इटारसी। पर्वों के देश हिन्दुस्तान में सदियों से धार्मिक और सामाजिक आयोजन, देश की संस्कृति और परंपरा के अनुरूप होते आए हैं। इन्हीं में से एक है, गणेश उत्सव। वर्षों से देश में गणेशोत्सव मनाया जाता रहा है। प्रतिमाओं की विधि-विधान से पूजा अर्चना के बाद निश्चित दिनों के बाद जल में विसर्जन की परंपरा है। वर्षों से हमारे नदियों, तालाबों, पोखरों, नहरों में प्रतिमाएं विसर्जन की परंपरा निभाई जा रही है। लेकिन, बीते कुछ वर्षों में मिट्टी की प्रतिमाओं की जगह प्लास्टर आफ पेरिस ने और प्रतिमाओं पर प्राकृतिक रंगों के स्थान पर रसायनयुक्त रंगों का इस्तेमाल होने लगा है जो जल प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण बना है। कुछ ही वर्षों में इसके दुष्परिणाम सामने आने के बाद अब पर्यावरणविदों के अलावा सरकारें भी पीओपी की प्रतिमाओं पर पाबंदी लगाने लगी हैं। सवाल यह है कि हमारे ग्रंथों में तो पार्थिव गणेश पूजन का विधान है तो फिर क्यों न हम प्रकृति की रक्षा के लिए उसी परंपरा का निर्वाह करें जो हमारे पूर्वजों ने शुरु की थी और हम कालांतर में उसे भूलते गए। हमें प्रकृति की सेवा करना है और पर्यावरण को सुरक्षित रखना है तो वापस उसी परंपरा को अपनाने की जरूरत है।
क्यों जरूरी है पार्थिव गणेश पूजन
गणेश चतुर्थी पर पार्थिव गणेश का पूजन किया जाता है। किसी भी पवित्र स्थान की मृत्तिका यानी मिट्टी ‘ओम गं गणपतये नम:Ó जपते हुए खनन करने के बाद मिट्टी से कंकर या अन्य कचरा निकालकर श्री गणेश की प्रतिमा मंत्र पढ़ते हुए बनाएं। आजकल अनेक संस्थाएं मिट्टी से गणेश बनाने का प्रशिक्षण भी दे रही हैं।
प्रतिमा बन जाने के बाद तांबे के पात्र में स्थापित कर लाल रंग के वस्त्र पर स्थापना करें तथा विधिवत पूजन करें। लड्डू, मोदक, दूर्वा, गन्ना आदि का नैवेद्य लगाकर मंत्र जाप करें। संभव हो तो यथाशक्ति हवन भी करें। पार्थिव गणेश सभी धातुओं और अन्य सामग्री से अधिक पवित्र माने गए हैं। इनके पूजन से हर प्रकार की मनोकामना पूर्ण होती है। पार्थिव गणेश के लिए मिट्टी का पूर्णत: शुद्ध होना अति आवश्यक है। पार्थिव गणेश के पूजन से स्वयं गणेश प्रसन्न होते ही हैं बल्कि शास्त्रों में वर्णित है कि पूरा शिव परिवार इस पूजन से संतुष्ट होता है। तो आईए इस गणेश उत्सव पर हम संकल्प करें कि अपनी पुरानी परंपरा को कायम रखते हुए गणेश उत्सव मनाएं और केवल पार्थिव गणेश की स्थापना करें तथा प्लास्टर आफ पेरिस से दूरी बनाकर पर्यावरण को भी सुरक्षित रखें और अपने देश की पुरानी मिट्टी कला को भी पर्याप्त सम्मान दें ताकि मिट्टी से मूर्ति बनाने वाले कलाकारों के रोजगार का जरिए पुन: स्थापित हो सके।