– विनोद कुशवाहा
105 वर्ष से पाठकों को अपनी सर्वोत्कृष्ट सेवायें निरंतर उपलब्ध करा रहे दिल्ली के “राजपाल एंड सन्स” द्वारा 17 मई, रविवार को ‘मेरे लेखक मेरे सवाल’ के अंतर्गत् ‘पाठकों की पसंदीदा लेखिका’ बहुचर्चित उपन्यासकार सम्माननीय मृदुला गर्ग को पाठकों के सवालों का जवाब देने हेतु आमंत्रित किया गया। इस लाइव प्रोग्राम में बड़ी संख्या में पाठकों सहित तमाम लेखक – लेखिकायें , बुद्धिजीवी सम्मिलित हुए जिनके साथ मुझे भी कार्यक्रम में शामिल होने का अवसर प्राप्त हुआ। इसके लिए मैं ” राजपाल एंड संस ” का आभारी हूं। इस गरिमामय आयोजन में मेरे अतिरिक्त मधु कांकरिया, उषा किरण खान, सुमन केसरी, सुधा अरोड़ा, सुधांशु गुप्त, शुभम मोगा, जमील खान, विकास शर्मा, मनीष सिंह, विशाल कुमार आदि लेखक, बुद्धिजीवी, पाठक ऑन लाईन मौजूद रहे। पाठकों के हर प्रश्न का मृदुला जी ने बहुत ही संतुलित तरीके और बेबाकी से उत्तर दिया जिसके लिए वे जानी भी जाती हैं। चाहे वो कोरोना से संबंधित सवाल हो या फिर सांप्रदायिकता से जुड़ा मुद्दा हो उनका हर जवाब बेहद सटीक और सार्थक रहा। मृदुला जी ने नई पीढ़ी को निरंतर लिखने रहने का मशविरा देने के साथ-साथ ज्यादा से ज्यादा पढ़ने पर जोर दिया। उन्होंने एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि – ‘ लेखक संगठन बनाना गलत नहीं क्योंकि लोगों को , सरकार को जागरूक करने का ये भी एक माध्यम है। आखिर लेखक भी तो एक नागरिक है। उसके भी अपने दायित्व होते हैं ‘ साहित्यिक संस्थाओं की भूमिका को स्पष्ट करते हुये मृदुला जी ने कहा कि – ‘ ये एक दूसरे से जुड़ने का अवसर प्रदान करती हैं लेकिन दुखद स्थिति ये है कि चाहे सरकारी संस्था हो या गैर सरकारी संस्थाएं इनका काम सम्मान और पुरस्कार देने तक ही सीमित रह गया है। बेहतर होगा कि ये ज्यादा से ज्यादा लोगों तक किताबें पहुंचाने का काम करें । जब पाठकों तक किताबें पहुंचेगीं ही नहीं तो लेखक के लिखने का क्या अर्थ रह जाएगा। ‘ उन्होंने एक महत्वपूर्ण सवाल के जवाब में ये भी कहा कि – ‘ लेखक और पत्रकार एक ही सिक्के के दो पहलू हैं । ‘ मृदुला जी ने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की जवाबदेही पर खुद भी सवाल उठाए। उन्होंने किसी भी खबर को सांप्रदायिक रंग देने / निरर्थक परिचर्चायें आयोजित करने की कड़ी आलोचना की। मृदुला जी ने अपने जवाब के संदर्भ में आगे कहा – ‘ महामारी से जूझने की बजाय हम ऐसे सवालों में क्यों उलझें ‘। वे लघु एवं व्यसायिक पत्रिका उन्हें ही मानतीं हैं जो पाठकों तक पहुंचें। अपनी बातचीत में मृदुला जी बाल साहित्य की सबसे बड़ी पैरोकार नज़र आईं। उन्होंने कहा कि – ‘ मैंने तो ” विश्व हिंदी सम्मेलन ‘ में बाल – साहित्य पर ही अपनी बात रखी थी। ‘ वे आम तौर पर कही जाने वाली इस बात से असहमत दिखाई दीं कि – ‘ स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है’। एक प्रश्न के उत्तर में मृदुला जी ने आत्मकथा लिखने से इन्कार किया। उन्होंने कहा कि – ‘ हमारे लिखे हुए में ही आत्मकथ्य आ जाता है। फिर अलग से आत्मकथा लिखने की क्या जरूरत? ‘ मृदुला जी ने बताया कि इन दिनों वे कुछ नायाब औरतों पर लिख रही हैं। इसे आप संस्मरण भी कह सकते हैं। कुल मिलाकर सुप्रसिद्ध लेखिका मृदुला गर्ग से पाठकों की बातचीत सार्थक रही। हां तकनीकी खराबी के कारण शुरुआत और बीच में कुछ व्यवधान जरूर आए। उम्मीद है आयोजक भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति नहीं होने देंगे। ” राजपाल एंड संस , दिल्ली ‘ द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम का संचालन पल्लव ने किया।
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