इटारसी। निषादराज केवट रामायण का एक पात्र है, जिसने प्रभु श्रीराम को वनवास के दौरान माता सीता और लक्ष्मण के साथ अपने नाव में बिठा कर गंगा पार कराया था। उक्त उद्गार श्री द्वारिकाधीश मंदिर में चल रही राम कथा के दौरान प्रसिद्ध कथावाचक पंडित नरेन्द्र शास्त्री ने व्यक्त किए।
मांगी नाव न केवटु आना। कहइ तुम्हार मरमु मैं जाना॥
चरन कमल रज कहुं सबु कहई। मानुष करनि मूरि कछु अहई॥
कथा को विस्तार देते हुए पंडित नरेन्द्र शास्त्री ने बताया कि श्रीराम ने केवट से नाव मांगी, पर वह लाता नहीं है। वह कहने लगा, मैंने तुम्हारा मर्म जान लिया। तुम्हारे चरण कमलों की धूल के लिए सब लोग कहते हैं कि वह मनुष्य बना देने वाली कोई जड़ी है। वह कहता है कि पहले पांव धुलवाओ, फिर नाव पर चढ़ाऊंगा। अयोध्या के राजकुमार केवट जैसे सामान्यजन का निहोरा कर रहे हैं। यह समाज की व्यवस्था की अद्भुत घटना है। केवट चाहता है कि वह अयोध्या के राजकुमार को छुए। उनका सान्निध्य प्राप्त करें। उनके साथ नाव में बैठकर अपना खोया हुआ सामाजिक अधिकार प्राप्त करें। अपने संपूर्ण जीवन की मजूरी का फल पा जाए। राम वह सब करते हैं, जैसा केवट चाहता है। उसके श्रम को पूरा मान-सम्मान देते हैं। उसके स्थान को समाज में ऊंचा करते हैं।
राम की संघर्ष और विजय यात्रा में उसके दाय को बड़प्पन देते हैं। त्रेता के संपूर्ण समाज में केवट की प्रतिष्ठा करते हैं। केवट भोईवंश का था तथा मल्लाह का काम करता था। केवट प्रभु श्रीराम का अनन्य भक्त था। केवट राम राज्य का प्रथम नागरिक बन जाता है। राम त्रेता युग की संपूर्ण समाज व्यवस्था के केंद्र में हैं, इसे सिद्ध करने की जरूरत नहीं है। कथा समापन के अवसर श्री गौड़ मालवीय ब्राह्मण समाज के पूर्व अध्यक्ष पत्रकार विनय मालवीय, सचिव उमाशंकर मालवीय, उपाध्यक्ष उमेश मालवीय, पवन मालवीय, सुभाष मालवीय, सुरेश मालवीय एवं अखिलेश मालवीय ने पंडित नरेन्द्र शास्त्री का शाल श्रीफल, स्मृति चिन्ह सहित फूल मालाओं से नागरिक अभिनंदन किया।