भूपेंद्र विश्वकर्मा की विशेष रिपोर्ट
भगवान शिवशंकर की महिमा कौन नहीं जानता। भगवान शिव के भक्तों को उनका भोले बाबा नाम सबसे प्रिय लगता है। जहां एक और हमारे ग्रंथो में माँ शक्ति का सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त है वहीं शिव की महिमा का भी सामान रूप से वर्णन है। सभी ग्रंथो में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि शिव और शक्ति दोनों ही एक दूसरे के पूरक है। न ही शिव के बिना शक्ति का महत्व है और न ही शक्ति के बिना शिव का कोई अस्तित्व। इसीलिए नवरात्रि में माँ दुर्गा के साथ ही भगवान शिव का विशेष पूजन अर्चन की जाती है। आज नवरात्रि के चतुर्थ दिवस पर हम आपको शहर की एक ऐसी ही शिव प्रतिमा से रूबरू करायेंगे।
हम बात कर रहे है जिले भर में प्रसिद्ध बालाजी मंदिर, इटारसी में श्री शिवशंकर समिति द्वारा स्थापित होने वाली शिव प्रतिमा की। इस प्रतिमा को विराजते हुए कितने वर्ष हो गए ये बात तो समिति के किसी भी सदस्य को ठीक तरह से याद नहीं परंतु इस शिव प्रतिमा की सेवा में उस क्षेत्र की लगभग तीसरी पीढ़ी अपना योगदान दे रही है।
समिति के सदस्य मोनू साहू और जीतू मिहानी से हुयी बातचीत में उन्होंने बताया कि यहा विराजने वाले भोले बाबा को लगभग 65 वर्षों से ज्यादा हो गए है और उनके दादा के समय से समिति में शामिल होकर उनका परिवार अपना तन मन धन से सहयोग कर रहा है।
प्रारंभिक वर्षों में समिति में मुख्य रूप से स्व. बृजमोहन सोनी, स्व. रमेश तिवारी, स्व.खेमचंद साहू, हरीश मिहानी, सुरेंद्र अरोड़ा, धरमदास मिहानी, पूर्व पार्षद प्रदीप साहू, रमेश साहू, बबलू राजवंशी एवं मित्र मण्डली का सहयोग रहा। वही पिछले दो दशक से मुन्ना भट्टी यहां अपना विशेष सहयोग दे रहे है। समिति में कभी भी किसी प्रकार की कोई आपसी सामंजस्य संबंधी परेशानी कभी नहीं आयी। लगातार इतने वर्षों से सभी सदस्य अपना तन-मन-धन से बाबा भोले की प्रतिमा स्थापना में अपना अतुलनीय योगदान देते हैं। वर्तमान में भी समिति में पिछले कुछ वर्षों में जिन युवाओं का आगमन हुआ वे भी पूर्ण रूप से बाबा भोलेनाथ के प्रति समर्पित है।
चूंकि बाबा भोले की पूजा का कोई विशेष रूप नहीं होता, बाबा भोलेनाथ तो अपने भक्तों द्वारा दिए कंदमूल और धतूरे से भी प्रसन्न हो जाते हैं। शायद इसी वजह से पुराणों में उन्हें भोलेनाथ की संज्ञा दी गयी है। जैसे भगवान शिव का चरित्र सादगी और शांति का परिचायक है। वैसे ही यहां समिति में शामिल सभी सदस्य भी एकदम शांत स्वभाव के है। साथ ही समिति में शामिल सदस्यों में वरिष्ठ और युवाओं में कभी भी उम्र के अंतर का कोई खास विपरीत प्रभाव नहीं पड़ा है।
समिति में आज की स्थिति में लगभग पंद्रह से बीस लोगों की मुख्य भूमिका में सहभागिता है। वहीं इनके परिवार भी पूर्ण रूप से बाबा की भक्ति में शामिल हैं। सिर्फ इटारसी ही नहीं अपितु संपूर्ण जिले में यहां विराजित होने वाली शिव प्रतिमा की भव्यता और आकर्षकता की चर्चा होती है।
वो सत्य और रोचक बाते जो आपको जानना जरूरी है
• यहां विराजित होने वाली शिव प्रतिमा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि जिले भर में सिर्फ एक यही ऐसी शिव प्रतिमा में जो लगभग 70 वर्षों से भी ज्यादा से विराजित की जाती है। जिले में अन्य कहीं इतनी पुरानी और प्रसिद्ध शिव प्रतिमा नहीं है।
•यहां विराजित होने बाली भोलेनाथ प्रतिमा में समिति ने भगवान शिव के चरित्र से जुडी अब तक लगभग सत्तर से ज्यादा पृथक स्वरूपों और लीलाओं का वर्णन कर एवं भव्य झांकी सजाकर प्रशंसा बटोरी है।
•जिले की एकमात्र प्रतिमा यही है जहाँ सबसे ज्यादा भगवान शिव की पहाड़ों पर स्थापित पवित्र धामों को झांकी सजाकर सादगी व सौंदर्यपूर्ण तरीके से दिखाया जाता है।
•समिति द्वारा प्रारम्भ से लगभग तीन दशकों तक पूर्व भारत की लोकप्रिय कला व मनोरंजन का साधन पुतला-पुतली यानि कठपुतली का बहुत ही सुन्दर तरीके से वर्णन किया जाता है।जिसके लिए प्रदेश भर की सर्वश्रेष्ठ प्रतिमाओं में यहां विराजित भगवान शंकर की प्रतिमा भी चर्चाओं में रहती थी।
•सिर्फ कठपुतली ही नहीं बल्कि यहां हर वर्ष अमरनाथ के बाबा बर्फानी, पचमढ़ी के धूपगढ़ में विराजित बाबा, पशुपतिनाथ महादेव व लगभग सभी बारह ज्योतिर्लिंगों की विशुद्ध झांकी यहां प्रत्येक वर्षों में भिन्न-भिन्न रूपों में सजाई जाती है, जो पूरे जिले भर में कही नहीं किया जाता।
• सभी प्रतिमाओं से अलग यहां भोले बाबा को प्रत्येक वर्ष उनके सर्वाधिक सुन्दर व आकर्षक स्वरुप में स्थापित किया जाता है। जिसकी शहर भर में चर्चा होती है।
•शहर में विराजित होने वाली प्रतिमाओं के साथ सजने वाली झांकियों में शहरवासियों की पहली पसंद बालाजी मंदिर में विराजित शिव प्रतिमा की झांकी होती है, जो अपने-आप में शहर में एक अलग कीर्तिमान और प्रतिष्ठा बनाये हुए है।
•यहां की एक और रोचक बात यह है कि समिति में शामिल सदस्यों में लगभग आधे वरिष्ठ है और आधे जोशवान युवा। पर दोनों में ही उम्र के अंतर के बाद भी कार्य में कोई बाधा नहीं आती। जहां एक ओर वरिष्ठ अपने अनुभव से मार्गदर्शन करते है वही युवा उनकी बातों को सुनकर अपने जोश से कार्य करते है।
•समिति के सदस्य प्रत्येक वर्ष मूर्तिस्थापना में होने वाले कुल व्यय लगभग दो लाख रुपयों की व्यवस्था स्वयं आपसी सहयोग से ही करते है और प्राप्त चंदा कुल व्यय का मात्र बीस से तीस फीसदी हो होता है।
•आज भी शहर में मूर्ति देखने जब लोग अपने परिवारों के साथ घर से निकलते है तो बालाजी मंदिर की मूर्ति देखना उनकी पहली प्राथमिकता होती है, साथ ही शहर की प्रतिमा स्थापना स्थलों में सर्वाधिक जनसमूह यहां ही दिखाई देता है।
इस वर्ष का आकर्षण
भगवान शिव की अनेक प्रेरणास्पद लीलाओं/कथाओं में एक मुख्य घटना जब ब्रम्हा और विष्णु दोनों ही अपने आप को सर्वश्रेष्ठ मनाने की होड़ में लगे थे। तब भगवान शिव ने दोनों के अहंकार को तोड़ने के लिए विशालकाय शिवलिंग रूप में आकर अपना आकार निरंतर बढ़ाया था। दोनों ही देवताओं से कहा था कि जो इस शिवलिंग का छोर ढूंढ़ लेगा वही सर्वश्रेष्ठ होगा। परंतु दोनों ही देवता शिवलिंग का छोर नहीं ढूंढ़ पाये। अंत में भगवान शिव की शरण में आकर उनसे क्षमा मांगकर कहा था कि हे प्रभु आप ही सबसे श्रेष्ठ है। इस कथा को यहां विराजित होने वाली शिव प्रतिमा की झांकी में इस बार विशेष आकर्षण के तौर पर दिखाया जाएगा। समिति द्वारा नवमी को विशाल भंडारे व प्रसादी का आयोजन किया जायेगा।
![65 वर्षों से भगवान भोले के हिमालयीन स्वरूपों की, यहां होती है आराधना 4 VRIDANVAN GARDEN, ITARSI](http://narmadanchal.com/wp-content/uploads/2017/09/vrandavan_MINI.jpg)