*प्रसंग – वश चंद्रकांत अग्रवाल*
राजनीतिक संगठनों की अस्मिता मर्यादा नैतिकता राजनीतिक साहस अनुशासन व जिजीविषा के प्रतीक थे बाबूजी*दलगत व वैचारिक मत भिन्नता से काफी ऊपर वे सामाजिक व राजनैतिक समरसता के जननायक थे। जनसेवा व पार्टी सेवा के प्रति उनका त्याग व समर्पण बेमिसाल था। व्यक्तिगत रूप से राजनीति से न कुछ पाने की इच्छा न ही कुछ खोने की कोई असुरक्षा के आदर्शों के साथ वे दृढ़ इच्छाशक्ति से सदैव गतिमान रहे। सार्वजनिक जीवन में उनकी मुखरता, प्रखरता व पारदर्शिता अद्वितीय थी। निष्काम भाव से की गई उनकी राजनैतिक तपस्या आज के दौर में सभी के लिए प्रेरणा पुंज हैं। मृत्युपर्यंत कर्तव्य के समक्ष उन्होंने अपने स्वास्थ्य को भी कभी बाधक नहीं बनने दिया। मुझे याद आ रहा है 2016 में भव्य स्तर पर उनके परिवार द्वारा किया गया उनका रजत पुण्य स्मरण प्रसंग जिसमें शामिल जिले के सभी विचार धाराओं के दिग्गजों सहित समाज के हर वर्ग के प्रमुख जनप्रतिनिधियों ने भी कई ऐसे उदगार व्यक्त किये थे जो उनके व्यक्तित्व की विराटता को रेखांकित करते थे । जिले में जनसंघ व भाजपा के पितृपुरूष माने जाने वाले स्व. हरिनारायण जी अग्रवाल की 25 वीं पुण्यतिथि पर आयोजित इस पारिवारिक व आत्मीय भावांजली प्रसंग में उनके समकालीन व दीर्घ काल तक उनके मार्गदर्शन सानिध्य में रहे तत्कालीन लोकनिर्माण मंत्री सरताज सिंह ने कहा था कि स्व. पंडित दीनदयाल उपाध्याय व स्व. कुशाभाऊ ठाकरे की उनसे काफी आत्मीयता रही। पर इसका कोई राजनैतिक फायदा कभी भी उन्होंने नही लिया वरन सदैव पार्टी के प्रति निष्काम भाव से समर्पित रहे। मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा हैं। वे मेरे राजनैतिक गुरू थे। उनकी दृढ़इच्छाशक्ति बेमिसाल थी।
तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीताशरण शर्मा ने कहा था कि एक बार विधायक रहते हुए उनके साथ भोपाल में अटल बिहारी वाजपेयी की अगवानी करने जाने का अवसर मिला। भोपाल में अटल जी ने पंक्तिबद्ध खड़े भाजपा नेताओं में से सिर्फ स्व. हरिनारायणजी से ही उनकी कुशल क्षेम पूछी थी। पार्टी व विचारधारा के प्रति उनका समर्पण अद्वितीय था। तत्कालीन खनिज विकास निगम अध्यक्ष शिव चौबे ने कहा था कि उनकी संगठन क्षमता गजब की थी। से सदैव पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ खड़े दिखते थे। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी करण सिंह तोमर ने कहा था कि सार्वजनिक जीवन के जनहित से जुड़े हर संघर्ष में उन्होंने कभी भी राजनीति को बाधक नहीं बनने दिया। उनके प्रयास से ही सरताजसिंह को पहली बार पार्टी टिकिट मिली थी। श्री शिखरचंद जैन ने कहा था कि उनका सामाजिक, व्यापारिक,धार्मिक व शैक्षणिक क्षेत्र में बहुत बड़ा योगदान रहा। पूर्व मंत्री व विधायक विजय दुबे ने कहा था कि जब मैं मंत्री बना तो उन्होंने पार्टी की दीवारों को तोड़कर जयस्तंभ पर आकर आशीर्वाद दिया। वे कम्युनिष्ट विचारधारा के मेरेे पिताजी के परम मित्र थे। पूर्व विधायक अंबिका शुक्ला ने कहा था कि वर्तमान में राजनीति इतनी गंदी हो चुकी हैं कि नेतागण पार्टियों के औजार मात्र बनकर रह गये हैं। ऐसे दौर में स्व. हरिनारायण जी के व्यक्तित्व व कृतित्व से सभी को प्रेरणा लेना चाहिए। कार्यक्रम का संचालन करते हुए तब मैंने इसमें यह जोड़ा था कि सिर्फ पार्टियों ही नहीं वरन बड़े नेताओं का भी औजार बनते जा रहे हैं कमोवेश आज स्थानीय नेता गुटबाजी नामक खेल के लिए। पूर्व विधायक मधुकर हर्णे ने कहा था कि वे यदि आज जीवित होते तो भाजपा संगठन का स्वरूप कुछ अलग तरह का होता। कई वर्षों तक वे पार्टी के जिला कोषाध्यक्ष रहे व उस दौरान रहे जिलाध्यक्ष उनके मार्गदर्शन में काम करते थे। श्री हरने ने सही ही कहा था। बाबूजी आज क्या 5 10 साल भी ओर जीवित रहते तो भाजपा संगठन कम से कम जिले में इतनी बुरी हालत में न होता कि उसे सत्ता की वेसाखियों पर चलने की विवशता भोगनी पड़ती। मैं उनके बेटों की उम्र का था फिर भी न जाने क्यों वे मुझे बराबर से अपने साथ बैठाते थे व घण्टों राजनीतिक व अन्य विषयों पर खुलकर बात करते थे। उनके सानिध्य में मैं करीब 10 साल रहा। इस दौरान उनकी इच्छित ड्राफ्टिंग मैं ही करता था जिसमें कभी उन्होंने कोई नुक्स नहीं निकाला। यह मेरे लिए तब भी व अब भी एक बड़े ईनाम की तरह ही रहा व है। उनके साथ कई बार वैचारिक मंथन में मैं उनसे असहमत भी रहता था तो वे बहुत विस्तार से हर बात समझा कर अपने पक्ष में कर लेते थे। मुझे क्या सभी को सहमत कर लेते थे क्योंकि उनके आचरण में कभी भी कोई पूर्वाग्रह नहीं होता था। उनका सबके प्रति स्नेह असीम था जिस कारण उनकी डांट फटकार के बाद भी दूसरे दिन फिर वह उनकी उसी चोखट पर खड़ा दिखता था जो उनकी व्यापारिक आजीविका का केंद्र भी था पर राजनीतिक हलचलों की रौनक भी वहां हमेशा बनी रहतीं थीं। आज के दौर में राजनीति को व्यापार बनाने वाले तो उनके आदर्शों को समझ भी नहीं सकते। बाबूजी के व्यापार में उनकी इस राजनीतिक व्यस्तता से काफी नुकसान भी होता था।
राजनीति में सक्रिय आज की युवा पीढ़ी तो कल्पना भी नहीं कर सकती संगठन में रहते हुए भी सत्ता में उनके राजनीतिक कद की। भाजपा के शिखर पुरुष पण्डित दीनदयाल जी जंक्शन से पास होते तो इटारसी जरूर रुकते व बाबूजी के घर पर भोजन व उनसे राष्ट्रीय विषयों पर चर्चा करते थे। पूर्व मुख्यमंत्री स्व.कैलाश जोशी तो इटारसी आते तो उनकी दुकान पर घण्टों बैठते। पूर्व मुख्यमंत्री स्व.पटवा भी बाबूजी को बराबरी से साथ बैठाते थे। जिले का कोई भी निर्णय हो उसमे बाबूजी की noc जरूरी होती थी। बाबूजी का राजनीतिक कद इसलिए भी सबसे बड़ा रहा क्योंकि उनके जीवन काल में अधिकांश समय कांग्रेस ही केंद्र व प्रदेश में सत्ता में रही। यह उनके राजनीतिक साहस व राजनीतिक शुचिता का ही परिणाम था कि प्रतिपक्ष में रहते हुए भी एक मुखर नेता व एक व्यापारी भी होते हुए जिले के सभी तत्कालीन वरिष्ठ नेता उनका बहुत सम्मान करते थे। व्यापारिक विवादों में तो उनकी सलाह से ही निर्णय लेते थे। तब ऐसा नहीं होता था कि किसी व्यापारी को अधिकारियों की चापलूसी या दलाली करनी पड़े जैसा कि विगत कुछ सालों से हो रहा है जिसका जिक्र आज भाई प्रमोद पगारे ने भी सोशल मीडिया पर अपनी एक पोस्ट में किया है। तब बाबूजीबके जमाने में तो बिना रिश्वत के अधिकारियों को व्यापारियों के उचित हितों की रक्षा करनी पड़ती थी चाहे सरकार किसी की भी हो। व्यापारी से जाने अनजाने में कानूनन कोई भूल भी हो जाये तो दोषी व्यापारी की सज़ा मौखिक चेतावनी देने जैसी होती थी। वैसे तो अपने आचरण से बाबूजी अजातशत्रु थे। पर अपने से राजनीतिक मतभेद रखने वालों से भी उनके व्यक्तिगत सम्बन्ध कभी खराब नही हुए। तब आज की तरह स्तरहीन राजनीतिक बयान बाजी भी नहीं होती थी प्रायः। वे सबको साथ लेकर चलने की अदम्य क्षमता रखते थे। बाबूजी के साथ के इतने अधिक संस्मरण हैं कि एक पूरी किताब लिखी जा सकती है। कुछ अन्य की चर्चा इटारसी जयस्तंभ में मंगलवार को प्रकाशित इसी नाम के अपने कॉलम में करूँगा। आज भाई भरत वर्मा द्वारा सोशल मीडिया पर व्यक्त एक बड़ी बात से विराम दूंगा जिसमें उन्होंने कहा है कि स्वयं नेता तो आज सभी बनना चाहते हैं पर दूसरों को नेता बनाने वाले किंग मेकर थे बाबूजी। यह मात्र एक सत्य उनके व्यक्तित्व की विराटता अभिव्यक्त करने में समर्थ है। जय श्री कृष्ण।
चंद्रकांत अग्रवाल, वरिष्ठ लेखक, पत्रकार व कवि हैं।
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