होशंगाबाद। सात दिवसीय कार्यशाला के समापन अवसर पर संचालन करते हुये वैशाली भदोरिया ने कहा कि खण्डहरों के अवशेषों में पुरातत्ववेत्ता सुई को इसलिये तलाशता है कि आने वाली पीढ़ी निर्वस्त्र न रह जाये। प्राचार्य डा. ओ.एन. चैबे ने कहा कि कार्यशाला महाविद्यालय के इतिहास में मील का पत्थर साबित होगी। मुख्य अतिथि अधीक्षण पुरातत्व विद् डा. विक्रम भुवन ने कहा कि बिखरे हुये ऐतिहासिक तथ्यों और पुरावशेषों को एकत्रित करके, उन्हें आपस में संयोजित करके सम्पूर्ण इतिहास लिखा जाता है। बाबई महाविद्यालय के प्राध्यापक डाॅ. दिग्विजय खत्री ने इस कार्यशाला को उपयोगी बताया। साहित्य में इतिहास बिखरा हुआ है, उसमें से हमें निकालकर इतिहास लिखना है। काल की गणना हमारी धार्मिक, सांस्कृतिक परम्परा में पूजा के पहले लिये गये संकल्प में निहीत है। प्रशस्तियां घटनाओं का वर्णन है, उसकी सत्यता तथ्यों से पता चलती है। पुरातात्विक संदर्भ और साहित्य मिलकर प्रमाणित इतिहास बनाते हैं।
स्वागत उद्बोधन करते हुये डा. हंसा व्यास ने बताया कि कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों की समझ को विकसित करना रहा है। यह इतिहास माँ के आंचल के दूध की तरह है जो हमें देश, समाज को समझने की दिशा देता है। कार्यशाला की खास बात यह रही की इसमें पंजीयन से अनुशासन तक का प्रबंधन विद्यार्थियों ने किया। पूरे सात दिन संचालन भी महाविद्यालय की शोधार्थी कु. वैशाली भदोरिया ने किया। कार्यशाला के प्रतिवेदन में एम.ए. की विद्यार्थी भारती चौहान ने बताया कि हमने इन सात दिनों में इतिहास लिखने की विषय वस्तु को समझा। विद्यार्थी संजय चैधरी ने कहा कि इस कार्यशाला ने हमें इतिहास के विभिन्न रूपों को समझाया। माधवी राजपूत, हर्षा परते ने बताया कि इस कार्यशाला से हमने इवेन्ट मेनेजमेन्ट सीखा। कोई भी कार्यक्रम कैसे आयोजित किया जाता है उसकी स्क्रिप्ट कैसे लिखी जाती है। इस अवसर पर आभार प्रदर्शन डा. कल्पना विश्वास द्वारा किया गया।
कार्यक्रम में डा. विनीता अवस्थी, डा.ममता गर्ग, डा.सविता गुप्ता, डा.अशुंता कुजुर, डा. ईरा वर्मा, डा.बोहरे, डा.अंजना यादव, अर्पणा श्रीवास्तव, आरती सिंह एवं रामजी पटेल, रूपाली शर्मा, नीतू चौरे, अश्विनी मौर्य, अजय बावरिया, राजेश वर्मा, आशीष नागर, वैभव पालीवाल, रजत सोनी, छाया लेहरी सहित बड़ी संख्या में विद्यार्थी उपस्थित रहे।