होशंगाबाद। कार्यशाला के पंचम दिन अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय शैल चित्र कला को पहचान दिलाने वाले प्रसिद्ध पुरातत्व वेत्ता डा. नारायण व्यास ने बताया कि शैल चित्र कला प्रागैतिहासिक काल के सांस्कृतिक इतिहास के महत्वपूर्ण पुरातात्विक आधार है। शैल चित्रों का अध्ययन इतिहास की विकास यात्रा को अभिव्यक्त करता है। विदेशों में पुरातत्व को विज्ञान कहा जाता है। शैल चित्रों को और उनके इतिहास को व्यवस्थित व संरक्षित करना होगा। आदिवासी शैल चित्रों को चुडैल के दांत कहते हैं। अतः स्थानीय स्तर पर जागरूकता की आवश्यकता है। पुरातत्वविद श्रीमती साधना व्यास ने भी पुरातत्व के माध्यम से इतिहास के दस्तावेजीकरण पर प्रकाश डाला। स्वागत उद्बोधन करते हुये डा. बी.सी. जोशी ने कहा होशंगाबाद में शैल चित्रों की समृद्ध श्रंखला है। पुरातत्व ही वास्तविक इतिहास है। दर्शनशास्त्र की प्राध्यापक डा. विनीता अवस्थी ने कहा जब अभिव्यक्ति के लिये शब्द नहीं थे, तब का इतिहास इन शैलचित्रों के माध्यम से अभिव्यक्त होता है।
डा. हंसा व्यास ने बताया कि इन शैल चित्रों की रेखायें और रंग तत्कालीन समय की विषय-वस्तु के साथ इतिहास के अध्याय लिखते हैं। ये शैल चित्र मानव के विकास की गाथा है। संचालन करते हुये वैशाली भदोरिया ने कहा कि शैलचित्र भारतीय संस्कृति की धरोहर है। इनके रंगों में जीवन समाया हुआ है। इनका संरक्षण आवश्यक है।
हर्षा परते, माधवी राजपूत, रूचि दुबे, शालिनी कुशवाह ने कार्यशाला के आरंभ में विद्यार्थियों के साथ शैलचित्रों से संबंधित क्विज एवं ड्राइंग काम्पटिशन कराया। रजत सोनी, अजय बावरिया, राजेश वर्मा, ओमप्रकाश परिहार ने एक नजर शैल चित्रों पर चित्रों के माध्यम से बताया। उन्होंने प्रागैतिहासिक कालीन जीवन पद्धति को दर्शाया। आभार व्यक्त करते हुये डा. हंसा व्यास ने बताया कि शास.नर्मदा महाविद्यालय के इतिहास विभाग के विद्यार्थी होशंगाबाद की धरोहरों के संरक्षण के लिये स्थानीय निवासियों को जागरूक करने का कार्य कर रहे हैं, इसके लिये हस्ताक्षर अभियान चला रहे है। कार्यक्रम में डा.विनीता अवस्थी, डा. एस.सी. हर्णे, डा. नारायण अडलक, डा. रश्मि तिवारी, डा. आशा ठाकुर, डा. ममता गर्ग, डा. सविता गुप्ता, आरती सिंह, आरती रावत, प्रियंका राय, रेणुका ठाकुर, डा. संजय चैधरी, डा. राजेश दीवान, डा. बोहरे, डा. कल्पना जम्बूलकर (भोपाल) आदि बड़ी संख्या में विद्यार्थी उपस्थित रहे।
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शैल चित्र भारतीय सांस्कृतिक इतिहास के महत्वपूर्ण आधार
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