला, केसला थानाप्रभारी

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