इटारसी।हमारी आकृति चाहे कैसी भी हो परंतु हमारी कृति सुन्दर होना चाहिए। जिसकी आकृति सुन्दर है और कृति खऱाब है, वह पूतना है। पूतना की आकृति तो सुन्दर थी परंतु मन में मेल भरा होने से कृति खऱाब थी, वह सुन्दर आकृति बनाकर भगवान को विष पिलाने आई इसलिये भगवान ने उसकी तरफ देखा भी नहीं, अपनी आंखें बंद कर ली।
संतों ने भी इस कथा के कई भाव निकाले हैं, किसी ने कहा कि भगवान आंख बंद करके पूतना का वह पुण्य देख रहे थे जिसने उसे कृष्ण दर्शन करा दिया। कोई कहता है कि पूतना दुष्ट है और दुष्ट की दोस्ती और दुश्मनी दोनों ठीक नहीं है, हमें उनके प्रति उदासीन रहना चाहिए इसलिये भगवान ने आंखें बंद कर ली थी। कोई महात्मा कहते हंै कि भगवान आंखे बंद करके सोच रहे थे कि इसके उद्धार के बाद इसे कौन से धाम भेजा जाये। उक्त उद्गार कावेरी स्टेट में चल रही श्रीमद् भागवत कथा में सिवनी से पधारे पं. रघुनन्दन शर्मा ने कथा के पांचवें दिन व्यक्त किये। कथा का आयोजन मेघराज गौर, संजय गौर द्वारा किया जा रहा है। संजय गौर ने नगरवासियों से अधिकाधिक संख्या में कथा में पधारने का आग्रह किया है।
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हमारी आकृति नहीं कृति सुन्दर होना चाहिए : शर्मा
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