इटारसी। सत्वगुण रजोगुण, तमोगुण तीनों को अपनी मु_ी में रखने वाले ज्ञान रूपी गंगा को शीष पर धारण करने वाले निर्विकल्प निराकार अद्वितीय भगवान की परम भक्ति के साथ जब भक्तगण प्रार्थना करते हैं तो भगवान भोलेनाथ अपने निराकर स्वरूप में वहीं विराजित हो जाते हैं। उक्त उद्गार इंदौर के आचार्य पं. ब्रजमोहन महाराज ने व्यक्त किये।
भगतसिंह नगर नाला मोहल्ला में श्री शिवमहापुराण कथा समारोह के अष्टम दिवस में आचार्य ब्रजमोहन ने भगवान शिव के द्वादश ज्योर्तिलिंग स्वरूप का भक्तिमय वर्णन करते हुये कहा कि भगवान शिव भक्तों की प्रार्थना से व उनकी रक्षा के निमित्त ज्योर्तिलिंग के रूप में बारह स्थानों पर विराजित हुए। प्रभास क्षेत्र में चंद्रमा ने छह माह मृत्युंजय के 10 करोड़ जप किये तब शिव प्रसन्न हुए और सोमेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रगट हुए। क्रोंच पर्वत पर शिव पार्वती अपने बड़े पुत्र कार्तिकेय को मनाने गये थे तब भगवान शिव पार्वती मल्लिकार्जुन रूप में विराजे। अवंतिकापुरी उज्जैन में ब्राह्मणों की रक्षा करने के लिए पृथ्वी में से निकलकर दूषण नामक दैत्य का नाश किया, और चन्द्रसेन राजा पर कृपा की ‘महाकालÓ रूप में विराजे। विंध्याचल के तप से प्रसन्न होकर ‘ओंकारेश्वरÓ ज्योर्तिलिंग के रूप में विराजे। नर-नारायण की तपस्या से प्रसन्न हो बद्रीकाश्रम में ‘केदारनाथÓ रूप में विराजे। इसी प्रकार भीमाशंकर, काशी विश्वनाथ, त्रयंबकेश्वर, वैद्यनाथ, नागेश्वर, रामेश्वर एवं घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग रूप में विराजकर भगवान शिव ने समूचे संसार की रचना की है। कथा के प्रारंभ में मुख्य यजवान ओपी नागा, हरिमोहन मालवीय, बाल ठाकुर, सुनील गोट एवं नितिन नामा ने महाराज का स्वागत किया। संचालक गिरीश पटेल ने बताया कि कथा समारोह का समापन सोमवार को महाआरती एवं भंडारे के साथ होगा।
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जहां सच्ची प्रार्थना होती है वहीं शिव विराजते हैं : आचार्य
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