होशंगाबाद।
नर्मदापुरम् संभाग कमिश्नर उमाकांत उमराव ने कहा कि हम सब के पास यह अंतिम अवसर है कि हम माँ नर्मदा को बचाएं। इतिहास में इस वर्ष यह पहला अवसर है जब नर्मदा नदी की कोई भी सहायक नदी नहीं बह रही है। नर्मदा की सभी सहायक नदियां सूख गई हैं और जब कोई नदी सूख जाती है और बहना बंद हो जाती है तो पुन: दुबारा उसमें पानी नहीं आता है। नदी की जीवितता समाप्त हो जाती है और उसमें पानी रहने की संभावना खत्म हो जाती है। कमिश्नर श्री उमराव आज रिपेरियन जोन की वर्तमान स्थिति की समीक्षा कर रहे थे। समीक्षा बैठक में कलेक्टर श्री अविनाश लवानिया, टीएनसी के श्री जॉन एवं माईक तथा श्री भावेश मौजूद थे। बैठक में संभाग के सभी जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी, समस्त अनुविभागीय राजस्व अधिकारी, तहसीलदार, जनअभियान परिषद के पदाधिकारीगण, स्वयंसेवी संगठनों के प्रतिनिधिगण मौजूद थे।
कमिश्नर ने नर्मदा नदी के तटवर्ती क्षेत्र की वर्तमान स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि वर्तमान में हमें एक अवसर मिला है कि हम नर्मदा नदी एवं उनकी सहायक नदियों के पुर्नजीवन का कार्य कर सकें और यदि हमने यह कार्य नहीं किया तो आने वाले पीढ़ी हमें कभी क्षमा नहीं करेगी। श्री उमराव ने कहा कि आज नर्मदा नदी का जलस्तर इतना कम हो गया है कि लोग उसे पैदल पार कर रहे हैं। गत वर्षों में मार्च-अप्रैल के माह में नर्मदा में 140 से 145 क्यूबैक पानी बहता था इस वर्ष 28 मार्च की स्थिति मे केवल 35 क्यूबैक पानी बचा है। यह सीडब्ल्यूसी के आंकडे हैं 1992 में मार्च माह में नर्मदा में 97 क्यूबैक पानी था जबकि उसी वर्ष 820 मि.मी. वर्षा दर्ज हुई थी। इस वर्ष 884 मि.मी. वर्षा हुई है फिर भी नर्मदा में 35 क्यूबैक ही पानी हैं। गत 26 वर्षों में एक तिहाई पानी ही शेष बचा है। आने वाले 10 से 15 वर्षो में नर्मदा में पानी समाप्त हो जाएगा। कमिश्नर ने बताया कि इस वर्ष होशंगाबाद जिले में 1.44 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान की बुआई हुई इससे जल स्तर घटा है। कमिश्नरने कहा कि संतरे, अमरूद, सागौन के पौधों से वाटर कन्वरजेंस नही होता है किंतु जो वृक्ष लगाना चाहते हैं वे ध्यान दें कि वृक्ष लगाते समय वे आस-पास की घास ना उखाड़ें। कमिश्नर ने बताया कि यह हमारे लिए अंतिम अवसर है कि हम कुछ कर सकें केवल मईया कह देने से मईया का सम्मान तो बढ़ता है किंतु हमारी जिम्मेदारी खत्म नहीं होती है।
कमिश्नर ने बताया कि नदियों में स्टॉप डैम बनाने से नदियों में पानी नहीं बहता है अपितु सारी नदियां सामान्यत: हाईड्रोलॉजिक जोन में बहती हैं। किनारों से पानी अपने अंदर ले जाती हैं। पानी को रिचार्ज करती हैं। बारिश के बाद पानी नदियों के उन्हीं किनारों से आता है नर्मदा नदी डिस्चार्ज जोन में हैं जो पानी अंदर से निकालती रहती है। श्री उमराव ने कहा कि हम उन नदियों को चिन्हित करें जिन्हें हमें पुर्नजीवित करना हैं। उन्होंने कहा कि हम केमीकल युक्त पेस्टीसाइड यूज ना करें। ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा दें। उन्होंने बताया कि प्रदेश की 50 प्रतिशत जमीन पर खेती की जाती है, 30 प्रतिशत जमीन पर वन हैं, 05 प्रतिशत में बस्ती, सड़क सार्वजनिक इमारतें, 10 से 15 प्रतिशत जमीन निजी है। इन 10 से 15 प्रतिशत जमीन पर यदि तालाब या अन्य जल स्त्रोत बनाए जाएं तो जल की समस्या से छुटकारा मिल जाएगा।
बैठक में कमिश्नर ने सभी अनुविभागीय राजस्व अधिकारियों, सभी नोडल अधिकारी एवं समस्त वन मण्डलाअधिकारियों को निर्देशित किया कि वे रिपेरियन जोन के ग्रामों में जाकर नर्मदा परिवार एवं ग्रामीणों से नदी पुर्नजीवन के लिए चर्चा करें जहां आवश्यकता है वहां नर्मदा परिवार का गठन किया जाए। पुन: विभिन्न प्रकार की प्रजातियों के बीजों का संग्रहण प्रारंभ कर दिया जाए और प्रयास करें कि जहां जहां पौधरोपण हुआ है वहां पौधो की सुरक्षा के लिए तार फेंसिंग या बागुड लगाया जाए। उन्होंने बताया कि अप्रैल माह में रिपेरियन जोन के लिए कुछ राशि प्राप्त होगी। उन्होंने सभी अधिकारियो से कहा कि गत वर्ष लगाए गए पौधरोपण में बनाई गई रणनीति कहा तक सफल रही है। कमिश्नर ने कहा कि रिपेरियन जोन हेतु सही व्यक्तियों का चिन्हांकन किया जाए और सिंचाई के लिए जहां से भी सहायता मिलती है वहां से सहायता ली जाए।
टीएनसी के अमेरिकी प्रतिनिधि श्री जॉन एवं माईक ने बताया कि ग्राम धानसी में टीएनसी के सहयोग से तारफेंसिंग कराई जा रही है। वाटर कन्वरजेंस के लिए कार्य किए जाएंगे उन टीब्यूट्री की पहचान की जा रही है जो लगातार बहती हैं। बैठक में अधिकारियों एवं जनअभियान परिषद के सदस्यों ने अपने सुझाव सामने रखे। बताया गया कि 1 अप्रैल से 13 अप्रैल तक रिपेरियन जोन में तारफेसिंग के कार्य के लिए भूमि पूजन किया जाएगा और उन संतों की लिस्ट बनाई जाएगी जो इस रिपेरियन जोन के रखरखाव में अपना सहयोग देंगे।