---Advertisement---
City Center
Click to rate this post!
[Total: 0 Average: 0]

श्रीकृष्ण ने कालियानाग से मुक्त करायी यमुना

By
On:
Follow Us

नपा द्वारा श्री द्वारिकाधीश मंदिर में वृंदावन की रासलीला
इटारसी। नगर पालिका परिषद के तत्वावधान में श्री द्वारिकाधीश मंदिर परिसर में तीन दिवसीय रासलीला महोत्सव के अंतर्गत दूसरे दिन आज कालीनाग नाथन की लीला की गई। श्री बालकृष्ण लीला संस्थान वृंदावन के कलाकार स्वामी प्रभात कुमार श्यामसुंदर शर्मा के नेतृत्व में यहां श्रीराम लीला और रासलीला का मंचन कर रहे हैं।
मयूर नृत्य हर रोज का आकर्षण है, जिसमें राधारानी के मयूर नृत्य देखने की ख्वाहिश को श्रीकृष्ण स्वयं मोर का रूप रखकर और नृत्य करके पूरी करते हैं। दूसरे दिन काली नागनाथन की लीला देखने बड़ी संख्या में भक्तगण श्री द्वारिकाधीश मंदिर परिसर में पहुंचे थे। सारा मंदिर परिसर खचाखच भरा था। आज की लीला में राजा कंस के दरबार से शुरुआत की, जब वे बलराम और कृष्ण की लोकप्रियता से चिंतित दिखाई देते हैं। उनके गुरु नारद उन्हें बताते हैं कि सारे बृजवासियों को जमुना से नीलकमल लाने का कह दें, वहां भयंकर विषधर काली नाग रहता है, उससे कोई भी नहीं बचा है।

it28917 4
इस सुझाव पर कंस अपने दीवान को बृजभूमि में भेजता है, जो कंस का संदेश बृजवासियों को सुनाता है। बृजवासी चिंतित हो जाते हैं। श्रीकृष्ण ने देखा कि कालिय नाग के विष का वेग बड़ा प्रचण्ड है और वह भयानक विष ही उसका महान बल है तथा उसके कारण मेरे विहार का स्थान यमुना भी दूषित हो गई है। एक दिन अपने सखाओं के साथ गेंद खेलते हुए कृष्ण ने अपने सखा श्रीदामा की गेंद यमुना में फेंक दी। अब श्रीदामा गेंद वापस लाने के लिए कृष्ण से जिद करने लगे। सब सखाओं के समझाने पर भी श्रीदामा नहीं माने और गेंद वापस लाने कहते रहे। कृष्ण ने सखाओं को धीरज बंधाया और पास के एक कदम्ब के पेड़ पर चढ़ गए और यमुना में कूदकर कालिया को चेतावनी दी। एक बालक की चेतावनी सुनकर क्रोध में कालिया फुफकार उठा और तुरंत अपने निवास स्थान से बाहर निकल आया। कालिय ने फुफकारते हुए भगवान श्रीकृष्ण पर आक्रमण कर दिया। सभी ग्वाल-बाल चिंता-निमग्न हुए कृष्ण की लीला को निहार रहे थे। उनमें से कुछ ग्वाल-बाल वृंदावन में नंद-यशोदा के पास जाकर इस बात की सूचना दे आए कि कृष्ण कालियदह में यमुना में कूद गए हैं और अब कालिय नाग से युद्ध कर रहे हैं। कालिय ने कृष्ण को एक साधारण बालक समझकर अपनी कुंडली में दबोच लिया और उन पर भयंकर विष की फुफकारें छोडऩे लगा, किंतु उस समय कालिय को बड़ा आश्चर्य हुआ, जब उसकी तीव्रतम फुफकारों का भी उन पर कोई प्रभाव न पड़ा।
वृंदावन के सभी बाल-वृद्ध इस समय यमुना तट पर आ खड़े हुए थे। उनके मन में कृष्ण के प्रति गहन चिंता और नयनों में वियोग के आंसू थे। उनकी व्याकुलता और भी बढ़ गई थी। जब कृष्ण ने देखा कि वृंदावन के समस्त नर-नारी उनके वियोग में बुरी तरह तड़प रहे हैं और नंद-यशोदा की दशा तो इतनी बिगड़ चुकी है कि वे कदाचित मृत्यु के निकट ही जान पड़ते हैं, तो उन्होंने एक झटके में ही स्वयं को कालिया की कुंडली से मुक्त कर लिया। कालिया कृष्ण के प्रहारों को सहन न कर सका और थककर चूर हो गया। कृष्ण उछलकर कालिया के फनों पर चढ़ गए और उस पर पैरों से प्रहार करने लगे। नाग-पत्नियाँ तुरंत अपनी सभी संतानों को लेकर प्रभु श्रीकृष्ण की शरण में आ गईं और नतमस्तक होकर उनकी स्तुति करने लगीं। इस विनती से श्रीकृष्ण ने नाग को अपने पाश से मुक्त कर दिया। वह फन झुकाकर बोला- हे स्वामी! आपको पहचानने में मुझसे भूल हुई। श्रीकृष्ण ने कालिया नाग को अभय प्रदान कर सपरिवार रमणक द्वीप में जाने को और बोले, अब तुम्हें गरुड़ का भय नहीं रहेगा। वे तुम्हारे फनों पर मेरे चरणचिह्न को देखकर तुम्हारे प्रति शत्रुता भूल जायेंगे।

For Feedback - info[@]narmadanchal.com
Join Our WhatsApp Channel
Advertisement
error: Content is protected !!
Narmadanchal News
Privacy Overview

This website uses cookies so that we can provide you with the best user experience possible. Cookie information is stored in your browser and performs functions such as recognising you when you return to our website and helping our team to understand which sections of the website you find most interesting and useful.