होशंगाबाद। शनिवार को पितृमोक्ष अमावस्या पर अंतिम तर्पण के बाद पितृपक्ष का समापन हो गया। सर्वपितृ अमावस्या पर होशंगाबाद स्थित पावन नर्मदा के सेठानी घाट पर हजारों श्रद्धालुओं ने अपने पूर्वजों की याद में दानपुण्य किया। पितृमोक्ष अमावस्या पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ की संभावना को देखते हुए प्रशासन ने पावन रेवा के घाट पर सुरक्षा के लिहाज से बेहतर बंदोवस्त किया था। सुबह से ही नर्मदा के सेठानी घाट पर श्रद्धालुओं का आना प्रारंभ हो गया था। लोगों ने यहां नर्मदा में डुबकी लगायी और दान-पुण्य किया।
श्राद्ध, यानी अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा के पवित्र दिन। पितृपक्ष का शनिवार को पितृमोक्ष अमावस्या के साथ समापन हो गया। सर्वपितृ अमावस्या पर आए श्रद्धालुओं ने पावन स्नान करके अपने ज्ञात-अज्ञात पितृों के प्रति श्रद्धा व्यक्त की और तर्पण किया। भादौ मास की पूर्णिमा से प्रारंभ पितृपक्ष में आश्विन मास के कृष्ण पक्ष के एक पखवाड़े में अपने पितृों को याद करने के बाद अमावस्या को इसका समापन हो गया। दिवंगत पूर्वजों के सोलह दिन स्मरण के बाद सर्वपितृ अमावस्या की पावन तिथि के रोज ज्ञात-अज्ञात पितृों का श्राद्ध किया जा सकता है। आश्विन मास की अमावस्या पितृों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने के लिए विशेष शुभ फलदायी मानी जाती है। नर्मदा मंदिर के पुजारी पंडित गोपाल प्रसाद खड्डर कहते हैं कि यह भारतीय संस्कृति का बहुत बड़ा पर्व है। हम भगवान की सेवा तो रोज करते हैं। लेकिन, पितरों के लिए ये सोलह दिन याद करने के होते हैं। जिसने अपने पितृों को याद नहीं किया, उनकी सेवा-तर्पण नहीं किया तो उनकी आने वाली पीढ़ी खराब हो जाएगी। हमारी संस्कृति में पितृों देवो भव: कहा गया है। यानी पितृ साक्षात् देवता हैं। जिन्होंने मां-बाप की सेवा की, उनके बच्चे कभी खराब नहीं हो सकते हैं। श्राद्ध के दिन खत्म होने के बाद रविवार से मां दुर्गा की भक्ति का पर्व प्रारंभ हो जाएगा। अब से भक्ति के दिन प्रारंभ होंगे और दीपावली तक यह सिलसिला चलेगा। श्री खड्डर ने बताया कि देवी की भक्ति के नौ दिन भी महत्वपूर्ण होते हैं।
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पावन नर्मदा में डुबकी लगाकर किया दान-पुण्य
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