जीवन में मायारूपी नर्तकी से बचने के लिए कीर्तन आवश्यक

Post by: Manju Thakur

इटारसी। संसार में सभी जन माया मोह के बंधन में बांधे हुए हंै, यह माया रूपी नर्तकी मनुष्य को जैसा चाहे वैसा नचाती है। इसके कारण हम ईश्वर की सच्ची भक्ति नहीं कर पाते हैं। अत: नर्तकी के इस मायाजाल से बचने हमें भागवत रूपी कीर्तन को आत्मसात करना होगा। उक्त उद्गार नर्मदाचंल के लोकप्रिय कथाकार आचार्य पं. जगदीश पांडेय ने ग्राम सोनासांवरी में श्रीमद् भागवत कथा के अंतिम दिन व्यक्त किये।
समापन दिवस पर श्रद्धालुओं के समक्ष श्रीकृष्ण सुदामा प्रसंग का उल्लेख करते हुए श्री पांडेय ने कहा कि मानव जीवन में मित्रता का संबंध पारदर्शिता के साथ निभाना चाहिए और इस मित्र धर्म में पवित्रता भी होना चाहिए। इसके बगैर मित्र धर्म का कोई औचित्य नहीं है। उन्होंने कहा कि वैसे तो मानव जीवन में सभी संबंधों का निर्र्वहन पूर्ण सत्यता से होना चाहिए लेकिन मित्रता के संबद्ध निर्र्वहन में तो सत्यता के साथ पारदर्शिता भी होनी चाहिए। बगैर पारदर्शिता के एक-दूसरे के सुख-दु:ख को समझना संभव नहीं है। मित्र धर्म में छल-कपट भी नहीं होना चाहिए, मित्रता पर तो प्रश्न चिन्ह लगता ही है जो इसमें कपट करता है उसका पूरा जीवन भी दरिद्रता में व्यतीत होता है जैसे सुदामा जी के साथ हुआ। श्री पांडेय ने महाभारत युद्ध का भी संक्षिप्त एवं सांसारिक उल्लेख करते हुए कहा कि अधर्म पर धर्म की जीत के लिए आंशिक छल-कपट अनुचित नहीं है। लेकिन सत्य को झुठलाने छल-कपट करना अनुचित है।
समापन दिवसपर प्रात: काल हवन हुआ जिसमें क्षेत्र की सुख-शांति के लिए आहुतियां प्रदान की। कथा के समापन पर महाआरती एवं भंडारा हुआ जिसमें समस्त श्रद्धालुओं ने भोजन प्रसाद ग्रहण किया।

error: Content is protected !!