कैसे उबरे इस महामारी से ? यह बड़ा सवाल, पूरे विश्व के साथ हम हिन्दुस्तानियों के मन में भी है। सरकार अपना काम कर रही है, विपक्ष अपना धर्म निभा रहा है। नागरिकों का मानवता के प्रति जो कर्तव्य है, वे इसका पालन कर रहे हैं। फिर बड़ा सवाल है कि सब अपना-अपना काम कर रहे हैं तो आखिर, कमी कहां है, जो इतनी मुसीबतें आ रही हैं। आमजन परेशान है, मजदूर, गरीब परेशान हैं, सरकार परेशान है, विपक्ष भी परेशान है। सब परेशान हैं तो फिर इसका हल किसके पास है?
आमजन की तकलीफें बढ़ रही हैं, उसके जीवन जीने के लिए जरूरी वस्तुएं मिलना मुश्किल हो रही हैं। अफवाहों का बाजार गर्म है तो हरी सब्जियों का भी इस्तेमाल डर के साये में हो रहा है। दरअसल ऐसे वाकये सामने आये हैं। खबरों में पढ़ा गया कि सब्जी वालों से भी कोरोना फैला तो लोगों ने सब्जियां लेना बंद कर दिया। हालांकि यह कुछ दिन का रहा, अब तो धड़ल्ले से सब्जियां भी बिक रही हैं और लोग ले रहे हैं। मोहल्लों में दुकानों के पिछले दरवाजे से सभी कुछ बिक रहा है, सब्जी वाले फेरी लगाकर सब्जियां बेच रहे हैं और कतिपय पुलिस वाले इनको रोकने के जगह इन्हीं से बेचने देने के एवज में सब्जियां मुफ्त में लेकर अलिखित और अधिकारों से परे लायसेंस दे रहे हैं। मजदूर इस मुसीबत की घड़ी में अपने घरों को जाना चाह रहा है, वह अपने गांव में बेरोजगार रहना पसंद कर रहा है। लेकिन, परदेस में खाने-पीने की किल्लत और मकान मालिक की उलाहनाओं को झेलना नहीं चाहता। मजदूरों का रैला सड़कों पर पैदल निकल रहा है और इसमें राजनीति होने लगी है। विपक्ष सरकार को इन मजदूरों की पीड़ा के मामले में घेरकर दूरदर्शी फायदे देख रहा है तो सरकार खुद के प्रयासों को क्षमता के अनुरूप बता रही है। प्रदेश सरकारों में भी राजनीति होने लगी है। केन्द्र को नीचा दिखाने के लिए उन प्रदेशों में मजदूरों को अधिक परेशान किया जा रहा है, जहां केन्द्र शासित दलों की सरकारें नहीं हैं।
माना जा रहा है कि सरकार ने ट्रेनों को बंद करने में जल्दबाजी कर दी है। यदि कुछ दिन ट्रेनों का संचालन और हो जाता तो शायद मजदूर अपने घरों को पहुंच गये होते। लेकिन, इसके पीछे सरकार की मंशा को लोग नहीं देख रहे हैं। दरअसल, यह मानव स्वभाव भी है, हर कमी का ठीकरा सरकारों पर फोड़ा ही जाता है, चाहे वह किसी भी दल की क्यों न हो। आज भाजपा की सरकार है तो कांग्रेस और भाजपा विचारधारा से इतर या भाजपा के गठबंधन से बाहर के संगठन सरकार को हर रोज किसी न किसी मुद्दे पर घेर रहे हैं। सरकार सौ फीसद सही है, इसकी भी गारंटी नहीं? क्योंकि कई सवाल हैं, जिनके उत्तर नहीं मिल पा रहे हैं। आखिर केवल भाषण देकर प्रधानमंत्री ने इतिश्री क्यों कर ली? जहां मजदूर कार्यरत थे, उन संस्थानों को सख्त हिदायत क्यों नहीं दी गई कि मजदूरों के खाने-पीने का इंतजाम उनको करना होगा। मजदूरों को इस बात से आश्वस्त क्यों नहीं किया गया कि वे जहां हैं, वहीं रहे, सरकार उनके खानेपीने और रहने का इंतजाम कर रही है। कारखाने बंद हो गये तो उनके मालिकों ने मजदूरों की सुध नहीं ली, मकान मालिक किराया के लिए तकादा करने लगे, घर में राशन नहीं, जेब के पैसे खत्म होने लगे तो आखिर, अपना देस याद आने लगा। वही देस जिसे छोड़कर पेट की खातिर दूसरे देस में गये थे। आज वह देस जिसे अपना बनाने के लिए गये थे, पराया लगने लगा। कहते हैं, जड़ों में बने रहना चाहिए, क्योंकि एक पौधे को हराभरा रहना है तो जड़ों को मजबूती से उसी जमीन में गड़ाये रखना होता है, जहां वह बीज से पौधा और पौधा से पेड़ बनता है।
विपक्ष जो सवाल उठा रहा है, उसके जवाब भी आना चाहिए। क्योंकि जनता को भी उनके जवाब का इंतजार रहता है। सरकार आंख बंद करके नहीं बैठी है, यह माना जा सकता है, लेकिन पूरी क्षमता से काम नहीं हो रहा है, यह भी दिखाई दे रहा है। अलबत्ता आमजन यदि मानवता का परिचय न दे रहा होता तो कई गरीब अब तक भूख से तंग आकर संसार छोड़ चुके होते। यह भारत है, जहां किसी को भूखा नहीं देखा जा सकता है। सेवा के द्वार खुले हैं, गुरुद्वारों को प्रथम पायदान पर रखा जा सकता है। मंदिर समितियां, मस्जिदों से भी इनसानियत के दर्शन हो रहे हैं। हर धर्म, हर वर्ग, हर जाति के लोग धर्म, जाति, वर्ग छोड़कर केवल मानवता की छांव में एकजुट होकर सेवा कारज कर रहे हैं, तभी हम इस वैश्विक महामारी से दो-दो हाथ कर पा रहे हैं। जीत सुनिश्चित है, लेकिन इसे सुनियोजित करने की जरूरत है। सब अपना मानव धर्म निभाते हुए इसी तरह से आगे बढ़ते रहे तो वह दिन दूर नहीं जब कोरोना जैसी महामारी अन्य महामारी की तरह इतिहास की बात हो जाएगी।